साहब का जूता और जूते पर जूतम पैजार

Shri Mi
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” जूता खूब चर्चा में है, जैसे ही ज़मीन से उठकर बिस्तर पर पहुँचा सुर्खियों में आ गया । उस जूते नें ना सिर्फ बिस्तर पर जगह बनाई बल्कि पहनने वाले व्यक्ति के चरित्र को भी उजागर किया । जूता किसी आम-ओ-ख़ास के पाँव का होता तो भी गनीमत थी । ये जूता तो एक ऐसे पाँव का था जिसने रात दिन एक कर आईएएस का इम्तहान पास कर लिया था । लोकसेवक बनने के पहले जूते का मालिक डॉक्टर था ।”

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caption_spp(सत्यप्रकाश पाण्डेय) ये शोर-शराबा, हो-हल्ला सिर्फ उस आईएएस अफ़सर डॉ. जगदीश सोनकर के जूते को लेकर मचा है जिसने एक महिला मरीज का कुशलक्षेम पूछने की सरकारी औपचारिकता के बीच पैर उसके बिस्तर पर रख दिया । डॉक्टर सोनकर प्रशिक्षु आईएएस हैं जो वर्तमान में बलरामपुर जिले के रामानुजगंज में एसडीएम हैं । सरकार ग्राम सुराज अभियान के जरिये आम जनता के बीच पहुँचकर समस्याओं के निराकरण में लगी है और इधर नए नवेले अफ़सर के जूते ने नई समस्या खड़ी कर दी । वैसे इस घटनाक्रम ने प्रशासनिक चरित्रावली का चेहरा भी उजागर किया साथ ही सोनकर जैसे नए प्रशासनिक अफ़सर की उस लालसा को भी दर्शाया जिसमें वो आम जनमानस को जूते की नोक पर रखने की ख्वाहिश रखता है । एक प्रशासनिक अफ़सर कितना मगरूर और बे-परवाह हो सकता है उसका उदाहरण है जगदीश सोनकर ।
                       PicsArt_05-05-08.16.18जिस इंसान को डॉक्टर होने के बाद मरीज से बात करने का सलीका न हो वो कितना कुशल लोक प्रशासक होगा अंदाज लगाया जा सकता है । वैसे इस अफसर की बे- अदबी से आईएएस एसोसिएशन भी खफा है, हालाकिं ख़बरें ये भी इशारा करती हैं कि डाक़्टर सोनकर की करतूत पर आईएएस अफसरों की भी अपनी-अपनी राय है। डाक़्टर सोनकर ने 2006-07 में एमबीबीएस किया। बाद में उन्होने आईएएस की परीक्षा पास की। वे भारतीय प्रशासनिक सेवा 2013 बैच के अफसर हैं। वैसे ये कोई पहले अफसर नहीं हैं जिन्होंने बे-अदबी की हो। समय-समय पर ऐसे प्रशासनिक अफसरों की बेजा हरकतें सुर्खियां बटोरती रहीं हैं।
                    ये घटनाक्रम का एक पहलू है, दूसरा पहलू मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक-प्रिंट) और सोशल मीडिया की भूमिका के साथ सियासत के गिरते ग्राफ का है। आखिर ऐसी कौन सी त्रासदी जैसी ख़बर सामने आ गई थी जिसमें मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह को बयान देना पडा । रमन सिंह को कहना पड़े कि नए अफ़सर को सीखने में अभी समय लगेगा । मतलब साफ़ है नए साहब पढ़े-लिखे जरूर हैं मगर आम इंसानो से आचरण की तमीज़ सीखना अभी बाकी है । उधर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी इस मसले पर बोलने से नहीं चूके । जोगी ने नौकरशाहों को बेलगाम बताया । अखबारों ने उस बेसउर अफ़सर की करतूत पर प्रदेश की राजनीति में उफ़ान मारने जैसी ख़बरें को प्रमुखता से प्रकाशित किया । कुछ निक्कमे तो अफ़सर के खिलाफ कार्रवाही की मांग का झंडा लेकर शोर मचाने लगे । इन सबको हवा देने की शुरुआत हुई सोशल मिडिया के मंच से । सोशल मिडिया पर एक तस्वीर के जरिये उस नौकरशाह की मनोवृति को बताने की कोशिश की गई जो चंद घंटे में हर हाथ में थी । अच्छा है, कम से कम एक नौकरशाह के अंदाज़ को सामने लाकर प्रशासनिक चरित्र का खुलासा करना, मगर क्या ये इतना बड़ा मुद्दा था जिस पर बहस हो या फिर मुख्यमंत्री को बयान देना पड़े ? मिडिया के गिरते ग्राफ और उस पर हावी बाज़ारवाद के बाद सोशल मीडिया की भूमिका को आज के दौर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सशक्त माध्यम माना जा रहा है लेकिन सोशल मीडिया की भूमिका पर भी संकट के बादल मंडरा रहें हैं ।
               गंभीर और जनहित के मुद्दों को छोड़ सोशल मीडिया पर इस तरह की तस्वीरें आम हैं जिसमें दिखाया जाता है, फलाना अफ़सर सरकारी नल का पानी पी रहा है , ढिमका सिंग ने फलां जगह खड़े होकर नाली साफ़ करवाई । उस अफ़सर ने दिन में तीन बार कपडे बदले, फलाना अफ़सर पत्नी के साथ चौपाटी पर चाट चाटने पहुंचा । हद है, लाईक और शेयर फिर उस पर कॉमेंट्स के मंच पर ऐसी वाहियात हरकतों को तरजीह देना यक़ीनन उचित नहीं पर क्या करें अभी तो साहब का जूता और जूते पर जूतम पैजार जारी है ।
By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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