बिलासपुर– प्रेमचंद की नमक का दारोगा कालजयी रचना है। अब ना तो उसके पात्र ही दिखाई देते हैं और ना ही सेठ। जो हैं भी वह अब आबकारी विभाग तक सिमटकर रह गए हैं। महान कथाकार प्रेमचंद के समय फोन या मोबाइल जैसी सुविधा भी नहीं थी। अन्यथा हमें कहानी का सार भी समझ में नहीं आता कि दारोगा और सेठ के बीच क्या संवाद हुआ। दरअसल मोबाइल का जमाना ही कुछ ऐसा है..सार समझ में आता नहीं…बड़े बड़े निर्णय तीस सेंकड में हो जाते हैं। कौन सही कौन गलत पता ही नहीं चलता..कसौटी के पैमाने भी तो बदल गये हैं। आज प्रेमचंद के दारोगा की परिभाषा पूरी तरह बदल गयी है। कौन क्या कर रहा है किसके प्रति कौन जिम्मेदार है…इसका पता ही नहीं चलता।
नमक का दारोगा की ही तरह…वफादारी को कसौटी पर कसने का एक मामला बिलासपुर में भी देखने को मिला। शुक्रवार को बस स्टैण्ड के पास कुछ लोग अवैध शराब की बिक्री कर रहे हैं। ऐसी कुछ सूचना अधिकारी को मिली। आनन-फानन में जंगी टीम बनाकर धरपकड़ के लिए मैदान में भेज दिया गया। चूंकि खबर मुखबिर से मिली थी। इसलिए उसका सच होना सौ प्रतिशत था। टीम भेजने का अर्थ भी था कि अवैध कारोबार पर लगाम कसा जाए। लोगों को नए कमांडर का भी अहसास हो। लेकिन हुआ उल्टा…आधा दर्जन दारोगाओं ने सात पेटी अवैध शराब को कुछ पाव में बदल दिया।
टीम का हृदय परिवर्तन का कारण क्या था…इसका जवाब या तो दारोगा ही दे सकता है या फिर नया नवेला अनुभवी अधिकारी। सूत्रों की माने तो कार्रवाई के दौरान किसी का फोन आया था। इसलिए अवैध शराब की धारा को नान वेलेवल से वेलेवल की ओर मोड़ दिया गया।
आरोपी को जुर्माना लगाकर तत्काल छोड़ दिया गया। मामला गोपनीय था कि इसलिए कार्रवाई की भनक पत्रकारों को भी नहीं हुई। टीम कामांडर की माने तो सात पेटी की खबर उन्हें भी नहीं है। होने का सवाल भी नहीं उठता क्योंकि उस समय उनका मोबाइल भी बंद था। जाहिर सी बात है कि मोबाइल बंद होने के बाद प्रेमचंद के दारोगा के पास असीम शक्ति आ गयी। धाराओं को मो़ड़ दिया गया। टीम कमांडर की माने तो कार्रवाई मामूली थी। इसलिए 34-1 का ही मामला दर्ज किया गया।
जानकारी के अनुसार कार्रवाई के दौरान दारोगाओं ने कुल सात पेटी शराब बरामद किया था। आबकारी एक्ट के अनुसार जितनी शराब बरामद हुई उसमे दस लोगों पर नान वेलेवल धारा के तहत आरोप तय किया जा सकता था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब तो अधिकारी भी कहने लगे हैं कि खबर झूठी है। मैने कोई टीम ही नहीं भेजी। ऐसे में लेन देन का सवाल ही नहीं उठता।
बहुत कुरेदने पर तीन दिन बाद अधिकारी ने बताया कि कार्रवाई नियमानुसार हुई है। फिर भी मामले में जांच की जाएगी। लेन-देन करने वालों को छोड़ा नहीं जाएगा। फिलहाल यह समझ में आ गया कि नमक का दारोगा अब दारू का दारोगा बन गया है। कार्रवाई के साथ समय भी बदल गया है। नमक का दारोगा अस्सी साल पुरानी कथा है…निश्चित तौर पर अब वह प्रासंगिक भी नहीं है । जमाना दारू के दारोगा का है। जाहिर सी बात है कि कहानी की दिशा भी नई होगी। दारू के दारागाओं ने वहीं किया..जो शायद समय की मांग थी…….