पत्रकार हत्या:सीबीआई जांच पर कैसे भरोसा करें हम

Shri Mi
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IMG-20160204-WA0035(शशिकान्त कोंहर) बिहार के सिवान में हिन्दुस्तान समाचार पत्र के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के मामले की सीबीआई जांच की घोषणा से पत्रकारों को बहुत अधिक खुश होने की जरूरत नहीं है।और न उन्हे कोई ऐसी खुशफहमी ही पालनी चाहिये कि सीबीआई के धार खो चुके अफसर इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे ।सरकार के इस निर्णय से बिहार समेत पूरे देश के पत्रकारों ने भले ही राहत की सांस ली होगी लेकिन जहां तक छत्तीसगढ और बिलासपुर के पत्रकारों की बात है, सीबीआ्रई की कार्यकुशलता को लेकर हमें ऐसी कोई खुशफहमी नहीं है। और न इस बात का सौ टके भरोसा भी नहीं  है कि वह सिवान में हुई पत्रकार की हत्या के आरोपियों को बनेकाब कर देगी।  
ranjan-580x395BP2205506-largeऐसा कहने पर हम इसलिये मजबूर है क्योंकि हम अपने एक पत्रकार साथी की हत्या के मामले की जांच कर रही सीबीआई और उसके नाकाबिल व भ्रष्ट अफस्ररों का तमाशा बीते छह साल से देख रहे हैं ।दरअसल बिलासपुर और छत्तीसगढ के पत्रकार आज से छह साल पहले  उन्नीस दिसम्बर 20़10 की दर्म्यानी रात को बिलासपुर प्रेस क्लब के सचिव स्वर्गीय सुशील पाठक की हत्या के मामले में सीबीआई की गद्दारी देख चुके हैं।पहले हमें भी उम्मीद थी कि सीबीआई ही पुलिस के द्वारा सबूतों के साथ खिलवाड कर लीपापोती किये गये इस मामले का खुलासा कर सकती है।

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sushil_pathak_इसके लिये हमने छत्तीसगढ के विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों की मदद ली और मुख्यमंत्री डा रमनसिंह ने विधानसभा में स्वर्गीय सुशील पाठक हत्याकाण्ड की जांच कराने की घोषणा की।इसके बाद हमे लगा कि जैसे हमने जंग जीत ली है और सीबीआई। इस हाईप्रोफाइल हत्याकाण्ड के पीछे छिपे हत्यारों और उनकी मदद करने वाले सफेदपोश लोगों को बेनकाब कर देगी।लेकिन सीबीआई के अफसरों ने मामले की ईमानदारी से जांच करने की बजाय बिलासपुर के लोगों को जांच और पूछताछ की आड में डराने और भयादोहन कर लम्बी रकम ऐंठने का एक  सिलसिला ही शुरू कर दिया।पता नहीं उन अधिकारियों ने किन किन से कितनी उगाही की, लेकिन बाद में एक पीडित की शिकायत पर सीबीआई के दो जांच अधिकारियों को दिल्ली से आई सीबीआई की टीम ने घूस लेते हुए रंगे हाथ ही पकड लिया और आज वो जेल में हैँ। इस घटना से शर्मसार हुई सीबीआई ने  इसके बाद सीबीआई मुख्यालय से स्वर्गीय सुशील पाठक हत्याकाण्ड की जांच के लिये दूसरी टीम भेजी।

                                   लेकिन यह टीम भी नाकार ही साबित हुई और इसने भी मामले को थका डालने तक लम्बा खींचने और रफा-दफा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके बाद फिर एकाएक सीबीआई की ओर सें मामले की क्लोजर रिपोर्ट के लिये 20 दिसम्बर 2015 को कोर्ट में आवेदन कर दिया गया।यह गनीमत है कि सीबीआई की दोगली भूमिका और घूसखोरी के तमाशे को देखते हुए बिलासपुर प्रेस क्लब व स्वर्गीय सुशील पाठक पत्नी संगीता पाठक ने हाईकोर्ट में सीबीआई के खिला्रफ मामला लगा रखा है, जिसमें इस मामले की जांच हाईकोर्ट की निगरानी में  उच्च स्तरीय एसआईटी से जांच कराने के लिये आग्रह किया गया है।और इस तरह नाकाबिल पुलिस व घूसखोर सीबीआई अफसरों के धतकरमों के कारण  स्वर्गीय सुशील पाठक की हत्या के छह साल बाद भी बिलासपुर के पत्रकारों, स्वर्गीय पाठक के परिवार और बिलासपुर की जनता को इस मामले के बेपर्दा होने का बेसब्री से इंतजार है।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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