बिलासपुर– शहर की निकासी व्यवस्था सुधर नहीं रही है..चले हैं राहगीर डे मनाने। बिलासपुर की जनता मेहनतकश है। शहर को अभी महानगरी संस्कृति का रोग नहीं लगा है। यदि वर्जिश ही करना है तो आयुक्त और महापौर को किसी पार्क या मैदान को गोद लें लेना चाहिए। बिलासपुर को नया रोग क्यों बांट रहे हैं। यह सब ध्यान बांटने के लिए किया जा रहा है। बिलासपुर की जनता बारिश का नाम सुनते ही कांप जाती है। बरसात के दिनों में शहर की नालियां…नदियों में बदल जाती है। सिवरेज ने जीवन को नरक बना दिया है। सफाई व्यवस्था पूरी तरह से चौपट है। ठेकेदारों की चांदी कट रही है। अधिकारियों को जेब भरने से फुर्सत नहीं है। लेकिन आयुक्त महोदय को इससे कोई लेना देना नहीं है। बिलासपुर का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। यह बातें कांग्रेस पार्षद दल प्रवक्ता शैलेन्द्र जायसवाल ने कही है।
शैलेन्द्र जायसवाल ने बताया कि गुडगांव में राहगीर डे का रोग आज से एक दशक से अधिक पहले लगा है। लगना स्वाभाविक भी है। गुड़गाव में मल्टीनेशनल कंपनी हैं। कर्मचारियों को सातों दिन काम करना पड़ता है। वक्त कम होता है। पैसा अधिक होता है। लोग एक निश्चित दिन तरोताजा होने सड़क पर राहगीर डे मनाते हैं। गुडगांव की सड़कें अच्छी हैं। प्रापर यातायात व्यवस्था है। आवागमन पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। धीरे धीरे यह रोग कनाट प्लेस से होकर दिल्ली का अंग बन गया। अब दिल्ली के पढ़े लिखे लोग बिलासपुर में भी राहगीर डे थोपना चाहते हैं।
शैलेन्द्र जायसवाल ने बताया कि बिलासपुर की ना तो यातायात व्यवस्था ठीक है। ना ही सफाई व्यवस्था को ठीक कहा जा सकता है। जबकि सफाई के नाम पर प्रशासन ने लाखों रूपए पानी की तरह बहाया है। नालियां जाम हैं। शहर गंदगी के ढेर पर बैठा है। मानसून सिर पर है। लेकिन निगम को शहर की व्यवस्था सुधारने की वजाय राहगीर डे मनाने का भूत सवार है। इस बार भी निगम की जनता को बरसात से जूझना पड़ेगा। नालियों का पानी घर में घुसेगा। शहर को राहगीर डे से अधिक साफ सफाई, बिजली.पानी और गुड गवर्नेस की जरूरत है। लेकिन आयुक्त को इसकी कोई चिंता नहीं है।
शैलेन्द्र ने बताया कि निगम आयुक्त को विकास पर ध्यान देने की जरूरत है। ना की राहगीर डे मनाने की। जितना खर्च राहगीर डे पर होगा उससे किसी वार्ड का भला हो सकता है। अच्छी तरह से मालूम है कि राहगीर का भूत जल्दी ही उतर जाएगा। सब कुछ जानते हुए भी कुछ भाजपा पार्षद और एल्डरमैन आयुक्त की हां में हां मिला रहे हैं। क्योंकि उन्हें बिलासपुर वासियों के दर्द का अहसास कम अपने हित का ध्यान ज्यादा है।
राहगीर डे का विरोध करते हुए जायसवाल ने कहा कि पिछले दो साल से बिलासपुर दिशाहीन सफर पर है। जनता धूप, धूल और प्यास से परेशान है। शिकायत के बाद भी महापौर और आयुक्त पर कोई असर होता दिखाई नहीं दे रहा है। गर्मी बीतने की ओर है.. अभी तक प्याऊ की व्यवस्था निगम नहीं कर पाया है। निगम प्रशासन हमेशा बजट का रोना रोता है। मेरा सवाल आयुक्त से है कि राहगीर डे में बजट कहां से आएगा।
शैलेन्द्र ने बताया कि बिलासपुर की जनता को राहगीर का विरोध करना चाहिए। कुछ लोगों के मनोरंजन के लिए जनता को परेशानी में डालना ठीक नहीं है। यदि महापौर और आयुक्त को राहगीर डे मनाना ही है तो किसी पार्क या मैदान में मनाएं। शहर के एक मात्र ठीक ठाक सड़क को तीन घंटे के लिए क्यो हाइजेक करना चाहते हैं। समझने वाली बात है कि बिलासपुर में गुड़गांव की तरह सड़क नहीं है। यहां पर्याप्त मैदान हैं। वहीं जाकर निगम अमला राहगीर डे मनाएं। जनता को परेशान ना करे।