बिलासपुर–आदिकाल से भारत में जलस्रोतों को उच्चतम स्थान हासिल है। बड़े बड़े सेठ साहूकार राजा महराजाओं ने अपने जीवन में तालाब बावली निर्माण को अहम स्थान दिया है। ग्रंथों में प्रमाण मिलते हैं कि तालाब की रक्षा यक्ष किया करते थे। भारतीय संस्कृति में तालाबों का निर्माण और रक्षा परमार्थ माना गया है। भूखे को खाना और प्यासे को पानी देना भारतीय संस्कृति की पहचान रही है। समय के साथ सोच ने करवट बदला….परमार्थ पर स्वार्थ की भावना ने ज़ड़ जमा लिया । बाजारवाद अपने हितों के लिए नए नए तर्क गढ़ लिए । धीरे धीरे बने बनाए जल स्रोत खत्म होने लगे। लेकिन भारतीयनगर में सर्वसमाज के सामने स्वार्थ को मुंह की खानी पड़ी है।
लोगों के भगीरथ प्रयास से माधव तालाब को बाजारवादी संस्कृति से बचा लिया गया है। जानकारी के अनुसार माधव तालाब को पाटकर निगम सब्जीबाजार बनाना चाहता था। स्थानीय लोगों और कुछ समाजसेवियों ने अपने दृढ़इच्छाशक्ति से वर्तमान व्यवस्था को ना केवल घुटना टेकने को मजबूर कर दिया…बल्कि माधव तालाब को बिना किसी सरकारी सहायता से बिलासपुर का सबसे खूबसूरत तालाब बना दिया।
बताया जाता है कि माधव तालाब का विस्तार किसी जमाने में साढ़े चार एकड़ जमीन पर था। एक जमाना था कि इसकी गिनती बिलासपुर के सुन्दर तालाबों में होती थी। समय ने करवट लिया…जैसे जैसे लोगों की सोच सामुहिक से पारिवारिक हुई…तालाब का दायरा घटकर मात्र तीन एकड़ हो गया। शासन की उपेक्षा ने तालाब को भारतीय नगर का सिवरेज टैंक बना दिया। स्थानीय वरिष्ठ और संवेदनशील नागरिकों ने ध्यान नहीं दिया होता तो आज माधव तालाब के सीने पर मल्टीप्लेक्स या सब्जी मार्केट बन गया होता।
दो महीने पहले जब लोग फोटो खिचाने के लिए और खुद के लिए समाजसेवी तमगा हासिल करने तालाब बचाओं अभियान में मस्त थे। ठीक उसी समय भारतीयनगर के लोग माधव तालाब को नया स्वरूप दे रहे थे। कुछ समाजसेवक और चंद बुजुर्गों ने एक होकर बिलासपुर के धरोहर को बचा लिया। सफाई के पहले साढ़े तीन एकड़ का तालाब कहीं दिखाई ही नहीं देता था। बड़े-बड़े घास और जलकुम्भियों ने तालाब पर कब्जा कर लिया था। निगम ने भी ताालाब को पाटकर सब्जी मार्केट बनाने का फैसला कर लिया था। भनक लगते ही भारतीयनगर के संवेदनशील जनता कराह उठी। एक दिन सभी ने मिलकर तालाब को वास्तविक स्वरूप में लाने का फैसला कर लिया।
शिक्षाविद सरोज मिश्रा ने बताया कि निर्णय आसान था लेकिन आर्थिक तंगी और उम्मीद से अधिक मेहनत से हम लोग परेशान हो गए। जल्द ही कई ऐसे लोग सामने आए और उन्होने हमारा हौंसला बढाया। दानदाताओं ने फैसला किया कि तालाब में जितना भी खर्च होगा मिलकर वहन करेंगे। जिसका जितना सामर्थ्य होगा वह आर्थिक सहयोग देगा। देखते ही देखते करीब ढाई लाख रूपए इकठ्ठे हो गए। मजेदार बात तो यह है कि सहयोग देने वालों में सभी धर्म के लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। किसने कितना आर्थिक सहयोग दिया जाहिर करने से मना कर दिया।
सरोज मिश्रा बताते हैं कि सहयोग की भावना ने मुझे अन्दर तक द्रवित कर दिया। मेरा और साथियों का हौंसला भी बढ़ा। कई लोग तो हमारे कालोनी के बाहर के है जिन्होंने गुप्त रूप से आर्थिक सहयोग किया। जबकि इस कालोनी से उनका कोई लेना देना नहीं था। जसबीर गुम्बर,कमलजीत सिंह अजमानी इन नामों में प्रमुख हैं।
सरोज मिश्रा ने बताया कि किसने कितना सहयोग दिया यह तो जाहिर नहीं कर सकता लेकिन नाम जरूर बता सकता हूं। जिन्होने माधव तालाब को बचाने अपनी जमा पूंजी में से जनहित में खुले हाथ से आर्थिक सहयोग दिया। इनमें कासिम अली भाई ,ध्रुव कोरी, धनंजय झा, शायर मंजूर अली राही,पीर मोहम्मद भाई ,मोहम्मद सलीम भाई ,निसार सिद्धिकी,रामचन्द्र शुक्ला,कमलजीत अजमानी,जसबीर गुम्बर,इब्राहिम खान भाई ,इरशाद अहमद सिद्धिकी ,हाजी शेख अली भाई ,पार्षद संजय गुप्ता,अटल श्रीवास्तव,मोहन हनूप जैसे लोगों के नाम शामिल हैं।और भी कई नाम हैं जिसे मैं याद नहीं कर पा रहा हूं। कुछ लोगों ने तो नाम बताने से भी मना किया है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और समाजसेवी जसबीर गुम्बर ने बताया कि मेरा भारतीय नगर में हमेशा आना जाना रहता है। सड़क क्या तालाब के मेड़ पर खड़े होने के बाद भी तालाब दिखाई नहीं देता था। लेकिन आज लोगों ने तालाब को अपने दम पर जिंदा कर लिया है। गुम्बर ने बताया कि अब हमारे सामने तालाब को बचाने की चुनौती है। मेड़ों पर लोगों ने अवैध कब्जा कर लिया है। घरों का गंदा पानी तालाब में डाला जारहा है। जिसके चलते खरपतवारों ने तालाब पर कब्जा कर लिया था। शिक्षाविद् सरोज मिश्रा ने कुछ लोगों के सहयोग से तालाब साफ करने का बीड़ा उठाया…लेकिन गंदगी उम्मीद से अधिक थी। बाद में सहयोग के लिए हाथ बढ़ते गए और देखते ही देखते तालाब अपने मूल स्वरूप में सामने आ गया। तालाब साफ करने में ही केवल ढाई लाख रूपए खर्च हुए। सभी के सहयोग से ढाई लाख रूपए का भुगतान किया गया। जसबीर ने बताया कि मुझे खुशी है कि सरोज मिश्रा के भगीरथ अभियान में उन्हें जुड़ने का अवसर मिला।
सरोज मिश्रा बताते है कि हमने रूपयों के लिए कोई खाता वही तैयार नहीं किया था। प्रति दिन मजदूरों के भुगतान की जिम्मेदारी संबधित लोगों ने आगे बढ़कर वहन कर लिया। काम में पूरी तरह से पारदर्शिता का ध्यान रखा गया। ऐसे में विवाद का कोई सवाल ही उठता था। सरोज ने बताया कि कई बुजुर्गों ने तालाब को बचाने दवा दारू के पैसों को भी मजदूरी में लगा दिया। मंजरू अली राही, निसार सिद्दिकी, पीर भाई , शेख भाई इरशाद जी और जसबीर भाई ने उनका मनोबल बढ़ाया। भरपूर समर्थन दिया।
सरोज मिश्रा बताते हैं कि कांग्रेस नेता अटल श्रीवास्तव ने लगातार तीन दिन तक जेसीबी की सुविधा दी। जिसके चलते तालाब की सफाई तेजी से हुई। साथ ही उन्होने आश्वासन दिया है कि जनहित में जब भी उनकी जरूरत हो बेहिचक याद किया जाए।
सरोज मिश्रा ने बताया कि माधव तालाब तिफरा पंचायत की जमीन है। जानकारी मिली की नगर निगम शहर का हिस्सा बनाकर तालाब को पाटना चाहता है। निगम का तर्क था कि स्थानीय लोगों को तालाब की उपयोगिता नहीं है। जबकि भारतीय नगर का जलस्तर नीचे चला गया है। इस बार दर्जनों घर के पंप सूख गए। किसी समय इस तालाब में बच्चे नहाया करते थे। जैसे ही जानकारी मिली कि तालाब को पाटने की तैयारी हो रही है उन्हें बहुत पीड़ा हुई। मैने लोगों के सहयोग से तालाब बचाने का बीड़ा उठाया। निगम कमिश्नर,कलेक्टर और संभागायुक्त के दरवाजे पर बार बार नाक रगड़ा। अंत में संभागायुक्त के आदेश के बाद तालाब को बचाया जा सका।
जसबीर गुम्बर ने बताया कि सरकार एक तरफ तो सरोवर धरोहर बचाने की बात कर रही है। दूसरी तरफ तालाब के रखरखाव पर ध्यान नहीं देती है। मनरेगा से तालाब बनाए जा रहे हैं। करोड़ों खर्च के बाद भी तालाब कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। यदि तालाब जैसा कुछ होता तो जलस्तर इतना नीचे नहीं जाता। बेहतर होगा कि सरोज और अन्य समाजसेवियों के सहयोग से पुराने जर्जर हो चुके तालाबों का रखरखाव किया जाए। जनता को इसका सीधा फायदा मिलेगा। जलस्तर भी बढ़ेगा। जसबीर बताते हैं कि सरोज मिश्रा की सोच है कि तालाब के चारो तरफ पचरी का निर्माण किया जाए। उनकी इच्छाओं का सम्मान किया जाएगा। यदि सरकार ने सहयोग नहीं किया तो जनसहयोग से माधव तालाब के चारो तरफ पचरी का निर्माण किया जाएगा। चाहे कितनी राशि खर्च क्यों ना हो। बुजुर्गों और सर्वधर्म के लोगों के मेहनत को व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा।
सरोज मिश्रा ने बताया कि जब तक पचरी का निर्माण नहीं होगा तब तक तालाब को अतिक्रमण से मुक्त नहीं माना जा सकता है। आज संयुक्त अभियान से तालाब को बचा तो लिया गया लेकिन बाद में कौन बचाएगा। इसलिए पचरी का निर्माण जरूरी है। यदि शासन की कृपा हो जाए तो यह तालाब बंधवापारा तालाब से भी ज्यादा खूबसूरत होगा। सरोज ने बताया कि इसके लिए वे युवा और वुजुर्ग साथियों के साथ मंत्री और प्रशासन के अधिकारी से मिलेंगे। तालाब को सुंदर बनाने और बचाने का निवेदन करेंगे। यदि सहयोग नहीं मिला तो पेट काटकर तालाब की विरासत को बचाएंगे। क्योंकि तालाब किसी धर्म और समाज का नहीं होता…