खेल बिना कोई जीवन नहीं

Chief Editor
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khel 1♦सीवीआरयू में मनाया गया राष्ट्रीय खेल दिवस
♦खेल विभूति से अलंकृत लक्ष्मीकांत पाण्डेय ने बताया जीवन में खेलो में महत्व
बिलासपुर। राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर डाॅ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय में व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर खेल विभूति से अलंकृत लक्ष्मीकांत पाण्डेय ने जीवन में खेल के महत्व पर विषय पर व्याख्यान दिया। विद्यार्थियों ने मेजर ध्यान के आदर्शो को आत्मसाध करके खेल में प्रदेश और देश में को नए आयाम तक पहुंचाने का संकल्प लिया।
व्याख्यान में खेल विभूति से अलंकृत लक्ष्मीकांत पाण्डेय ने विद्यार्थियों को बताया कि खेल की शुरूआत पालने में ही हो जाती है। शरीर का 85 प्रतिशत भाग मासपेशियों से बना है और मांसपेशियां गति और क्रियाशीलता चाहती है। इसलिए खेल ही जीवन होता है और खेल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। श्री पाण्डेय ने बताया कि शरीर का पूर्ण अर्थ मन, चित्त, बुद्वि,अहंकार और आत्मा है। इन सब से ही शरीर बनता है। खेल से ही इन सबको ताकत मिलती है और ताकत से शरीर स्वस्थ्य रहता है। इसलिए जीवन में खेले का महत्व सबसे ज्यादा है।khel 2 श्री पाण्डेय ने मेजर ध्यानचंद जयंती के अवसर पर हाॅकी के जादूगर के याद करते हुए श्री पाण्डेय ने उनके जीवन में खेल और संघर्ष के बारे में विद्यार्थियों को बताया। उन्होंने ध्यानचंद के जीवन के कई पहलू को विद्यार्थियों के सामने रखा। जिसमें खेल प्रेमी होने के साथ देश प्रेम साफ नजर आ रहा था। इस अवपर पर विश्वविद्यालय के सभी विभागों के विभागाध्क्ष,प्राध्यापक, अधिकारी-कर्मचारी और बड़ी संख्या में खिलाड़ी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में श्री पाण्डेय को शाल व श्रीफल से सम्मानीत किया गया।
◊संकल्पित भाव से खेल को जीवन में उतारें-कुलसचिव
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव शैलेष पाण्डेय ने विद्यार्थियों से कहा कि आज दुनिया के सामने हम खेल में काफी पीछे हैं। इसका कारण यह नहीं है कि हमारे खिलाड़ी खेलते नहीं है। कारण सिर्फ इतना है कि खिलाडि़यों में आत्मविश्वास की कमी है और खिलाडि़यों के हौसले कमजोर हैं। इसलिए हर खिलाड़ी को संकल्पित भाव से खेल को अपने जीवन में उतारना चाहिए, ताकि वह जीवन में खेल में सब कुछ प्राप्त कर सके। खेल को जीवन के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार करने की जरूरत है। श्री पाण्डेय ने कहा कि आज का दिन खेल को समझने और सीखने का दिन है। इसलिए ही हम आज के दिन को खेल दिवस के रूप में मनाते हैं।
◊ध्यानचंद जैसे खिलाडि़यों के कारण ही खेल आज जिंदा-कुलपति
कुलपति डाॅ. आर.पी.दुबे ने मेजर ध्यानचंद को याद करते हुए कहा कि आज उनके कारण ही खेल जिंदा है। जिन्होंने हिटलर के सामने जर्मनी को हराया और उनके जर्मनी की नागरिकता जैसे प्रलोभन को ठुकराकर सामने देश भक्ति का मान रखा। जीवन भर भारत के लिए खेल कर दुनिया के सामने खड़ा किया। आज ऐसे ही ध्यानचंद की जरूरत है।

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