पत्रकार सुरक्षित नहीं..तो देश भी सुरक्षित नहीं-दास

BHASKAR MISHRA
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IMG-20160829-WA0093बिलासपुर—सोशल मीडिया को विश्वनीय और जिम्मेदार बनना होगा। प्रेस को स्वाधीनता मिलनी चाहिए। स्वाधीनता का उपयोग किस दिशा में हो..प्रेस को जिम्मेदारी के साथ समझना और सोचना होगा। प्रेस कांउसिल का प्रयास है कि जिम्मेदार पत्रकार सिद्धांत की पत्रकारिता करे। किसी को भय में रखकर या भय में रहकर पत्रकारिता करना ठीक नहीं है। जो सिद्धांत की पत्रकारिता करेगा समाज उसकी तरफ उम्मीद से देखेगा। आजादी से अब तक पत्रकारों ने जिम्मेदारी के साथ भूमिका को निभाया है। अब कुछ भटकाव की स्थिति है। भटकाव के कई कारण हो सकते हैं। इसलिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने कोड कंडक्ट लाया  है। इसकी वजह प्रेस और पत्रकारिता को बदनाम करने वालों को हतोत्साहित करना है। यह बातें प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य प्रभात कुमार दास ने सीजीवाल से विशेष बातचीत में कही। उन्होंने बताया कि प्रेस काउंसिल का गठन प्रेस फ्रीडम के लिए नहीं बल्कि फ्रीडम ऑफ प्रेस के लिए बनाया गया है।

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                                 सीजीवाल प्रमुख संपादक रूद्र अवस्थी के सवालों का जवाब देते हुए प्रभात कुमार दास ने कहा कि सोशल मीडिया असरदार और जागरूक है। लेकिन जिम्मेदार नहीं है। जिम्मेदार विहीन पत्रकारिता समाज के लिए ठीक नहीं है। सोशल मीडिया को अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। बिना तथ्य और खोजबीन के किसी के खिलाफ अनाप शनाप लिखना…अच्छी पत्रकारिता नहीं है। इससे प्रेस की विश्वसनीयता प्रभावित होती है। बहुत लोग सोशल मीडिया की शक्ति से परिचित हैं। बेहतर तरीके से अपनी जिम्मेदारियों को निभा भी रहे हैं। प्रेस काउंसिल की नज़र सोशल मीडिया पर है। काउंसिल महसूस करता है कि सोशल मीडिया को जिम्मेदार बनना ही होगा। किसी की पगड़ी उछालने का नाम पत्रकारिता नहीं है। दोषियों का दोष छिपाना भी गलत है। सैद्धान्तिक पत्रकारिता करने वालों के साथ प्रेस काउंसिल का पूरा सहयोग था… है और रहेगा। प्रेस काउंसिल का मुख्य काम पत्रकारों के हितों की रक्षा करना है।

                    प्रेस काउंसिल के सदस्य प्रभात कुमार दास ने बताया कि जस्टिस चन्द्रमौली कुमार प्रसाद के चैयरमैन बनने के बाद प्रेस काउंसिल की कार्यप्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन आया है। जस्टिस प्रसाद के प्रयास से काउंसिल के सदस्यों ने देश के 12 राज्यों का भ्रमण किया। पत्रकारों से रूबरू होकर कामकाज में आने वाली परेशानियों को समझने का प्रयास किया। पत्रकारों के हितों के संवर्धन में आवश्यक नियम कायदे तैयार किये गए। दास ने बताया कि जस्टिस प्रसाद का मानना है कि पत्रकार देश और समाज का आइना होता है। दास के अनुसार जस्टिस चन्द्रमौली कुमार प्रसाद ने साफ सुथरी और निर्भिक सैद्धांतिक पत्रकारिता का समर्थन किया है। उन्होने अपने कार्यप्रणाली से ना केवल पत्रकारों बल्कि आनेवाली पीढियों के लिए नजीर पेश किया है। जबलपुर हाईकोर्ट में आज भी जस्टिस चन्द्रमौली कुमार प्रसाद को  उनके कार्यकाल और जजमेंट को लेकर याद किया जाता है। उन्होने अपने जीवन में सिद्धान्तों को प्राथमिकता के आधार पर लिया है। इसका साकारात्मक प्रभाव प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया पर चैयरमैन बनने के बाद दिखाई देने लगा है।

                         प्रभात कुमार दास ने बताया कि जस्टिस चन्द्रमौली कुमार के प्रयास से ही जबलपुर में अगस्त माह में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की बैठक हुई। बैठक में पत्रकारों से संबधित 93 प्रकरणों को पेश किया गया। 85 मामलों का निराकरण भी किया गया। काउंसिल ने मध्यप्रदेश की तर्ज पर छत्तीसगढ़ सरकार को एक हाईपावर कमेटी बनाने को कहा है। हाईपावर कमेटी में पुलिस और सरकार के आलाधिकारी रहेंगे। उच्च अधिकारी पत्रकारों की शिकायतों की जांच करेंगे।  जांच के बाद दोषी पाए जाने पर पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने को कहा गया है। दास ने बताया कि बैठक में जस्टिस चन्द्रमौली कुमार प्रसाद के निर्देश पर हाइपावर कमेटी को छत्तीसगढ़ पत्रकार से जुड़े एक मामले में जांच करने को कहा गया है। सरकार को स्पष्ट निर्देश भी दिया है कि पत्रकारों से जुड़े किसी भी मामले को छःमहीने के भीतर निराकरण किया जाए।

                            रूद्र अवस्थी के एक सवाल के जवाब में प्रभात कुमार दास ने बताया कि ब्लैकमेलिंग को पत्रकारिता नहीं कहते। प्रेस काउंसिल की रीति नीती में बहुत बदलाव होने वाला है। काम शुरू भी हो गया है। उन्होनें बताया कि आम आदमी…ही नहीं…पत्रकारों को भी प्रेस काउंसिल की भूमिका की बहुत अधिक जानकारी नहीं है। जस्टिस चन्द्रमौली प्रसाद बहुत सक्रिय चैयरमैन हैं। उनकी नजर ना केवल प्रेस बल्कि पत्रकारों की गतिविधियों पर रहती है। उन्होने बताया कि जस्टिस श्री चन्द्रमौली कुमार प्रसाद के कार्यकाल में प्रेस कांउसिल पूरी सक्रियता के साथ काम कर हा है। इस दौरान ऐसे कई फैसले हुए…जिससे पत्रकारिता के क्षेत्र में काफी मदद मिली है। उनकी पहल पर ही लंबित मामलों का त्वरित निराकरण किया गया है। मीडिया से जुड़े मुद्दों पर प्रेस काउंसिल ने स्वस्फूर्त कार्रवाई की है। दास ने बताया कि कांउसिल ने शिकायतों को ही नहीं बल्कि पत्र पत्रिकाओं में छपी खबरों को संज्ञान में लिया है। नागालैण्ड में पत्रकारों के खिलाफ आसाम राइफल्स के तुगलकी फरमान को काउंसिल ने स्वमोटो गंभीरता से लिया। बैठक के बाद आसाम राइफल्स को अन्डर ग्राउन्ड पत्रकारों के खिलाफ जारी आदेश को वापस लेना पड़ा। महाराष्ट्र में एक आदेश के अनुसार आप्सन में दिखने वाले पत्रकारों को देशद्रोही माना जाएगा। काउंसिल के प्रयास से सरकार को आदेश वापस लेना पड़ा।

            लोगों की मानसिकता बन गयी है पत्रकार कुछ भी करें उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती…सवाल का जवाब देते हुए दास ने बताया कि यह गलत मानसिकता है। पत्रकार दोषी है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। जबलपुर में पत्रकारों से जुड़े करीब 93 प्रकरण पेश किये गये…पत्रकार पर भी कानून लागू होता है…..वह भगवान नहीं है। सिद्धान्त के खिलाफ पत्रकारिता करने वालों पर कार्रवाई होगी। काउंसिल की नजर इस बात पर रहती है कि पैसे और रसूखवालों ने पत्रकार को फंसाने के लिए झूठा प्रकरण तो नहीं बनाया है।

                          ऐसा माना जाता है कि प्रेस काउंसिल दन्त और नखविहीन शेर है….रूद्र अवस्थी के सवाल पर दास ने कहा कि यह सब बनाए गए जुमले हैं। प्रेस काउंसिल ना तो दंत विहीन और ना ही नख विहीन । पिछले कुछ गतिविधियों और कड़वे अनुभवों के बाद कुछ लोगों ने इस जुमले को प्रेस काउंसिल पर थोप दिया होगा। जस्टिस चन्द्रमौली कुमार प्रसाद के चैयरमैन बनने के बाद सारी शिकायतें दूर हो गयी हैं…जल्द ही असर भी दिखने लगेगा। काउंसिल बहुत शक्तिशाली है। उसके पास नख भी है और दांत भी है।

                                             पत्रकारिता का स्तर गिरा है…यह जानते हुए भी प्रेस काउंसिल स्तर को सुधारने के लिए क्यों नहीं किया जा रहा है।  प्रभात कुमार दास ने बताया कि अभी हाल में एक बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में पत्रकारिता के कुछ मानदण्ड तय करने पर बहस हुई। चर्चा के दौरान महसूस किया गया कि पत्रकारिता को डिग्री या उम्र की सीमा में बांधने से विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अभी हमारा लोकतंत्र कई मामलों में चुप है। विधानसभा या लोकसभा चुनाव के लिए उम्र और डिग्री निर्धारित नहीं है। ऐसे में पत्रकारिता को सीमा में बांधना हाल फिलहाल संभव नहीं है। हां भविष्य में ऐसा हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। मेरा मानना है कि मीडिया में फिल्ट्रेशन जरूरी है। मीडिया का दुरूपयोग हो रहा है। फिल्ट्रेशन के बाद पत्रकारिता को चार चांद लगेगा। कम से कम गलत और गैर जिम्मेदार लोगों के हाथ में कार्ड तो नहीं होगा।

                                  छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के साथ पुलिस अन्याय कर रही है…कई पत्रकारों को जेल की हवा खानी पड़ी है…क्या काउंसिल ने मामले को संज्ञान में लिया..। प्रभात कुमार दास ने बताया कि काउंसिल ने जबलपुर में आयोजित बैठक में सारे मामलों को संज्ञान में लिया है। छत्तीसगढ के जिम्मेदार पुलिस  अधिकारियों को तलब किया। काउंसिल के सामने प्रशासन ने अपना पक्ष रखा। काउंसिल ने प्रदेश सरकार को  हाइपॉवर कमेटी बनाने को कहा है। कमेटी के जिम्मेदार अधिकारी पत्रकारों से जुड़े प्रकरणों को जांच करेगें। 6 सप्ताह के भीतर काउंसिल के सामने रिपोर्ट पेश करेंगे।

                        पत्रकारों के खिलाफ प्रताड़ना के मामले इन दिनों कुछ ज्यादा ही सुनने में आ रहे हैं..काउंसिल को क्या इसकी खबर है। दास ने बताया कि 2011 में देश भर में पत्रकारों से चर्चा के बाद पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट .सरकार के सामने पेश कर दिया गया है। देर सबेर सरकार को रिपोर्ट करना ही होगा। रिपोर्ट के अनुसार पत्रकारों के खिलाफ स्थानीय एसपी और आईजी लेबल के अधिकारी छानबीन करेंगे। दोषी पाए जाने और सरकार को संज्ञान में लाने के बाद पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होगा। मामले को फास्ट ट्रैक अदालत की तर्ज पर चलाने को कहा गया है। दास ने बताया कि जिस देश में पत्रकार सुरक्षित नहीं है…यकीन मानिए वह देश भी सुरक्षित नहीं रहेगा। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए प्रशासन को कानून बनाना ही होगा।

                               दास ने कहा कि सोशल मीडिया की अभी तक परिभाषा तय नहीं हुई है। परिभाषा का गढ़ा जाना जरूरी है। इसके लिए कुछ नियम और कानून बनना जरूरी है। इसकी शक्ति को नजरअंदाज नहीं किया जासकता । पत्रकारिता के कुछ मापदण्ड है…सोशल मीडिया उसे पूरा नहीं करता है। किसी कि पगड़ी उछालने का नाम पत्रकारिता नहीं है।

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