“अँधेरे में” जी गई एक कविता…

Chief Editor
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IMG_3693IMG_3685बिलासपुर।कवि गजानन माधव मुक्तिबोध की कालजयी रचना  “अँधेरे में”  की सैकड़ों पंक्तिया…इन पंक्तियों का बिना रुके पाठ…वह भी रंगमंच के कलाकारों के अभिनय के साथ…कहीं एक्टिंग का मर्मस्पर्शी प्रभाव..कहीं लाइट और साउंड का चमत्कृत कर देने वाला संगम…फिर भी मुक्तिबोध की कविता मंच से कहीं गुम नहीं होती…पूरे समय दर्शक उससे बंधा हुआ कविता को महसूस करता है और व्यवस्था पर की गई चोट को जीवंत निहारता है…बिल्कुल अपने करीब…। कला के इस अद्भुत संगम के गवाह बने वो दर्शक , जो मुंगेली रोड पर बने गणेश वाटिका के सभागार में शनिवार की शाम मौजूद थे। मौका था प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अधिवेशन का । जिसकी सांस्कतिक संध्या में अपने बिलासपुर शहर के “अग्रज नाट्य दल” के रंगकर्मियों ने मुक्तिबोध की रचना “अँधेरे में” का नाट्य मंचन किया।

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                                                        IMG_3703IMG_3698मुक्तिबोध की यह कविता काफी लम्बी है और इसे पढ़ते हुए शब्दयात्रा में काफी संभलकर चलना पड़ता है। लेकिन अग्रज नाट्यदल के कलाकारों ने इसे अपने अभिनय में कुछ इस तरह बाँधा कि करीब चालीस मिनट की इस पेशकश में पूरी कविता ही देखने वालों के भीतर उतर गई। कविता की कठिन से कठिन लाइनों  की अदायगी इतने सहज अंदाज में की गई  कि दर्शकों को यह भी पता नहीं चल पाया कि कब वक्त गुजर गया। यह कविता व्यवस्था पर चोट करती है….आजादी के मायने और आम आदमी तक उसकी पहुंच को लेकर सवाल उठाती है..।अंधेरे में चल रही गतिविधियों को हम कैसे  देख पाएंगे और कैसे रोक पाएंगे – इसका अहसास कराती है। आम दिनों से लेकर इमरजेंसी के दिनों तक हर समय चलने वाले अंधेरे के इस खेल को समझने  के लिए सब कुछ है, इस कविता मे…।

                                                      IMG_3690जो अग्रज की इस प्रस्तुति में साफ नजर आया। चेहरे पर रंगरोगन के जरिए अपनी पहचान से दूर हो चुके एक-एक कलाकार ने अपने हाव-भाव और आवाज के जरिए जिस तरह  इसे  पेश किया उसे देख-सुन कर लगा जैसे मुक्तिबोध की कविता प्रगतिशील लेखक संघ के इस मँच पर एक बार फिर जी उठी।… और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ दर्शकों ने जिस तरह से रिस्पांस किया , उससे लगा कि अग्रज की यह कोशिश  पूरी तरह से कामयाब रही।

                                                       white_gbबंगाल से आए एक साहित्यकार नें नाटक के मंचन के बाद प्रतिक्रिया दी कि मुक्तिबोध की इस लम्बी कविता को वे खुद भी करीब सौ बार पढ़ चुके हैं और हर बार उन्हे इस कविता में एक नया अंदाज समझ में आता है। प्रगतिशील लेखक संघ के  मंच पर अग्रज नाट्य दल की यह प्रस्तुति सुनील चिपड़े के निर्देशन में थी। सुनील बताते हैं कि यह कविता लगातार पढ़ी जाए तो उसमें करीब डेढ़ घंटे का समय लगता है। लेकिन इसमें रिपीटीशन को हटाकर एक समय सीमा में बाँधने की कोशिश की गई है। साथ ही स्थानीय कलाकारों के गीत भी शामिल किए गए हैं, जिससे एक तारतम्यता बनी रहे।

                                                    plsप्रगतिशील लेखक संघ के इस आयोजन में पहले दिन यानी शुक्रवार की शाम भी छत्तीसगढ़ अँचल के ख्यातिनाम कलाकारों ने अपनी प्रभावी प्रस्तुति दी थी । इप्टा रायगढ के कलाकारों ने फणिश्वरनाथ रेणु लिखित पंचलैट कहानी का नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत किया।इसी तरह छत्तीसगढ़ के कलाकारों की प्रस्तुति के रूप में पंथी नृत्य को भी काफी सराहना मिली और लोगों ने भरपूर तालियों से कलाकारों का सम्मान किया । हबीब तनवीर अकादमी रायपुर की ओर से प्रस्तुत नाचा गम्मत ने दर्शकों को गाँव की चौपाल पर पहुंचा दिया। देश के कई राज्यों से आए साहित्यकार भी इसके जरिए छत्तीसगढ की इन साँस्कृतिक विधाओँ से रू-ब-रू हुए।

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