पुलिस के सीने में भी है दिल…..

Chief Editor
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IMG_20150603_112506(भास्कर मिश्र)बिलासपुर—- जब पता चला कि मै बिलासपुर का पुलिस कप्तान बनकर आने वाला हूं। बहुत खुशी हुई। उस खुशी को बयान करने के लिए मेरे पास अभी शब्द नहीं हैं। पास आउट होने के बाद मै प्रशिक्षु आईपीएस के रूप में पहली बार बिलासपुर ही आया था। इस शहर से मेरा बहुत गहरा लगाव है। यहां के लोगों ने मुझसे बहुत प्यार किया। जो मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। यदि शासन ने कभी मौका दिया तो फिर बिलासपुर आना चाहूंगा। ये बातें बिलासपुर के पुलिस कप्तान बद्रीनारायण मीणा ने कही। उन्होंने कहा शहर छोड़कर जाने की इच्छा नहीं होती। लेकिन मुझे शासन ने रायपुर में जिम्मेदारी निर्वहन करने को कहा है क्योंकि हम जनता के सेवक हैं इसलिए जाना ही पड़ेगा।

एक दिन पहले ही सरकार ने एसपी मीणा का स्थानांतरण रायपुर के लिया किया है। सीजी वाल से बिलासपुर और उनके बीच के सम्बन्धो पर बधाई देने वालों और अपनी निजी व्यस्तता के बीच बातचीत के दौरान बद्रीनारायण मीणा काफी भावुक नजर आये। इस दौरान उन्होंने जो कुछ भी कहा उसके कुछ अंश इस प्रकार हैं।

सवाल— आप पहली बार बिलासपुर में प्रशिक्षु आईपीएस के रूप में आये थे। जब एसपी बनकर आए तो उस समय आपने क्या सोचा था। कहीं यह तो नहीं कि फिर बिलासपुर आना है।

जवाब— जब बिलासपुर पहली बार आया था तो मेरी नई नई नौकरी थी। उस समय भी शहर उतना ही सुन्दर था। जितना आज है। बात 2004-05 की है और आज साल 2015 है। जाहिर सी बात है कि आज बिलासपुर बहुत बड़ा शहर हो गया है। थानों की संख्या भी बढ़ गयी है। बावजूद इसके यहां के लोग अमन पसंद हैं। लेकिन यहां कई चुनौतियां भी हैं। मै जब पहली बार प्रशिक्षु के रूप में यहां आया तो उस समय इतना जरूर सोचा था एक दिन यहां एसपी बनकर भी आउंगा। वह सपना साकार हुआ। हमारी टीम ने हर संभव प्रयास किये अमन चैन की इस धरती पर अपराध पर अंकुश लगे। कितना सफल रहा मैं नहीं जानता लेकिन इतना सच है कि मुझे यहां के लोगों ने पत्रकारों ने हमेशा सहयोग ही दिया है।

सवाल— आम जनता में पुलिस को लेकर हमेशा से भय रहा है कि वह निदान कम परेशान ज्यादा करती है। क्या आपने कभी बिलासपुर में ऐसा महसूस किया।

जवाब— नहीं…बिल्कुल नहीं…यहां की जनता ने तो मुझे उम्मीद से कहीं ज्यादा सहयोग दिया है। मेरी सोच हमेशा से सीधी रही है…पहले हम सुधरें फिर सब अपने आप सुधर जाएंगे..पुलिस भी तो इंसान है…उससे गलती हो सकती है…जैसा की आम लोगों से होती है…हमने हमेशा से प्रयास किया कि पुलिस और पब्लिक के बीच यदि कम्यूनिकेशन गैप रहेगा…तो कोई भी इस भ्रम को खतम नहीं कर सकता है..हमने यहां पुलिस और पब्लिक के बीच में संबध बनाया है..जिसका परिणाम है कि अब जनता खुलकर अपनी समस्या सामने रखती है..हमें जांच के दौरान यह खुलापन बहुत साथ देता है। आज मै महसूस करता हूं…हमारे और जनता के बीच में बेहतर संबध हैं…बाकी तो आप लोग ही बता सकते हैं कि हमारे बारे में लोग क्या विचार रखते हैं।

सवाल—आप जब यहां आए थे तो कानून व्यवस्था पर लोग उंगुलियां उठा रहे थे।हत्याओं का सिलसिला चल रहा था। मेरे ख्याल पांच हत्याएं आप जब यहां आये तो हुई थी। इसके बाद आपने ऐसा क्या कर दिया कि लोग पुलिस महकमें पर विश्वास करने लगे। क्या आपके पास कोई जादू की छड़ी थी ।

जवाब— नहीं …आपने अभी कम्यूनिकेशन गैप का जिक्र किया था..बस वहीं था हमारे पब्लिक के बीच..हमने उसे दूर करने का प्रयास किया..आप भी बता रहे हैं कि गैप खतम हुआ। यदि इसे ही जादू की छड़ी कहते हैं तो यही सही। रही बात मै जब यहां आया था तो पांच नहीं तीन हत्याएं लगातार हुई थी। दशरथ खण्डेलवाल की हत्या उसमें बहुत संवेदनशील था। रतनपुर और शहर में उसी दौरान हत्या हुई थी। लेकिन दशरथ खण्डेलवाल की हत्या अन्य हत्याओं से अलग था। क्योंकि बाकी हत्याएं पारिवारिक थी। जैसे ही खण्डेलवाल हत्या की गुत्थी सुलझी सब कुछ ठीक होता चला गया। लोगों का पुलिस के प्रति विश्वास भी कायम होता गया। सच बताऊं तो यह विश्वास अकेले के दम पर नहीं पुलिस प्रशासन के दम पर हुआ है।

सवाल— दशरथ हत्याकाण्ड के केश में क्या आपने जनता का दबाव महसूस किया था।

जवाब— सच कहूं तो हां..थोड़ा तो महसूस किया ही था…जैसे-जैसे देरी हो रही थी…तनाव और दबाव बढ़ता ही जा रहा था। लेकिन उस दौरान पत्रकारों ने और आला अधिकारियों के साथ मेरे सहयोगियों ने जमकर पसीना बहाया..सहयोग दिया। बाद में सब कुछ ठीक-ठाक हो गया।

सवाल— मीणा जी आपके सामने अभी तक कौन सी चुनौती ऐसी आयी जिसे लेकर आप विचलित हुए हो।

जवाब— दो चुनौतियों ने मुझे अंदर तक हिला दिया। यह चुनौती पुलिस सेवक को नहीं बल्कि एक इंसान को थी। कोरबा में एक बच्चे को फिरौती के लिए मार डाला गया। उस समय लगा कि मै कुछ नहीं कर पाया। अपराधी पकड़े गए। लेकिन हम बच्चे के मां बाप के सामने लाचार हो गए थे। मैं टूट गया जब मां बाप ने कहा कि मेरा बच्चा जिन्दा वापस करो। उस समय मुझे महसूस हुआ कि सामान की चोरी को तो लौटाया जा सकता है। लेकिन जिन्दा बच्चा मैं कहां से लाऊ। उस समय मै बहुत लाचार था। क्योंकि पुलिस वालों के सीने में भी एक दिल है। जो सोचता है और समझता भी। दूसरी चुनौती मुझे बिलासपुर में मिली जब अग्रहरी का अपहरण हुआ और फिरौती की मांग की गयी। पुराने अनुभवों को ध्यान में रखते हुए हमारी टीम ने भरसक प्रयास किया। लेकिन इस दौरान मै डरता रहा कि कहीं कोरबा की घटना रीपिट न हो जाए। चौबिस घंटे एक पल के लिए भी उस घटना से अलग नहीं सोचा। अच्छा लगा कि फिरौती मांगने वाला गिरफ्तार हुआ और अग्रहरी सही सलामत अपने पैरेन्टस तक पहुच गया।

सवाल— किस घटना को सुलझाने के बाद आपको अपने पुलिस विभाग पर गर्व महसूस हुआ।

जवाब—मुझे हमेशा से अपने पुलिस विभाग पर गर्व रहा है। और रहेगा भी। हम सेवक हैं। जब सार्थक परिणाम आता है तो खुशी होती है। खुशी दोगुनी हो जाती है जब पत्र पत्रिकाओं में पुलिस के पक्ष में समाचार निकलते हैं। कवर्धा जिले के पण्डरिया तिहरे हत्याकाण्ड की गुत्थी सुलझने के बाद मुझे बहुत खुशी हुई। यह केश कुछ पेचिदा था। अपराधियों ने कुछ ऐसा प्रमाण भी नहीं छोडा था जिनके गिरेवान तक पुलिस पहुंच सके। लेकिन हम सफल हुए। उस समय अपनी टीम पर मुझे बहुत नाज हुआ।

सवाल— बिलासपुर शहर कैसा.. लगा यहां के लोगों के बारे में आपका क्या जवाब होगा।

जवाब— बिलासपुर संभावनाओं से भरा शहर है। यहां के लोग बहुत अच्छे हैं। यह इसलिए नहीं कह रहा हूं कि बिलासपुर में काम किया हूं। बल्कि इसलिए कह रहा हूं कि सचमुच यह शहर संभावनाओं वाला शहर है। यहां के लोग बहुत ही अच्छे हैं। सहयोग की भावना यहां के लोगों में कूट-कूट कर भरी है।

सवाल— आपने कई गुत्थियों को सुलझाया है। इस दौरान जनता या कोई भी सीधे या परोक्ष रूप से आप पर दबाव बनाया है।

सवाल— कभी नहीं दबाव डाला गया। उल्टे गुत्थियों को सुलझाने में हमें सहयोग ही मिला है। मैने पहले ही बताया कि यहां के लोग बहुत अच्छे हैं। न्याय पसंद हैं।

सवाल— हमने देखा है कि आप बहुत अच्छे क्रिकेट खिलाड़ी भी हैं। यहां से जाने के बाद क्या आपको खालीपन महसूस नहीं होगा। कहीं यह तो नहीं की क्रिकेट आपकी पुलिसिया कार्यशैली तो नहीं थी। आप व्यस्त समय में क्रिकेट के लिए कैसे समय निकाल लेते हैं।

जवाब— मुझे क्रिकेट का सचमुच शौक है। इसे पुलिसिया कार्यशैली से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। लेकिन इतना तो सच है कि खेल से जुड़े रहने से युवाओं से हिलने मिलने का अपना अलग ही मजा है। थोड़ी नजदीकियां भी बढ जाती है। इसके बहाने लोगों को अपनी समस्याओं को लेकर आने में हिचक भी नहीं होती। रही बात व्यस्तता कि तो बताना चाहूंगा कि मै क्रिकेट जब खेलने जाता हूं तो मेरी गाड़ी में यूनिफार्म भी साथ में रहता है। कई बार ऐसा समय आया है कि मुझे गाड़ी में ही यूनिफार्म पहनकर ड्यटी में जाना पड़ा। लेकिन खेल से काम में कभी प्रभाव नहीं पड़ा। उल्टा ऊर्जा ही हासिल हुआ है।

सवाल—क्या आई जी बनकर फिर से बिलासपुर आना चाहेंगे।

जवाब— क्यों नहीं…। मैने पहले ही बताया कि बिलासपुर मेरे घर की तरह है। यहां की जनता ने मुझे बहुत प्यार दिया है। ईश्वर न करे यह मेंरा भ्रम हो। लेकिन मैने महसूस किया कि जनता से मुझे बहुत प्यार मिला है। रही बात आईजी बनकर यहां आने की तो बताना चाहुंगा कि मुझे सरकार जहां भेजेगी वहां सेवा करने के लिए जाउंगा। यदि बिलासपुर के लिए कहा गया तो मैं एक टांग पर यहां आने को तैयार रहुंगा।

 

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