ज्वाला की खालः खा गए “फॉरेस्ट” के दीमक

BHASKAR MISHRA
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lionबिलासपुर— ज्वाला शेरनी की खाल को फॉरेस्ट के दीमक खा गए हैं। शायद अब ट्राफी बनने की भी संभावना नहीं है। खूंखार शेरनी की खाल की बुरी दुर्गती होगी शायद ही किसी ने सोचा होगा। बावजूद इसके वन अमले का दावा है कि शेरनी की खाल अभी भी सुरक्षित है। ज्वाला के मरने के बाद उसके खाल को उतारकर भूंसा भरकर सुरक्षित रखा गया है…लेकिन सच्चाई मे दम नहीं है। सालों बाद भी आज तक ज्वाला की ट्राफी नहीं बनी हैैै।  सीसीएफ ने बताया कि मुझे इसकी जानकारी सीजी वाल से मिली है। हम इस बारे में कानन प्रशासन और संबधित अधिकारियों से पूछताछ करेंगे।

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                                  आज कानन पेन्डारी में जितने भी शेर हैं…कमोबेश ज्यादातर ज्वाला की संतान हैं। ज्वाला खूंखार आदमखोर शेरनी थी। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले ज्वाला और लावा को बस्तर के माचकोच की जंगल से लाया गया था। तात्कालीन समय मध्यप्रदेश के वन मंत्री बिलासपुर के विधायक बी.आर.यादव हुआ करते थे। ज्वाला और लावा को बिलासपुर लाने की घोषणा के बाद बस्तर के लोगों ने वनमंत्री की घोषणा का विरोध किया था।

             कानन पेन्डारी आने के बाद ज्वाला और लावा ने संतानों को पैदा किया। ज्वाला और लावा की मौत के बाद आज भी लोग शेर देखने लोग कानन पेन्डारी आते हैं। ज्वाला की मौत कुछ साल पहले कानन पेन्डारी में हो गयी। वन विभाग ने जंगल की शेरनी का शाही अंदाज में अंंतिम संस्कार किया गया। उसकी खाल को निकालकर ट्राफी बनाने का एलान किया गया। बताया जाता है कि विभाग ने तात्कालीन समय ज्वाला की खाल को निकालकर भूंसा भरकर रखा।

                     बहरहाल अब ज्वाला की खाल को फारेस्ट के दीमकों ने चट कर दिया है। वन विभाग का दावा है कि खाल सुरक्षित है। लेकिन सच्चाई में दम नहीं है। इसलिए अब ट्राफी बनने का सवाल ही नहीं उठता है। जानकारी के अनुसार ज्वाला की मौत के बाद दो एक बार जरूर प्रयास किया गया कि खाल की ट्राफी जल्द से जल्द बनायी जाए। मदुरै के कलाकारों से संपर्क भी किया गया। लेकिन धीरे धीरे मामला ढंडे बस्ते में चला गया। अब तो उसकी संभावना भी कमोबेश खत्म हो गयी है।

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जानकारी मांगेंगे

                मामले में सीजी वाल की टीम ने सीसीएफ बी.आनन्द बाबू से संपर्क किया।  उन्होने कहा कि इसकी जानकारी मुुझे नहीं है। मामला काफी पुराना है। खाल के साथ क्या कुछ हुआ। ट्राफी क्यों नहीं बनवाई गयी। इस बात की जानकारी विभागीय अधिकारियों से लेंगे। आनन्द बाबू ने बताया कि यदि खाल को फारेस्ट के दीमको ने चट कर दिया है तो लावरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होगी। इस दौरान आनंद बाबू ने सीजी वाल से ज्वाला और लावा की जानकारी भी ली। उन्होंने कहा कि खाल किस स्थित में है उसे देखा जाएगा। संभव होगा तो ज्वाला की खाल की ट्राफी बनेगी।

खाल में भरा गया भूंसा

                        जानकार और कुछ अधिकारियों ने बताया कि मौत के बाद ज्वाला की खाल को निकाला गया था। सूखाने के बाद खाल के भीतर भूंसा भरा गया। वह आज भी शायद सुरक्षित है। फिलहाल खाल आज किस स्थित में है बताना मुश्किल है। कुछ जानकारों ने बताया कि खाल को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने के लिए रासायनिक प्रक्रिया का पालन करना होता है। खाल को निकालने के बाद गर्मपानी में स्टेन किया जाता है। सुखाया जाता है । दीमक और कीडे से बचाने रासायनिक लेप का सहारा लिया जाता है।

                                           सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार खाल को सुरक्षित नहीं रखा गया। सुरक्षित रखने की प्रक्रिया का भी पालन वन अमले ने नहीं किया। रखरखाव भी ठीक से नहीं हुई। लावरवाह वन अधिकारी और फारेस्ट के दीमकों ने खाल को चट कर दिया।

ज्वाला का सम्मान

                       ज्वाला की याद और सम्मान को हमेशा तरोताजा बनाए रखने तात्कालीन प्रशासन ने खाल की ट्राफी बनाने का फैसला किया था। यद्पि वन विभाग का दावा है कि खाल सुरक्षित हैं। लेकिन सच्चाई में दम नहीं है। बावजूद इसके आज तक ट्राफी का नहीं बनना शक पैदा करता है। प्रश्न उठना लाजिम है कि क्या कभी वन विभाग ने ट्राफी बनवाने की दिशा में कभी गंभीर प्रयास किया। शायद नहीं…यदि किया होता तो आज ट्राफी हमारे बीच होती। नई पीढ़ी नहीं पूछती कि आखिर ज्वाला थी कौन……।

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