♦पहला सीन– पहले दिन छत्तीसगढ काँग्रेस की पहली लाइन के सभी नेता बिलासपुर आते हैं…। वरिष्ठजन के सम्मान सहित कई कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं…। शहर के काँग्रेसी इसमें जोश-खरोश के साथ शामिल होते हैं….। और सारे नेता खुशी-खुशी वापस लौट जाते हैं…।
♦दूसरा सीन – इसके ठीक दूसरे दिन पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपने लाव-लश्कर के साथ बिलासपुर आते हैं..। संविधान दिवस के नाम पर साइँस कॉलेज मैदान में एक बड़ी रैली करते हैं….। हजारों की भीड़ जुटती है….. और इसी भीड़ में मौजूद शहर की पूर्व मेयर श्रीमती वाणी राव जोगी काँग्रेस में शामिल होने का एलान करती हैं..।
चौबीस घंटे के भीतर हुए इस घटनाक्रम का यह शहर गवाह बना। अब इस सवाल का जवाब तो आने वाले वक्त में ही मिल सकता है कि शहर की पहली महिला मेयर और पिछले विधानसभा चुनाव में हार चुकी श्रीमती वाणी राव के साथ आने से जोगी काँग्रेस को कितना फायदा होगा ? लेकिन फिलहाल यह सवाल भी अपनी जगह कायम है कि क्या एक दिन पहले शहर में मौजूद दिग्गज कांग्रेसियों को यह नहीं पता था कि उनकी पार्टी को बिलासपुर में एक झटका लगने वाला है। यदि नहीं पता था तब तो यह उनके “…… तँत्र” की नाकामी मानी जा सकती है। लेकिन यदि उन्हे इस बारे में पता था तो वाणी राव को रोकने की कोशिश हुई या नहीं…….। या यह सोचकर किसी ने कुछ नहीं किया कि उनके जाने से काँग्रेस की सेहत पर कोई असर नहीं होगा……।
कांग्रेस के सेहत की बात करें तो भीड़ तो एक दिन पहले काँग्रेस के उस जलसे में भी काफी थी, जिसका आयोजन डा. शिवदुलारे मिश्र स्मृति संस्थान ने किया था। इंदिरा गाँधी जन्मशताब्दी वर्ष पर छत्तसीगढ़ में अपने तरह का यह पहला आयोजन था। जिसमें बुजुर्गों का सम्मान किया गया। अतिथि के रूप में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष टी एस सिंहदेव, श्रीमती करुणा शुक्ला और मोहम्मद अकबर शामिल हुए । कुल मिलाकर डा. चरणदास महंत को छोड़कर प्रदेश कांग्रेस की मौजूदा टीम में फ्रंट लाइन के सभी नेता मौजूद रहे। बुजुर्गों के सम्मान के जरिए शहर में कांग्रेस के सम्मान की वापसी की कवायद की तरह नजर आए इस जलसे में कई ऐसी बातें देखने को मिलीं, जिन्हे सामने रखकर कांग्रेस खुश हो सकती है। मसलन सम्मान समारोह में आए बुजुर्गों ने काफी समय तक जमे रहकर नेताओँ का इंतजार किया। सियासी रवायत के मुताबिक काफी देर से पहुंचे नेताओँ का इंतजार करते-करते बुजुर्गों ने वक्त का ऐसा इस्तेमाल किया कि कुछ समय के लिए जलसा एक वर्कशाप में बदल गया। जिसमें सभी ने अपना दुख-सुख भी बाँटा और इँदिरा गाँदी के समय की काँग्रेस को लेकर अपने अनुभव भी बाँट लिए।
एक खास बात यह भी थी कि नेताओँ ने बुजुर्गों को मंच पर नहीं आने दिया । बल्कि खुद नीचे उतरकर बुजुर्गों का सम्मान किया। हालांकि मंच से कांग्रेस की मजबूती के लिए इस तरह के आयोजन को लेकर बहुत सी बातें नहीं हुईं।नोटबंदी जैसे मामले की थोड़ी-बहुत चर्चा हुई। लेकिन कभी इस शहर की नुमाइँदगी करने वाले डा. शिवदुलारे मिश्र के नाती और डा. श्रीधर मिश्र के पुत्र शिवा मिश्र के इस आयोजन से बड़े नेता यह सोचते हुए जरूर लौटे होंगे कि कांग्रेस की बेहतरी के लिए ऐसे जलसे कारगर साबित हो सकते हैं। खासकर इस लिहाज से कि कांग्रेस से जुड़े पुराने परिवारों को सम्मान देकर और उन्हे नई पीढ़ी से जोड़कर फिर से पुराना माहौल बनाया जा सकता है। इस जलसे में मौजूद डा. खेलन राम जाँगड़े, गोंदिल प्रसाद अनुरागी, रामाधार कश्यप, तपन चटर्जी ,फिरोज कुरैशी, बिरझे राम सिंगरौल जैसे कई पुराने काँग्रेसियो चेहरे पर भी यही भाव पढ़ा जा सकता था।
लेकिन कांग्रेस के तीन रंगों को फिर से जेहन में उतारने की इस कवायद के ठीक दूसरे दिन शहर में अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ जोगी कांग्रेस के गुलाबी रंग चढ़ा दिया। संविधान दिवस के बहाने बाबा साहब अंबेडकर को याद करते हुए बिलासपुर- बेलतरा विधानसभा इलाके की सीमा में एक बड़ी रैली हुई। जिसमें खुद अजीत जोगी के साथ ही धरमजीत सिंह, सियाराम कौशिक, आर के राय, अनिल टाह,अमित जोगी , चन्द्रभान बारमते जैसे कई लोगों ने हिस्सेदारी निभाई। भीड़ को देखकर चुनावी माहौल की याद ताजा हो रही थी। भीड़ की तारीफ खुद अजीत जोगी ने की और लोगों को कहते सुना गया कि खेती के काम में व्यस्तता के बावजूद जुटी या जुटाई गई भीड़ मायने रखती है।फिर इस आयोजन से सबसे बड़ी यह खबर निकलकर आई कि श्रीमती वाणी राव ने कांग्रेस छोड़कर जोगी काँग्रेस का दामन थाम लिया है।
छत्तीसगढ़ जनता काँग्रेस के लोग इसे बड़ी कामयाबी मान रहे हैं। चूंकि श्रीमती वाणी राव शहर की मेयर रह चुकी हैं। महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी हैं और कांग्रेस छोड़ने से पहले तक महिला काँग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव रहीं। पिछले चुनाव में वे बिलासपुर विधानसभा सीट से काँग्रेस की उम्मीदवार थीं। इसे देखने का एक नजरिया यह भी है कि जोगी बिलासपुर को अपना शहर मानते हैं। अपने तीन साल के कार्यकाल में बिलासपुर के लिए उन्होने जो कुछ किया उसका जिक्र भी करते हैं। और उनके अपने शहर में गुलाबी रंग वाली उनकी अपनी पार्टी का पहला आयोजन था। जहां शहर की पूर्व मेयर को अपनी पार्टी में लाकर उन्होने भरपाई की कोशिश की है। जाहिर सी बात है कि नई पार्टी बनाने के बाद से कई लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया है। जिसकी भरपाई की कवायद इस रैली में नजर आई।
कांग्रेस औऱ जोगी कांग्रेस का चौबीस घंटे के भीतर शहर में यह प्रदर्शन आने वाले दिनों की सियासत की ओर भी एक इशारा है। जिसमें एक तरफ कांग्रेस को अपना बिखराव समेटकर बुजुर्गों से लेकर नौजवानों तक सभी को अपने साथ जोड़ने की जुगत लगानी है। वहीं दूसरी तरफ दिग्गजों की मौजूदगी के बावजूद कांग्रेस से नेताओँ को फोड़कर अपने साथ लाने में अजीत जोगी की ताकत लगी रहेगी। कांग्रेस को जोड़ना है और जोगी को तोड़ना है। अगले चुनाव तक जोड़ –तोड़ का यह खेल इसी तरह चलेता रहेगा। चौबीस घंटे के इस एपीसोड़ ने कम-से- कम इतना संकेत तो दे ही दिया है।