केन्द्रीय विविः छात्रा को प्रबंधन ने किया था मजबूर

BHASKAR MISHRA
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GGUबिलासपुर— रामायण की एक चौपाई कुछ इस तरह है…हरि अंनत हरि कथा अनंता…गुरूघासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय तासी और कुलपति अंजिला गुप्ता के स्वभाव पर सटीक बैठती है। दरअसल गुरू घासी विश्वविद्यालय अव्यवस्था और तानाशाही का केन्द्र बन गया है। कुलपति जो बोले सो सही..बाकी सब बेकार..। यहां पढ़ने वाले छात्रों को हड़ताल.मांग की बात तो दूर…परामर्श देने का भी अधिकार नहीं है। चाहे परामर्श देने वाले चुने गए छात्र प्रतिनिधि ही क्यों नहीं है। जिसने व्यवस्था के खिलाफ मुंह खोला..उसे या तो विश्वविद्यालय के बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है अथवा अनुशासनहीनता की चाबुक चला कर गला घोंट दिया जाता है। महिला छात्रावास में करीब पांच छह महीने ऐसा ही हुआ। छात्रा ने अपनी इज्जत आबरू बचाने के लिए छात्रावास को ही छोड़ दिया। अगर ऐसा नहीं करती तो आज वह कहीं की नहीं रह जाती। ऐसा कुलपति के इशारे पर चाटुकारों ने किया।

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                              कुछ महीने पहले केन्द्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों ने भोजन की गुणवत्ता और दर को लेकर कुलपति से शिकायत की धी। लेकिन कुलपति ने छात्र छात्राओं की परेशानियों को अनसुना कर दिया। मजबूर होकर छात्रों को भूख हड़ताल करना पड़ा। हंगर स्ट्राइक करने वाली लड़कियों ने बताया कि मेस का खाना स्तरहीन है। दर भी ज्यादा लिया जा रहा है।खाने की गुणवत्ता में सुधार के साथ दर कम किया जाए। छात्राओं के आक्रोश को ध्यान में रखते हुए कुलपति ने जांच का आदेश दिया। लेकिन दर में किसी प्रकार की कमी करने से इंकार कर दिया। छात्राओं और छात्र नेताओं को आश्वासन दिया कि छात्रावास में जांच टीम जाएगी। सब लोग अपनी शिकायत जांच कमेटी के सामने कर सकते हैं।

                   सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार छात्रावास में एक छात्रा डीयू की थी। छात्रा छत्तीसगढ़ की ही रहनी वाली है। घर पास होने के कारण उसने दिल्लीkhel-cu1 को छोड़कर केन्द्रीय विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। छात्रा ने कुलपति को बताया कि छात्रावास का भोजन गुणवत्ताहीन है। 250 रूपए अतिरिक्त भुगतान लिाय जा रहा है।

                       कुलपति के निर्देश पर पत्रकारिता विभाग का एक छात्र छात्रावास गया। उसने भोजन की गुणवत्ता को कम छात्राओं की एक्टिविटी पर कुछ ज्यादा ही ध्यान दिया। कुलपति को रिपोर्ट में बताया कि डीयू की छात्रा नेतागिरी कर रही है। छात्रावास की छात्राओं को उकसा रही है कि उसने ही 250 रूपए अतिरिक्त लिए जाने का विरोध किया है। मजेदार बात तो यह है कि जब छात्राओं ने महिला छात्रावास में पुरूषों के प्रवेश का विरोध किया तो कुलपति ने अनुशानसन हीनता का हवाल देकर छात्राओं का मुंह बंद कर दिया। जानकारी के अनुसार महिला छात्रावास में कोई भी पुरूष या छात्र प्रवेश नहीं कर सकता है। लेकिन कुलपति के निर्देश पर पत्रकारिता विभाग का छात्र ना केवल छात्रावास में गया। बल्कि डीयू के छात्रा पर अनैतिक आरोप का रिपोर्ट कुलपति के सामने रख दिया।

                         रिपोर्ट के बाद कुलपति समेत उनके चाटुकारों ने फोन से छात्रा के परिजनों को बताया कि आपकी बेटी की गतिविधियों ठीक नहीं है। छात्रावास में रहने लायक नहीं है। उसकी गतिविधियों से छात्रावास की गरिमा गिर रही है। उसे समझाए। लोगों के उकसावे में आकर आंदोलन प्रबंधन का विरोध ना करे। सूूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कुलपति के इशारे पर विश्वविद्यालय प्रबंधन ने छात्रा को इतना धमकाया कि उसने विश्वविद्यालय से निष्कासन से बचने के लिए छात्रावास ही छोड़ दिया। आजकल डीयू की छात्रा निजी छात्रावास में रहकर पढा़ई करती है।

               जानकारी के अनुसार छात्रा ने अब एकाकी जीवन में रहना शुरू कर दिया है। बताया जाता है कि छात्रा बहुत परेशानी थी। कुछ लोगों ने बताया कि कुलपति या प्रबंधन की मनमानी लगातार जारी है। लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं। पढ़ने आए हैं…रूखा सूखा खाकर पढ़ाई कर रहे हैं। विरोध करेंगे या व्यवस्था की शिकायत करेंगे तो करियर खराब हो जाएगा। यहां कुलपति के अलावा किसी की नहीं चलती है।

                        प्रश्न उठता है कि आखिर छात्रावास में पत्रकारिता के छात्र को जांच के लिए क्यों भेजा गया। क्या कुलपति के पास कोई और विकल्प नहीं थे।

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