(सत्यप्रकाश पाण्डेय)।ख़स की टट्टी में कायर-सा,छिपकर वैभव सोता,उसे पता क्या पेट और- रोटी का क्या छल होता? मशहूर कवि नीरज जी की ये पंक्तियाँ हर उस इंसान के जीवन का हिस्सा हैं जो रोटी के इंतज़ाम में बिना वक्त देखे परिश्रम कर रहा है। शहर से गाँव तक रोटी की तलाश और जरूरतों की भरपाई के लिए इंसान क्या कुछ नहीं कर रहा। ये तलाश ना उम्र देखती है, ना सामाजिक ताने-बाने। उम्र की उसी दहलीज पर कदम बढाती ‘कल्याणी’ से मुलाकात अचानकमार जंगल सफारी के दौरान हुई । मैं और मेरे साथी [ नवीन वाहिनीपति, कंचन पांडेय ] 12 जनवरी की शाम अचानकमार टाइगर रिजर्व में भ्रमण के लिए पहुंचे। प्रारम्भिक औपचारिकताओं के बाद हमको जंगल भ्रमण की इज़ाज़त मिली, हमारे साथ गाइड के रूप में जो चेहरा सामने था वो ‘कल्याणी इंदुलकर’ का था। देखकर उम्र का अंदाज लगाना मुश्किल नहीं था, पहले थोड़ा अजीब सा लगा। एक बच्ची मिलिट्री रंग की पोशाक में हमारे सामने खड़ी थी जिसके गले में टँगा परिचय पत्र उसकी पहचान का खुला दस्तावेज था। हमने जंगल सफारी के लिए अचानकमार से रूट नंबर 3 लिया जो हमें सारसडोल, आमानाला, सिंहवालसागर, जलदा होकर छपरवा गेट तक ले जाता। करीब-करीब 25 किलोमीटर से ज्यादा का रास्ता, शायद कल्याणी से परिचय के लिए काफी था। जंगल भ्रमण शुरू होते ही मैंने उस बच्ची से बात-चीत का सिलसिला शुरू किया, कई जिज्ञासा थी। पूछने पर उसने अपना पूरा नाम फिर से बताया।
पूरा नाम – कल्याणी इंदुलकर,पिता का नाम – दिवाकर इंदुलकर। हाल-मुकाम, वन ग्राम बिंदावल । ग्राम बिंदावल, अचानकमार टाइगर रिजर्व के भीतर है जिसका विस्थापन होना अभी बाकी है। यहां करीब 25 से 30 परिवार हैं जिनका गुजर-बसर जंगल के भरोसे ही होता है। कल्याणी भी इसी गाँव से है जिसने अभी विस्थापन के दंश को नही झेला है। उसे सिर्फ आज की फिक्र है, कल का मालूम नहीं क्या होगा। उम्र करीब 15 साल, शासकीय स्कूल छपरवा में कक्षा 10 वीं की छात्रा है। कल्याणी को गाइड का काम करते हुए अभी 2 माह ही हुए हैं, उसे एटीआर के भूगोल की अभी उतनी जानकारी नहीं है। वैसे भी अचानकमार टाइगर रिजर्व में प्रशिक्षित गाइड्स की कमी आज तक है जिसे पूरा करने के लिए आस-पास के गाँव से जो भी मिला उसे कुछ समय पहले एक सप्ताह का प्रशिक्षण देकर पोशाक पहना दी गई और गले में टाइगर रिजर्व के गाइड होने का परिचय पत्र टांग दिया गया।
कल्याणी से बातचीत का सिलसिला और जंगल में वन्यजीवों के साथ वहां के सौन्दर्य की तस्वीरें लेने का काम साथ-साथ चल रहा था। कल्याणी ने बताया उसके पिता दिवाकर इंदुल्कर भी वन विभाग में कर्मचारी थे जो हाल ही में सेवानिवृत्त हो गए। घर में माँ के अलावा एक भाई दीपक इंदुल्कर है जो छपरवा स्कूल में ही कक्षा 12 वीं का छात्र है। अचानकमार टाइगर रिजर्व के भूगोल की जानकारी में कमजोर कल्याणी घर के अर्थ शास्त्र [आर्थिक स्थिति] को बेहतर समझती है। उसने बताया रोज सुबह 6 बजे साइकिल से 8 किलोमीटर का रास्ता तय कर बिंदावल से अचानकमार पहुंचती है। वहां से पर्यटकों को लेकर बतौर गाइड जंगल भ्रमण कराती है। वहां से लौटकर 11 बजे तक स्कूल पहुंचना होता है। स्कूल तक पहुँचने के लिए उसे 13 किलोमीटर तक फिर साइकिल चलानी पड़ती है क्योंकि अचानकमार से छपरवा स्कूल की दुरी करीब 13 किलोमीटर है। फिर शाम की सफारी के लिए इतनी ही जद्दोजहद, कई बार स्कूल छोड़ना पड़ता है। दोनों जून की सफारी अगर गाइड करने का मौक़ा कल्याणी को मिल जाता है तो दिन ढलने के बाद वो हाथ में 400 रूपये लेकर घर लौटती है। हालांकि 400 रुपये रोज मिल जाये कम ही होता है।
जंगल सफारी में हर पर्यटक एक सा नहीं होता इस लिहाज से भी कई व्यवहारिक दिक्कतें कल्याणी को झेलनी पड़ती है मगर उसे इस बात की ख़ुशी है कि जिस जंगल में जन्म लेकर उसने चलना सीखा उसी जंगल में आने वाले पर्यटकों की मार्गदर्शक बनकर उन्हें हर दिन सैर कराने ले जाती है। कुछ जानवरों के नाम मालूम है, कुछ के सीखना बाकी है। पक्षियों के नाम को लेकर काफी भ्रमित होती है मगर नज़रें तेज हैं लिहाजा हम जैसे लोगों को तस्वीरें मिल जाती हैं। पढ़ाई और गाइडगिरी दोनों कल्याणी की प्राथमिकता में शामिल है। पढ़-लिखकर प्रशासनिक अफसर बने ये ख्वाहिश है मगर सवालों के क्रम में कल्याणी ने एक भी बार अपने भीतर छिपे दर्द को बाहर नहीं आने दिया। हालाकिं कल्याणी इस देश या राज्य में पहली ऐसी लड़की नहीं है जो जिंदगी में संघर्ष के रास्ते पर चलना सीख रही हो, लाखों जिंदगी हैं जो पल-पल संघर्षों के साये में बचपन भूल गई।
कल्याणी की बातें, उसके झिझक भरे जवाब मुझे हमेशा याद रहेंगे। वो सिर्फ एक बेटी नही बल्कि आने वाले हर पर्यटक की गाइड है। उसे हर मोड़ पर खुशियाँ, सफलता और यश मिलें इन्ही शुभकामनाओं के साथ इस सफर को ख़त्म करता हूँ।