♦उपन्यासकार,कथाकार,कवि और लेखक विद्वानों ने जलतरंग पर किया विमर्श
बिलासपुर(करगीरोड)।डाॅ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय के वनमाली सृजनपीठ द्वारा आईएमए भवन में आयोजित जलतरंग के पाठ एवं विमर्श कार्यक्रम में प्रसिद्ध उपन्यासकार, कथाकार, कवि और लेखक संतोष चौबे के उपन्यास जलतरंग का पठन एवं विमर्श किया गया। अतिथि विद्ववानों ने कहा कि उपन्यास में भारतीय संगीत का उद्गम,इतिहास, यात्रा से लेकर आज के आधुनिक संगीत तक उल्लेख प्रेम कथा के माध्यम से किया गया हैं। यह लेखन के क्षेत्र में संगीत के ज्ञान और प्रेमकथा का अद्भूत संगम है। इसके साथ यह भी बताया गया है कि आधुनिक युग में शोर ने शांतिपूर्ण जीवन को किस तरह प्रभावित किया है। कथाकारों ने उपन्यास की प्रशंसा की और संगीत व प्रेमकथा के इस लेखन को ऐतिहासिक लेखन बताया। जलतरंग सही मायने में भारतीय संगीत की यात्रा है। जिसमें वेदों से लेकर आज के आधुनिक संगीत तक के विस्तार के हर रूप के बारिकियों को बताया गया है। इसमें भारत के कोने-कोने के संगीत के रूप और उसकी विशेषता को संतोष चौबे ने लिखा है।
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इस मौके पर प्रसिद्ध उपन्यासकार संतोष चौबे ने जलतरंग के आलाप, जोड़,विलंम्बित,दु्रत और झाला इन पंाच भागों में विभिक्त उपन्यास के महत्वपूर्ण बिंदुओं को पाठ किया। उन्होंने पठन में बताया कि नायक देवाशीष का जीवन किस तरह से संगीत के समर्पित था, वह पूरा जीवन संगीत के साथ ही बिताना चाहता था, इसके बाद जीवनयापन के लिए उसे और उसके पत्नी को नौकरी करनी पड़ी। लेकिन आधुनिकता और बदलने परिवेश के कारण उसके जीवन में शोर समा जाता हैं। एक संगीत प्रेमी व्यक्ति को शांत जीवन में दुनिया की दिक्क्तें आ जाती है और वह स्वभाव से भी चिड़चिड़ा हो जाता है। कालोनी में हर दिन नहीं समस्या उसके जीवन से सुख शांति और चैन छिनती जाती है। उपन्यास में भारतीय शास्त्रीय संगीत के हर राग और सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को लिखा गया हैं। जो प्रेम कथा के माध्यम से बताई गई हैं। इस उपन्यास को भारतीय ज्ञानपीठ ने प्रकाशित किया है।इस मौके पर विष्वविद्यालय के कुलपति डाॅ.आर.पी.दुबे, अंचल के वरिप्ठ साहित्यकार,लेखक, कवि,उपन्यासकार, चिकित्सक, प्रोफेसर,रंगकर्मी सहित विष्वविद्याल के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, अधिकारी कर्मचारी और विद्यार्थी उपस्थित थे।कार्यक्रम का संचालन डाॅ.विनय उपाध्याय ने किया। कार्यक्रम का आयोजन वनमाली सृजनपीठ डाॅ.सी.वी.रामन् विष्वविद्यालय द्वारा किया गया था।
सबसे अच्छी रचना वो जो शिक्षित करती हो-संतोष
इस अवसर पर उपन्यासकार संतोष चैबे ने जलतरंग लेखन की जरूरत और सोच के बारे में बताया कि हर रचना की प्रक्रिया विशिप्ट और अलग होती है। शोर पर लेखन की मंशा दिमाग में थी और इस सोच को लगातार मजबूत करता रहा।शोर में ध्वनि और मानसिक प्रदूषण का बात रखना चाहता था, चुंकि मैं जलतरंग वादक हूं इसलिए संगीत में लिखने का मन बनाया। एक जिज्ञासा मन आई की जीवन में इतना शोर कहा से आता है। संगीत भी आत्मीय शांति का बड़ा माध्यम हैं। मन ये बात आई की संगीत और शोर को जोड़ना चाहिए। श्री चैबे ने बताया कि लेखक के मन में संतुप्टि और प्रसंन्नता होनी चाहिए तभी पाठक को संतुप्टि और प्रसन्नता होती है। इसलिए इस भाव को भी साथ लेकर चलना था। लेकिन संगीत को प्रमाणित रूप में लिखना एक चुनौती थी। इसलिए संगीत को करीब से जनना समझना बेहद जरूरी था। इसलिए लिखने के पहले संगीत के इतिहास का अध्ययन किया।
कला की ऐतिहासिक विरासत-शैलेष
इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव शैलेष पाण्डेय ने बताया कि जलतरंग जाति परंपरा का बड़ा दस्तावेज है। जिसमें नायक अपनी परंपरा को संरक्षित करने के लिए संघर्प करता है। दूसरी बात यह भी है कि संगीत से जुड़ने वाले नए लोगों के लिए पूर्ण ज्ञान हैं,जिसके सहारे वे आगे जा सकते हैं। संगीत की षिक्षा के लिए एक अच्छी जानकारी भी है। लेखन ष्षैली इतनी अच्छी है कि उपन्यास को पढ़ने से ऐसा लगता है कि हम किसी गायक को सुन रहे है, और वह पूरी साधना में लीन हो कर गा रहा हैं। कथा चलती रहती है और पाठक को बंधे रखती हैं।
शोध प्रधान उपन्यास है जलतरंग-मुकेश
इस मौके भोपाल से आए कथाकार व आलोचक मुकेश वर्मा ने कहा कि जलतरंग भारतीय उपन्यास की अवधरणा को स्थापित करता है। क्योंकि अब के उपन्यासों में भारयीय कला,संस्कृति और परंपराओं का उल्लेख नहीं मिलता हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जलतरंग शोध प्रधान उपन्यास है। इसलिए यह मामूली नहीं है। इसमें भारतीय संगीत का इतिहास है। संतोष जी ने यह बताया कि राजनीतिक अस्थिरता और उथल पुथल के बाद ही हमारी संस्कृति किस तरह से सुरक्षित रही। सही मायने में उपन्यास के रूप में भारतीय संगीतयात्रा विरासत के रूप में हमारे सामने है।