बिलासपुर। डॉ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय में विश्व क्षय दिवस के अवसर पर एक दिवसीय जागरूकता सेमीनार का आयोजन किया गया है। इस अवसर पर वरिष्ठ चिकित्सकों और शासन के अधिकारी चिकित्सकों ने विद्यार्थियों और प्राध्यापकों को इस बीमारी की जानकारी और इससे बचाव के तरीके बताए। इस अवसर पर राष्ट्रीय सेवा योजना ईकाइ के विद्यार्थियों ने ऐसी बीमारियों की जागरूकता के संबंध में गांव व वनांचल तक पहुंचाने का सकल्प लिया।प्रदेश शासन के स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश के अनुसार विश्वविद्यालय में विश्व टी.बी.डे के अवसर पर सीवीआरयू में एक दिवस जागरूकता सेमीनार आयोजित किया गया है। इस अवसर विश्वविद्यालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अविजित रायजादा ने बताया कि सरकारी व निजी क्षेत्रों में दी जा रही चिकित्सा सुविधा में समन्वय होना चाहिए। क्षय रोग का इलाज प्रारंभिक अवस्था किया जाना चाहिए।
ऐसे जागरूकता के शिविर में डॉक्टरों के अलावा आम जनता को जागरूक होने की जरूरत है, ताकि इस बीमारी से पीड़ित लोगों की पहचान और इलाज किया जा सके। उन्होंने बताया कि सामान्य सी खांस यदि एक से दो सप्ताह तक ठीक न हो तो उसे जांच कराना चाहिए, क्योंकि वह टीवी भी हो सकता है। कोटा के विकासखंड चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रदीप अग्रवाल ने बताया कि डाट्स की दवा से 6-8 महिने में टीबी पूरी तरह से ठीक हो जाता है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शोध निदेशक डॉ.पी.के.नायक ने बताया कि आज के युवा हर क्षेत्र में सबसे आगे हैं।
गीत-संगीत के माध्यम से संदेश
इस अवसर पैरामेडिकल स्टाफ ने छत्तीसगढ गीत के माध्यम से क्षय रोग के लक्षण और बीमारी के बचने के उपाए बताए। इस अवसर पर सीवीआरयू के विद्यार्थियों ने नुक्कड़ नाटक के माध्यम से यह संदेश गांव गांवा तक पहंुचाने का संकल्प लिया। इस अवसर पर आर. एन राजपुत, एस.के.वर्मा और विवेक उपाध्याय सहित पैरामेडिकल स्टाफ व साथ शामिल रहे।
जागरूकता की पहली जिम्मेदारी शिक्षण संस्थानों की-कुलसचिव
इस अवसर पर डॉ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय के कुलसचिव शैलेष पाण्डेय ने कहा कि ऐसे रोगों के बारे में जागरूकता लाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी शिक्षण संस्थानों की है। खासकर उच्च शिक्षा संस्थानों के विद्यार्थियों को इसे समझना चाहिए। हम राष्ट्रीय सेवा योजना के माध्यम से गांव और वनांचलों में नुक्कड़ और छत्तीसगढ़ी गीत संगीत के माध्यम से ऐसी बीमारियों और उसके बचाव के बारे में जानकारी देंगे। ताकि अधिक से अधिक लोग जागरूक हो सकें। पाण्डेय ने बताया कि विश्वविद्यालय लगातार स्वास्थ्य जागरूकता के विषयों में भाग लेता है, सही मायने में यह विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी भी है।