(प्राण चड्ढा)तेंदू को पेड़ में फला देख,सन1988 पर जा पहुंचा, आदमी का दिमाग भी क़ुदरत ने किसी टाइम मशीन सा जो बना है। ये वक्त था,खरसिया उपचुनाव का औरअर्जुन सिंह जी के लिये इससे जीतना जरूरी था। सामने थे, जशपुर कुमार दिलीप सिंह जूदेव, युवा तुर्क,और उनका साथ दे रहे थे, भाजपा के नेता लखीराम जी अग्रवाल, इस समय नवभारत के लिए मैं काम करता, रूद्र अवस्थी, और सुबह बिलासपुर से खरसिया ट्रेन में जाते। तब रायगढ़ में अनुपम दास गुप्ता, और महाबीर बेरीवाल नवभारत का काम देखते।
युवा जोश और अनुभव की इस युगलबंदी को भेदने अर्जुन सिंह जी के पसीने छूट गए, पर अंततः वो विजयी रहे। गजब तो ये हुआ सम्मान पूर्वक पराजय के बाद जूदेव का जुलूस निकाला और अर्जुन सिंह, बिलासपुर पहुंच गए। लखीरामजी तेंदूपत्ता व्यवसाय से जुड़े थे। अर्जुन सिंह जी ने बिलासपुर में वरिष्ठ पत्रकार रामगोपाल श्रीवास्तव जी के एक सवाल के जवाब में पत्रकार वार्ता के दौरान, तेंदूपत्ता को निजी हाथ से लेकर सहकारिता के क्षेत्र में लाने का संकेत दे दिया।।
बस फिर तेंदूपत्ते का तूफान राजनीति में जो चला क़ि पूरा प्रशासन कथित तेंदूपत्ता लाबी को जंगल से बाहर करने जुट गया।। सरकारी जीपों में लिखा होता, तेंदूपत्ता तत्काल,मज़दूर को मालिक बनाने का दावा किया गया। तेंदूपत्ता संग्रहण कार्य को दिखने पत्रकारों कों जंगल तक ले जाया जाने लगा।
ऐसे ही एक टूर में कलेक्टर के साथ पत्रकारों के दल में मैं भी साथ था, छपरवा डाकबंगले के गेट के पास तेंदू फला था। कुछ तेंदू गिरे थे, शशि कोन्हर के हाथ तेंदू देख कलेक्टर ने पूछा क्या है, शायद वो नही जानते होंगे, पर दबंग पत्रकार शशि ने जवाब कुछ इस तरह दिया, काश हम भी साहब होते और दूसरों से पूछते ये क्या फल है।
अब बात को वर्षो हो गए,आज शिवतराई में पेड़ में तेंदू फला दिखा, शशि जी का जवाब याद आ गया।तेंदू गरीब का चीकू है, उसे राह में बिकते दिखा, मात्र बीस रुपये किलो।। आज तेंदू पत्ते का तूफान खत्म हो गया, मजदूर, बोनस पाते पर उनके हालात नहीं बदले, शशि जी ने जो जवाब दिया, वो शायद उनको याद ना भी हो पर उनकी बेबाकी मुझे याद आ गईं।।