पटवारी की नटवर लीला:22 बिन्दु जारी कर,बेच दी सेंट्रल यूनिवर्सिटी की जमीन

BHASKAR MISHRA
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tehsil-bspबिलासपुर—फिल्म .. बेटा नम्बरी…बाप दस नम्बरी..को सभी ने देखी होगी। कादर खान और शक्ति कपूर की सुपर हिट फिल्म ने..लोगों को जमकर हंसाया था। फिल्म का प्रभाव कहिए या संजोग…कोनी के एक पटवारी ने रील लाइफ के कैरेक्टर को रीयल लाइफ में ऐसा उतारा कि पीड़ित की जिन्दगी कचहरी से घर के बीच होकर रह गयी है। साल 2008 में तहसीलदार के साथ मिलकर तात्कालीन पटवारी ने गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय और कोनी आईटीआई की जमीन को दिनेश को बेच दिया। कुछ ऐसे ही..जैसे फिल्म में कादर खान ने जेल से निकलते समय…जेल को ही बेच दिया था। बाद में कादर खान तो जेल लौटकर आ गया…लेकिन रीयल लाइफ के कादर खान मतलब पटवारी और तात्कालीन तहसीलदार मतलब शक्ति कपूर जेल से कोसो दूर हैं। पीड़ित जरूर कभी कभार तहसील या कलेक्टर का चक्कर लगाते दिखाई दे जाता है।

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                               दस्तावेजों और पीड़ित से मिली जानकारी के अनुसार साल 2008 में तात्कालीन कोनी पटवारी धीरेन्द्र सिंह ने धोखाधोड़ी कर आईटीआई जमीन को कोमल आहुजा को बेच दिया। कोमल आहुजा के पति दिनेश आहुजा ने बताया कि साल 2008 में कोनी कोटवार मेलउदास अपने दो साथियों श्रवणदास और पवनदास के साथ घर आया। मेलऊ ने बताया कि वह अपनी कोनी स्थित जमीन बेचना चाहता है। मैने मेलऊ के साथ जाकर मौके पर जमीन का मुआयना किया। जमीन अच्छी और सस्ती होनेे का कारण पटवारी से जांच पड़ताल भी करवाई।

सरकारी जमीन की रजिस्ट्री

                                            दिनेश आहुजा के अनुसार 2008 में तात्कालीन कोनी पटवारी धीरेन्द्र सिंह को दस्तावेज दिखाया। धीरेन्द्र सिंह ने खसरा नम्बर 324/1 को देखने के बाद .75 एकड़ जमीन पर किसी भी प्रकार का विवाद नहीं होना बताया। इसके बाद पटवारी धीरेन्द्र सिंह ने बी-1 और पी-1 जारी कर रजिस्ट्री और सीमांकन किया । 22 बिन्दु भी जारी किया। रजिस्ट्री और खरीदी में कुल साढ़े चार लाख रूपए खर्च हुए। साल 2008 में चौहद्दी कर जमीन को छोड़ दिया।

 बदमाशी का खुलासा

             दिनेश के अनुसार  कुछ महीने पहले मेैने जमीन बेचने इच्छा जाहिर की। पटवारी और तहसीलदार के सामने सीमांकन के लिए आवेदन किया। लेकिन वर्तमान तहसीलदार और पटवारी ने जमीन का सीमांकन करने से ना केवल इंंकार किया..बल्कि जमीन विश्वविद्यालय की है। पटवारी ने तहसीलदार को रिपोर्ट किया कि खसरा नम्बर 324/1 विश्वविद्यालय या कोनी आईटीआई की जमीन है। इसलिए इसे बेचना या सीमांकन करना उचित नहीं होगा।

             इतना सुनते ही मेरे पैर के नीचे की जमीन खिसक गयी। मैने एक आवेदन कर तहसीलदार ने विश्वविद्यालय से जमीन सम्बधित दस्तावेज दिखाने की मांग की। मेरे आवेदन के बाद तहसीलदार ने विश्वविद्यालय से सम्पूर्ण दस्तावेज मंगाया।

कोनी आईटीआई की जमीन

                     विश्वविद्यालय दस्तावेज के अनुसार साल 1972 से खसरा नम्बर 324/1 की जमीन कोनी आईटीआई के कब्जे में है। इसक पहले जमीन भारत सरकार की थी। विश्वविद्यालय ने जमीन अधिग्रहण से पहले मुआवजा का भी वितरण किया। विश्वविद्यालय ने जमीन सम्बधित सभी दस्तावेज और जानकारी कोनी पटवारी हल्का,कमिश्नर कार्यालय,कलेक्टर कार्यालय के अलावा तहसील कार्यालय में जमा होना बताया।

आत्महत्या की धमकी

                       दिनेश ने बताया कि तहसीलदार के अनुसार जमीन पर कोमल आहुजा का कोई अधिकार नहीं है। तात्कालीन कोनी पटवारी धीरेन्द्र सिंह ने धोखा किया है। दिनेश ने कहा कि मुझे मेरा रूपया चाहिए या फिर धीरेन्द्र को जेल। इसके बाद ही मुझे खुशी मिलेगी। मेरे साथ पटवारी ने गन्दा मजाक किया है। मुझे न्याय चाहिए। तहसीलदार और पटवारी मुझे लगातार घुमा रहे है।  मैं थक गया हूं। यदि न्याय नहीं मिला तो आत्महत्या भी कर लूंगा।

पटवारी ने किया गुमराह

                दिनेश ने बताया कि मैं सीधा साधा हूं। मुझे जमीन खरीदना था। किसी लफड़े से बचने के लिए ही पटवारी के पास गया था। उसने जमीन का खसरा नम्बर विवादहीन होना बताया। इतना ही नहीं धीरेन्द्र ने 22 बिन्दु भी जारी किया। यदि सरकारी जमीन थी तो 22 बिन्दु को क्यों जारी किया गया। रजिस्ट्री और सीमांकन क्यों किया गया। बी1 और पी1 क्यों बनाया गया।  इससे जाहिर होता है कि पटवारी और तहसीलदार जमीन बेचने वालों के साथ मिले हुए थे। दरअसल मुझे साजिश के तहत ठगा है।

पटवारी ने पटवारी को बचाया

            दिनेश ने बताया कि मैने जमीन सीमांकन कराने पटवारी संतोष पाण्डेय के दरवाजे पर कई बार नाक रगड़ा। लेकिन पटवारी ने आजकल कर महीनों और सालों टाला। दरअसल संतोष को धीरेन्द्र की काली करतूते मालूम थी। इस पूरे प्रकरण में संतोष पाण्डेय का भी हाथ है। यही कारण है कि वह सीमांकन करने से ना केवल बच रहा था बल्कि सच्चाई को जानबूझकर छिपाया। इससे जाहिर होता है कि संतोष और धीरेन्द्र सिंह के बीच गहरी सांठ गांठ थी।

मेलऊ के साथ दोनो आरोपी सरकारी कर्मचारी

        दिनेश ने बताया कि मेलउराम कोनी का कोटवार है। अाजकल उसका लड़का भी कोटवार हो गया है। श्रवण और पवनदास पीडब्डूडी में भृत्य का काम करते हैं। पटवारी धीरेन्द्र सिंह और मेलऊ में उस समय अच्छी जमती थी। तीनो ने मिलकर मुझे आईटीआई की जमीन को थमा दिया।

                                                                                    जारी है……………..पटवारी विरेन्द्र सिंह की नटवर लीला

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