नटवर पटवारी की लीला….खबर का असर…विश्वविद्यालय जमीन बिक्री की होगी जांच…संकट में पटवारी

BHASKAR MISHRA
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tehsil-bspबिलासपुरसीजी वाल की खबर….पटवारी की नटवर लीला….को जिला प्रशासन ने गंभीरता से लिया है। एसडीएम बिलासपुर को मामले में जांच का आदेश दिया गया है। विश्वविद्यालय की जमीन खसरा नम्बर 324/1 को तात्कालीन पटवारी धीरेन्द्र सिंह ने दिनेश आहुजा की पत्नी कोमल आहुजा को मेलउराम,श्रवण कुमार और पवन कुमार के साथ मिलकर 2008 में बेच दिया था। पटवारी धीरेन्द्र सिंह ने कोमल आहुजा के नाम दस्तावेज खंगाले बिना कोनी आटीआई की जमीन से .75 हेक्टेयर जमीन चढ़ा दिया। बाद में दूसरे तहसीलदार और पटवारी ने बताया कि जमीन कोनी आटीआई की है। पटवारी धीरेन्द्र ने जो भी दस्तावेज कोमल आहुजा को जारी किए हैं सब फर्जी हैं।

             
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                        पटवरी की नटवर लीला…22 बिन्दु जारी कर..बेच दी केन्द्रीय विश्वविद्यालय की जमीन…खबर को जिला प्रशासन ने गंभीरता से लिया है। एडीएम के.डी.कुंजाम ने खबर पढ़ने के बाद एसडीएम आलोक पाण्डेय को मामले में जांच का आदेश दिया है। कुंजाम ने आलोक पाण्डेय को बताया कि सीजी वाल पोर्टल में छपी खबर को गंभीरता से लिया जाए। रिपोर्ट एक सप्ताह के भीतर पेश करें। साथ ही सीजी वाल की खबरों पर नजर रखने को भी कहा।

                           मालूम हो कि दो दिन पहले सीजीवाल ने पीड़ित कोमल आहुजा के पति दिनेश की गुहार पर खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। पीडित दिनेश आहुजा पिछले सात साल से अपनी जमीन को पाने तहसीलदार और पटवारी का चक्कर काट रहा है। जिला प्रशासन के दरबार में भी नाक रगड़ चुका है।  लेकिन उसकी गुहार को अनसुना कर दिया गया।

कैसे हुई सरकारी जमीन की रजिस्ट्री

        IMG-20170529-WA0023दिनेश ने बताया कि साल 2008 में कोनी कोटवार मेलउ राम और पीडब्लडी में काम करने वाले पवन और श्रवण उसके घर आये। जमीन खरीदने को कहा। जमीन देखने में अच्छी लगी। पटवारी से जांच पड़ताल के बाद तीन लाख पचहत्तर हजार रूपए में जमीन खरीदा। तात्कालीन पटवारी धीरेन्द्र सिंह और तहसीलादर परस्ते नें खसरा काटा। .75 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा दिया। इसके पहले पटवारी और तहसीलदार ने 22 बिन्दु भी जारी किया। सीमांकन के बाद जमीन पर मेरा कब्जा हो गया।

पैर से जमीन खिसक गयी

                   दिनेश ने बताया कि कुछ साल बाद जमीन पर निर्माण करने गया… तो पटवारी संतोष पाण्डेय ने सीमांकन करने से इंकार कर दिया। उन्होने कहा कि मौका मिलने पर सीमांकन कर दूंगा। पटवारी संतोष के हटने के बाद पांच छः महीने पहले सीमांकन करने की मांग की तो पटवारी ने बताया कि खसरा नम्बर 324/1जमीन विश्वविद्यालय की है। सरकारी जमीन का सीमांकन नहीं हो सकता है। दिनेश के अनुसार उसने तहसीलदार को आवेदन देकर विश्वविद्यालय और कोनी आईटीआई से दस्तावेज दिलाए जाने की मांग की। दस्तावेज में बताया गया है कि साल 1972 में भारत सरकार ने गुरू घासीदास विश्वविद्यालय को जमीन दी है। तात्कालीन समय मुआवजे के प्रकरण का भी निराकरण कर दिया गया है। इसकी जानकारी कमिश्नर,कलेक्टर,तहसील और कोनी पटवारी कार्यालय को भी है।

                           बाद मेंं गुरू घासीदास विश्वविद्यालय ने जमीन को कोनी आटीआई को दिया। वर्तमान में खसरा नम्बर 324/1 पर कोनी आईटीआई का अधिकार है। दिनेश के अनुसार मैं तब से आज तक न्याय के लिए चक्कर काट रहा हूं। इसमें तहसीलदार परस्ते,पीसी कोरी और तात्कालीन तहसीलदार धीरेन्द्र सिंह की मिलीभगत है। बाद में धीरेन्द्र सिंह को बचाने पटवारी संतोष पाण्डेय ने सीमांकन नहीं कर सहयोग किया।

विश्वविद्यालय की जमीन बेचना गंभीर अपराध…पटवारी पर होगी कार्रवाई

 IMG-20170529-WA0025                                      सीजी वाल को एडिश्नल कलेक्टर के.डी.कुंजाम ने बताया कि सीजी वाल डांट काम पर विशेष खबर को पढ़ा। आश्चर्य की बाात है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों।  बी1, पी2 जारी करने से पहले दस्तावेजों को पटवारी और तहसीलदार ने क्यों नहीं खंगाला। खबर के अनुसार 22 बिन्दु जारी करने से लेकर सीमांकन में भारी लापरवाही की गयी है। मैने एसडीएम को मामले में जांच का आदेश दिया है। जांच रिपोर्ट के बाद दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। जांच के दौरान दोनों पक्षों के दस्तावेजों खंगाला जाएगा। किस अधिकारी ने बेतुका आदेश जारी किया। एक सप्ताह के अन्दर रिपोर्ट पेश किया जाएगा। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी।

पीड़ित ने कहा न्याय चाहिए

                     मुझे जमीन अच्छी लगी..रूपए थे इसलिए लिया। जमीन खरीदने से पहले पटवारी को भी बताया। पटवारी ने कहा कि जमीन विवादहीन है। खरीद सकता है। मैने रजिस्ट्री मिलाकर कुल साढ़े चार लाख रूपए में जमीन खरीदी। बाद में बताया गया कि जमीन केन्द्रीय विश्वविद्यालय की है। यदि पहले से पता होता तो जमीन क्योंं खरीदता । सात साल से चक्कर काट रहा हूूं। मेरी हालत बद से बदतर हो गयी है। यदि न्याय नहीं मिला तो आत्महत्या कर लूंंगा। पटवारी धीरेन्द्र सिंह और तात्कालीन तहसीलदार ने मुझे अंधेरे में रखा। उनका काम है कि वे बताएं की जिस जमीन को खरीद रहा हूं सही है या गलत…। मेरी तरह कई लोग परेशान हैं। मेलउराम,पवन और श्रवण के खिलाफ कार्रवाई हो।

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