आपातकाल की याद दिला रही सरकार की कर्मचारी विरोधी नीति

Chief Editor
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बिलासपुर।शासकीय कर्मचारियों के सेवा नियमों मेँ आपात काल के दौरान 1976 में अनिवार्य सेवानिवृत्ति के नियमों में प्रावधान किया गया था। इसी नियम के अन्तर्गत राज्य शासन शासकीय सेवको को अनिवार्य सेवा निवृत्ति देने’ की कार्यवाही कर रही है जो कि कर्मचारी विरोधी एवं अलोक्लात्रिक’ है।यह बाते सघ’ कं प्रान्ताध्यक्ष पी.आर.यादव ने आज कलेक्ट्रेट में आयोजित रैली को संबोधित” करते हुए कहा।छग प्रदेश तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी सघ’ के आहवान पर 20 वर्ष अथवा 5o वर्ष आयु पर अनिवार्य सेवा निवृत्वि के खिलाफ कर्मचारियों ने कम्पोजिट बिल्डिंग’ से क्लेक्टोरेट तक रैली निकाल प्रदर्शन किया और कलेकटर को ज्ञापन दे कर मांग की गई कि छानबीन समिति निष्पक्ष और पारदर्शिता पूर्ण कार्यवाही सुनिश्चित करे। प्रतिनिधियों ने कहा कि प्राकतिक न्याय के दृष्टान्त के तहत जिन कर्मचारियों का नाम सेवा निवृति हेतु प्रस्तावित किया जाता है, उन्है अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जावे ।

             
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                     संघ के प्रदेश अध्यक्ष ने जबरिया सेवा निवृन्ति देने के शासन के आदेश को अलोकतांत्रिक और कर्मचारी विरोधी निरूपित करते हुए कहा कि इससे कार्य संस्कृति में सुधार नहीं होगा वल्कि शासकीय कार्यालयों में “यस बॉस”‘ल जन्म लेगा ।

                     सघ ने शासन से माग की है कि स्वैच्छिक सेवा निवृन्ति का योजना प्रस्तुत करें । कर्मचारी स्वेच्छा से सेवा निवृन्ति लेने हेतु सहमत है पर योजना में यह प्रावधान रखा जाये कि जो कर्मचारी 20 वर्ष व 5o वर्ष की आयु में सेवा निवृक्ति लेगा उसक परिवार के एक सदस्य को योग्यता नुसार शासकीय सेवा में लिया जायेगा।

                   यह उल्लेखनीय है कि अविभाजित राज्य में शासन ने शारीरिक रूप से अक्षम कर्मचारियों को सेवा निवृत्ति देकर परिवार के एक सदस्य को शासकीय नौकरी देने का प्रावधान रखा था । यह नियम शिक्षा विभाग में बडी. सख्या” में लागू हुआ, बाद में इस योजना को शासन ने बन्द’ का दिया । इस याजना`को पुन: सभी विभागों में लागू किया जाये I

                 संघ’ ने निर्णय लिया है कि अनिवार्य सेवा निवृति के नाम पर कर्मचारियों का भयादोहन एव’ आर्थिक शोषण पर रोक नहीँ लगाया तो विधानसभा सत्र में राजधानी रायपुर ने प्रान्त व्यापी रैली प्रदर्शन का व्यापक विरोध किया जायेगा।

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