बिलासपुर । ( प्राण चड्ढा) छतीसगढ़ हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में जानकारी दी गई है कि भौरमदेव सेन्चुरी में 16 किमी सड़क के चौड़ीकरण में 3500 पेड़ों की कटाई होगी और इन पेड़ों पर रहने वाले परिन्दों के लिए 17 लाख रुपये से कृत्रिम घोंसले बनाये जाएंगे। क्या हमारे बनाये घोसलें को जंगल के पँछी अपना ठिकाना बनायेगे? या ये रकम की बंदरबाट होगी और कुछ घोंसले सड़क के किनारे कहीं लगा कर खानापूर्ति हो जाएगी?हाईकोर्ट में याचिका, रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नीतिन सिंघवी ने दायर की है।पक्षियों के लिये घोंसले बनने का ये पहला मामला नहीं है और न अंतिम,जब जब विकास के नाम पर पेड़ कटेगें, कृत्रिम घोंसले में वालो की चांदी पिटेगी।
चाहे ये काम वन विभाग करेगा, या कोई ठेकदार/एनजीओ। चिड़िया, बहुत संवेदनशील होती है, इसलिए आदमी की पहुंच से दूर पेड़,बंजर जमीन, तालाब के किनारे वो घोंसले बनती है। सबका घोंसला अलग-अलग तरीके का होता है। जंगल की चिड़िया कभी आदमी के बनाये घोंसले में अंडे नहीं देगी।
तोते और उल्लू पेड़ के कोर्टर को घोंसला बनते है। मादा धनेश कोर्टर में अंडे देती है। नर उसकी सुरक्षा के लिए कोर्टर को काफी बन्द कर देता है। बस इतनी जगह शेष होती है कि वो मादा को अंडे सेने और बच्चों के बढ़ने तक भोजन सके,।
बंजर जमीन के चिड़िया उस जमीन के रंग का अंडा भूमि मेँ देती और सेती है। बगुले, करमोरेंट, ओपन बिल स्टार्क अपनी तयशुदा सुरक्षित पेड़ों पर घोंसला अपनी शैली का बनाते है। कोयल, चातक तो दूसरे के घोसले में अंडे देते है।
भला कोई इंसान बया वीवर का कलात्मक घोंसला बना सकता है। इसका नर घोंसला बनाता है और मादा,अपनी पंसद के घोसले बनने वाले नर के साथ हो जाती है।वीवर बर्ड पत्तों की सिलाई कर आशियाना बनाती है।
छतीसगढ़ वॉइल्ड लॉइफ बोर्ड के मेम्बर एएमके भरोस सर, का मानना है कि बमुश्किल पांच फी सदी पक्षी कृत्रिम, घोंसले को आबाद करते हैं। याने 95 प्रतिशत बेउपयोगी रह जाते है। बेहतर है पेड़ न कटे, अगर कटे तो पहले उस इलाके में क्षतिपूर्ति के लिए दो तीन साल पहले लग जाये। जनता पसीने की कमाई का अर्जित कोई राशि किसीं स्कीमबाज या घपलेबाज के हाथ न लगे, यह दायित्व सरकार का है।