नईदिल्ली।◊नोटबंदी ने की देश में तालाबंदी◊नोटबंदी- आर्थिक अराजकता, संगठित लूट व भाजपाई ‘घोटाला’◊प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषित किया 130 करोड़ भारतीयों को ‘अपराधी’◊अर्थव्यवस्था पर करारा प्रहार, ‘व्यवसाय ठप्प’, ‘खत्म रोजगार’ ◊‘‘भुगत रहा है देश’’।सोमवार को रणदीप सिंह सुरजेवाला, मीडिया प्रभारी, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, सुश्मिता देव, अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला कांग्रेस,मनोहर जोशी, मुख्य आयोजक, कांग्रेस सेवादल,अमरिंदर सिंह राजा, अध्यक्ष, भारतीय युवा कांग्रेस व जयवीर शेरगिल, राष्ट्रीय मीडिया पैन्लिस्ट ने बयान जारी किए।
बयान में कहा गया है कि आज नोटबंदी की पहली बरसी है और साथ ही उन 150 निर्दोश भारतीयों की, जो बैंकों की लाईनों में खड़े मौत की शिकार हो गए। उनके परिवारों को हमारी हृदय से संवेदनाएं। दिल्ली की सल्तनत का ‘नोटबंदी का फरमान’ पहला और नया नहीं। 14 वीं सदी के शासक, मुहम्मद-बिन-तुगलक (1324-1351) ने नोटबंदी का फरमान जारी कर मूल मुद्रा की जगह ‘टंक-ए-सियाह’ अर्थात् काले सिक्के चला बर्बादी फैलाई थी। तुगलक अपने मनमाने निर्णयों के लिए कुख्यात था। ‘ऐसा ही तुगलकी आदेश’ 8 नवंबर, 2016 को आज के ‘तानाशाह बादशाह’ ने जारी कर देश को फिर बर्बाद किया। एक वर्ष बीत गया। पर ‘सूट-बूट वाले बादशाह’ द्वारा लगाई आग को जनता आज भी अपने आंसुओं से बुझा रही है।
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‘न खाउंगा, न खाने दूंगा’ कहने वाले नोटबंदी के नाम पर इस देश की अर्थव्यवस्था व लोगों के रोज़गार को खा गए और अब जश्न मना रहे हैं। नोटबंदी की पहली बरसी पर लुटेरे ‘लूट का उत्सव’ मना रहे हैं और आम देशवासी रोजगार और रोटी खो जाने का अफसोस। 70 साल के इतिहास में किसी शासक ने पहली बार देश के 130 करोड़ लोगों को ‘अपराधी घोषित’ कर दिया। क्या हर वो गृहणी, जिसने मुसीबत के लिए थोड़ा सा पैसा बचाकर रखा था; हर वो व्यक्ति, जो रोज़मर्रा की जिंदगी के चलन में नकद पैसे का इस्तेमाल करता है; क्या नकद पैसे का इस्तेमाल करने वाला हर दुकानदार-दिहाड़ीदार- लघु और छोटा व्यवसायी – अब ‘अपराधी’ है।
क्योंकि मोदी जी ने तो नकद पैसे का लेन-देन करने वाले इस देश के 130 करोड़ लोगों को एक निर्णय से ही अपराधी घोषित कर डाला। एक साल बाद यह पूछा जाना चाहिए कि हासिल क्या हुआ?जनता से कहा कि ‘कालाधन’ पकड़ेंगे। फिर जनता से कहा कि ‘फर्जी नोट’ पकड़ेंगे । फिर जनता से कहा कि ‘उग्रवाद व नक्सलवाद’ को खत्म करेंगे। पर 99 प्रतिशत पैसा तो वापस आ गया। फिर कहां गया कालाधन? कहां गए फर्जी नोट? क्या उग्रवाद व नक्सलवाद रुका? अगर नहीं, तो नोटबंदी की तालाबंदी क्यों?देश की अर्थव्यवस्था को 3 लाख करोड़ से अधिक का नुकसान हो गया। जीडीपी 2 प्रतिशत कम हो गई। उद्योगधंधे चैपट हो गए। संगठित क्षेत्र मे 15 लाख व असंगठित क्षेत्र मे 3.72 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं। क्या अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा व रोजी-रोटी-रोजगार छीन कर रहे हैं राष्ट्रनिर्माण? बैंकों की लाईनों मे 150 निर्दोष लोगो की जान चली गई।
आरबीआई की स्वायत्ता को तहस-नहस कर दिया गया। मंत्रीमंडल को 3 घंटे तक कमरे में तालाबंद रखा गया। न किसी विशेषज्ञ की राय ली और न किसी अर्थशास्त्री की। क्या ऐसे चलाएंगे देश का प्रजातंत्र? नोटबंदी के भाजपाई घोटाले की तो जांच हुई ही नहीं।
बयान में नोटबंदी के दौरान हुई कई ऐसी घटनाओँ का जिक्र किया गया है , जिसमें भाजपा के लोग शामिल रहे हैं। साथ ही कहा गया है कि इन मामलों की जाँच क्यों नहीं की गई। कांग्रेस नेताओँ ने आगे कहा कि सच यह है कि गरीब और साधारण व्यक्ति मारा गया। चोरों ने अपना सारा काला पैसा सफेद करा लिया। कालेधन को सफेद करने की स्कीम का दूसरा नाम नोटबंदी था। नोटबंदी का जहरीला असर अर्थव्यवस्था पर डर के बादल की तरह छाया हुआ है। इसे दूर करने के लिए बदलाव की तेज और ताजी हवा चलाना जरूरी है।