शिक्षाकर्मियों ने बताया दर्द-क्यों चाहते हैं खुली ट्रांसफर नीति,क्यों हो रहा परिवार छिन्न भिन्न

BHASKAR MISHRA
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20171121_142210(0)(1)बिलासपुर—सरकारी फरमान के बाद शिक्षाकर्मियों का मन डावांडोल होने लगा हैं। निलंबन और बर्खास्तगी की खबर के बाद शिक्षाकर्मियों ने अब कोर्ट कचहरी का रूख कर दिया है। संगठन के कई शिक्षक काम पर लौट आए हैं। शिक्षाकर्मियों का हौंसला धीरे धीरे टूटने लगा है। बर्खास्तगी की तलवार ने शिक्षकों को अन्दर तक हिला दिया है। बावजूद इसके ज्यादातर शिक्षक अब भी 9 सूत्रीय मांग को लेकर मैदान में है। मालूम हो कि 19  नवम्बर को शिक्षा और पंचायत सचिव के अलावा मंत्रालय के आलाधिकारियों की उपस्थिति में शिक्षकों की वार्ता में सात आठ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर सहमति बन गयी थी। मुख्यमंत्री से मिलने के बाद सातवां वेतनमान और संविलियन शासकीयकरण की मांग पर मामला अटक गया। 20 नवम्बर को प्रदेश के 1 लाख 80 हजार शिक्षाकर्मी बेमियादी हड़ताल पर चले गये। 9 सूत्रीय मांगों के बीच शिक्षाकर्मियों ने खुली स्थानांतरण नीति की मांग को भी गंभीरता से उठाया है।
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                      नवीन शिक्षाकर्मी संघ रायपुर और मोर्चा प्रांत संचालक विकास सिंह राजपूत ने बताया कि शिक्षाकर्मियों की स्थानांतरण नीति दोषपूर्ण है। सरकार खुली स्थानांतरण नीति को लागू कर दे तो भ्रष्टाचार पर काफी कुछ अंकुश लग जाएगा।  स्थानांतरण के नाम पर पंचायतों में लूटपाट हो रही है। शिक्षाकर्मियों के लिए स्थानांतरण नीति इतना जटिल है कि परिवार के साथ सुकून के दो पल गुजारना नामुमकिन हो गया है।

           विकास सिंह राजपूत के अनुमसार वर्तमान में शिक्षाकर्मियों का स्थानांतरण परस्पर सहमति के बाद सामान विषय, संकाय और समान संवर्ग के आधार पर हो सकता है। इसके पहले दोनों पंचायत कार्यालयों से एनओसी जरूरी है। मुश्किल से स्थानांतरण हो भी गया तो परिवहन का खर्च शिक्षाकर्मियों को उठाना पड़ेगा।

                मोर्चा संचालक विकास सिंह राजपूत ने बताया कि व्याख्याता और शिक्षक पंचायत का स्थानांतरण आदेश जिला पंचायत से होता है। सहायक शिक्षक पंचायत का स्थानांतरण जनपद पंचायत से जारी होता है। विशेष परिस्थितियों में मेडीकल क्रिटिकल होने पर दोनों पंचायत की एनओसी के बाद स्थानांतरण हो सकता है।
क्या है वर्तमान स्थानांतरण नीति                          
             विकास सिंह के अनुसार म्यूच्युल ट्रांसफर जटिल होता है। इसके लिए दोनों पक्षों का संकाय,समूह और विषय का एक होना जरूरी है। इसके बाद ही जिला और जनपद पंचायत एनओसी देगा। विशेष क्रिटिकल मेडिकल की स्थिति में एनओसी की संभावना होती है। इसके लिए हजारों रूपए खर्च करने होते हैं। यदि खुली स्थानांतरण नीति होती तो शिक्षाकर्मियों को मानसिक परेशानी नहीं गुजरना पड़ता।
स्थानांतरण नीति से विखर रहा परिवार
                 विकास ने बताया कि राज्य बनने के बाद व्यापक स्तर पर जिला,जनपद स्तर पर शिक्षाकर्मियों की भर्ती हुई। व्यापम ने परीक्षा लेकर शिक्षा कर्मियों की भर्ती की। महिलाओं को प्राथमिकता मिली। 2012 में 35 प्रतिशत से अधिक महिला शिक्षाकर्मी नियुक्त हुई। नियुक्त के समय ज्यादातर महिलाएं और पुरूष अविवाहित थे। इसके बाद शादियां हुई। शादियां गांव, शहर या जिला के बाहर हुई। लेकिन जटिल स्थानांतरण नीतियों के चलते पति पत्नी आज भी अपने परिवार से दूर एकाकी जीवन जी रहे हैं। जटिल ट्रांसफ़र नीति ने परिवार को छिन्न भिन्न कर दिया है। जबकि संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता है।  एक ही परिवार के दो सदस्य दो जगह मकान किराया,खाना खर्चा का वहन करते हैं। दोनों परिवार साथ रहे तो इन सब खर्चो में कमी आ जाएगी। और तनाव भी कम होगा।
क्या चाहता है शिक्षाकर्मी
शासकीय कर्मचारियों के लिए खुली  स्थानांतरण नीति का प्रावधान है। शिक्षाकर्मियों से इससे अछूता रखा गया है। आज अनेक शिक्षाकर्मी पति पत्नी दूरस्थ क्षेत्रों में घर-परिवार से दूर अलग अलग रहने को मजबूर हैं। जबकि आस-पास कई पद रिक्त हैं। शासकीय कर्मचारियों की तरह खुली स्थानांतरण नीति लागू हो जाए तो इसका फायदा अलग अलग जगहों में काम कर रहे शिक्षाकर्मी पति पत्नी को भी मिलेगा। दोनों एक छत के नीचे आ जाएंगे। समय और खर्च भी कम होगा। बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर विशेष ध्यान देंगे। पारिवारिक और कार्यलयीन तनाव भी खत्म होगा।
            विकास ने बताया कि खुली स्थानांतरण नीति लागू नहीं होने की सूरत में शिक्षाकर्मियों के पास केवल दो विकल्प हैं। या तो अलग-अलग रहें या फिर नौकरी छोड़ दें। नौकरी छोड़ना संभव नहीं है। क्योंकि अकेले की कमाई में घर चलाना मुश्किल है।  शिक्षाकर्मी घर परिवार के साथ सामान्य रूप से जीवन गुजर बसर करें…पठन पाठन में 100 प्रतिशत योगदान दें।  इसलिए शासन को सामान्य शिक्षकों की तरह खुली स्थानांतरण नीति का दरवाजा शिक्षाकर्मियों के लिए भी खोल देना चाहिए।
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