बिलासपुर।छत्तीसगढ़ में चल रहे शिक्षा कर्मियों के आँदोलन के दौरान सरकार के रुख को लेकर शिक्षा कर्मियों मे तीखी प्रतिक्रिया है। जो सोशल मीडिया के जरिए भी सामने आ रही है। जिससे सोशल मीडिया पर उनके कई पोस्ट देखने को मिल रहे हैं। इस तरह के पोस्ट के जरिए शिक्षा कर्मी अपनी बात भी रख रहे हैं और यह बताने की कोशिश भी कर रहे हैं कि आँदोलन को कुचलने की कोशिश में दमनात्मक कार्रवाई के साथ ही बार – बार वार्ता की खबर प्रचारित कर सरकार प्रदेश के आम लोगों के बीच शिक्षा कर्मियों को हठधर्मी करार देने पर तुली हुई है ऐसी पोस्ट पर लोगों की प्रतिक्रियाएं बी आ रही हैं। ।इसी तरह की एक पोस्ट हम यहाँ साझा कर रहे हैं।
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एक शिक्षा कर्मी का लिखा ….
ये रोज रोज वार्ता पर बुलाना छलावा है सरकार का ……..जो बात सरकार 19 तारीख को कह रही थी आज भी वही कह रही है …..वही कमेटी वाली बात …….सरकार जनता और अभिभावकों को ये ज़ताना चाहती है कि हम तो गंभीर है ….वार्ता के लिये …इतने बार बुला भी लिया,लेकिन शिक्षा कर्मी ही हैँ जो अड़े हुए हैँ..संघ के नेताओं ने अपने कदम पीछे खींचते हुए बार बार कहा है कि हम संविलयन पर कमेटी के लिये तैयार हैँ पर वित्तीय माँगो पर आप आदेश निकाल दें | एक तरफ सरकार कहती है कि हम सभी वित्तीय मांगों पर सहमत हैँ …दूसरी तरफ आदेश निकालना तो दूर यह भी बताने को तैयार नही है कि कब तक ये आदेश निकाल दिये जायेंगे ……पिछले 14 वर्षों का अनुभव हमें सरकार पर विश्वास करने से रोकता है |
जिस प्रकार की दमनात्मक कार्यवाही कल की गई उससे सरकार की मंशा पर शक होता है |बिना किसी अपराध शिक्षा कर्मियों को घर से उठा ले जाना ,ट्रनों ,बसों मे अपराधियों की तरह ढूंढना ,रायपुर मे राह चलते लोंगों से पूछना कि क्या आप शिक्षा कर्मी हैँ ,हाँ बोलने पर अरेस्ट कर लेना ….जबकि शिक्षा कर्मियों का ऐसा कोई उदाहरण नही है कि उनका आंदोलन कभी हिंसात्मक रहा हो ,बल्कि लाठियाँ ही खाई हैँ |कल की कार्यवाही पूर्णत : असंवैधानिक और मूलाधिकारों को कुचलने वाली थी |आज का बुलावा भी कहीं सभी नेताओं को एक साथ बुला कर गिरफ्त मे ले लेना ना हो ?
सरकार यदि वास्तव मे हमारी मांगों के प्रति गंभीर है तो तत्काल समान कार्य समान वेतन सहित वित्तीय मामलों के आदेश जारी करे ,संविलयन के लिये कमेटी की रिपोर्ट की प्रतीक्षा करने संघ तैयार है| नही तो ये बंद कमरों मे वार्ता का दिखावा बंद कर खुले मंच पर मीडिया और आम जनता के सामने शिक्षा कर्मियों की मांगो को नाज़ायज सिद्ध कर के दिखाये..
जनता को भी पता चलना चाहिए कि सुप्रींम कोर्ट के आदेश के बाद भी समान कार्य के लिये समान वेतन क्यों नही मिल सकता और शिक्षा कर्मियों का शिक्षा विभाग मे संविलयन क्यों असंभव है ?? यदि सरकार ऐसा कर शिक्षा कर्मियों को गलत साबित करने मे सफल होती है तो शिक्षा कर्मी स्वत : अपनी शालाओं मे वापस लौट जायेंगे …इस वायदे के साथ कि जो नुक़सान हुआ है बच्चों का उसकी भरपायी शालाओं मे अतिरिक्त समय देकर कर दी जायेगी |
हमारे बच्चे …हमारे स्कूल …..हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैँ |हम स्कूल जाना चाहते हैँ …पढ़ाना चाहते हैँ |हमारी एक ओर कर्तव्य है . . तो दूसरी ओर अधिकार …..|पिछले 4 वर्षों से कर्तव्य बोध के कारण ही हमने मौन प्रतीक्षा की …..केवल कागजों के माध्यम से सरकार को उनके कर्तव्य याद दिलाने के प्रयास किये ……लेकिन जब असफलता ही हाथ लगी तो आंदोलन की राह लेनी पड़ी | अब कर्तव्य पूरा करने कि बारी सरकार की है | या तो मांगें पूरी की जायें या मांगों को गलत सिद्ध किया जाए |मेरी यह पोस्ट यदि संघ के नेताओं तक पहुँच रही है तो इसका समर्थन करने का आग्रह करता हूँ |और यह भी आग्रह करता हूँ कि सरकार को खुली चर्चा के लिये संघ की ओर से आधिकारिक प्रस्ताव दिया जाये।