पीसीसी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद तो अब नौकरी मिलने की बजाय छंटनी की प्रक्रिया निजी उद्योगो और कल-कारखानोे में चल पड़ी है जो अभी भी जारी है। रोजगार पाने की मारा-मारी है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखने को मिला डीकेएस पोस्ट ग्रेजुएट एवं रिसर्च सेंटर रायपुर में जहां वार्डब्वाॅय, आया, भृत्य और चैकीदार के पदो के लिये हजारो की तादाद में पोस्टग्रेजुएट-ग्रेजुएट युवा महज संविदा नौकरी का आवेदन पत्र जमा करने आये थे। हैरान करने वाली बात यह है कि उच्च डिग्री प्राप्त युवा वार्डब्वाय, भृत्य और आया बनने को मजबूर है। 27 जिलो में संचालित लाईबलीहुड काॅलेज से निकलने वाले हजारो युवा भी काम की तलाश में भटक रहे है। सरकार की तरफ से उन्हें कोई विशेष मद्द नहीं मिल रही है।
कांग्रेस प्रवक्ता मो. असलम ने कहा है कि सरकार के प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, स्टार्टअप योजना में इन युवाओं को स्वरोजगार नहीं मिला और न ही सरकारी विभागो के रिक्त पदो को भरने में राज्य सरकार ने कोई रूचि दिखाई है। आज आलम यह है कि 29 प्रकार के 220 पदों की भर्ती के लिये आमंत्रित आवेदन को जमा कराने में जुटी युवाओं की बेकाबू भीड़ को नियंत्रित करने के लिये 10 टीआई और 100 से अधिक जवानों को तैनात करना पड़ता है। यह विडंम्बना है कि सरकार युवाओं को पर्याप्त रोजगार के अवसर प्रदान करने में पूर्णतया नाकाम है।
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