” उनके ” चेहरे पर तमाचा है, स्कूल का वह ताला….

Chief Editor

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                  पेण्ड्रा   ( शरद अग्रवाल )  -ब्रिटिश हुकुमत यानि अंग्रजो का जमाना, जिसे षायद ही कोई भारतीय याद करना चाहता हो , मगर नगर के हदय स्थल आजाद चैक में सवा सौ से भी अधिक वर्ष पुराना स्कूल लोगो को अंग्रेजी शासन की याद दिलाता रहा  है । मगर यह स्कूल अब अपनी जर्जर हालत एवं गिरते शिक्षा स्तर के चलते बेबसी पर अंसू बहा रहा है। और तो और सांसद, विधायक के अलावा कमिष्नर कलेक्टर बीईओ आदि अधिकारियों के उदासीन रवैये के कारण इस जर्जर हो चुके स्कूल पर ताला लग गया है और दहशतजदा स्कूल प्रबंधन बच्चों को उधार की स्कूल में पढ़ाई कराने को विवश है।

चार जुलाई 1884 को पेंड्रा में लोगो को पढ़ा लिखा कर बाबूमोशाय, साहब, अथवा गुरूजी बनाने के मकसद से क्षेत्र में शिक्षा की पहली नीवं रखीं गयी ।जबकि आजाद चैक में जनपद प्राथमिक पाठशाला का शुभारंभ किया तब यहां  पर मनेंद्रगढ़, चिरमिरी, केन्दा तक के बच्चे अध्ययन करने आते थे। जमींदारो के बच्चे भी इस स्कूल में शिक्षा प्राप्त किये। शुरूआती दौर में कक्षाओं का कोई मायने नही होता तब केवल लोग गुरूजनों से ज्ञानार्जन करने यहां आते। इससे बढ़कर और क्या बात होगी कि जिस स्कूल में दादा परदादाओं ने अध्ययन किया आज उसी स्कूल में पोते-परपोते पढ़ रहे हैं।

जनपद स्कूल का इतिहास वैसे तो काफी गौरवषाली रहा है, यहां से पढ़ लिखकर निकले बच्चे आज विदेशों में महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित होकर विद्यालय के इतिहास को गौरवपूर्ण ठहरा रहे है यहां से पढ़ लिखकर लोग आगे बढ़ गये मगर यह विद्यालय पिछड़ते गया और धीरे-धीरे  गुमनामी की ओर बढ़ता जा रहा है। कभी यहां पांच सौ के आस पास बच्चे पढ़ते और इन्हे पढ़ाने के लिए एक दर्जन शिक्षको की तैनाती रहती थी, ।तब यहां दाखिला पाने की होड़ मची रहती। पुराने शिक्षको के रिटायरमेंट और तबादले के बाद पद खाली होते गए और शिक्षा की परम्परागत गुणवत्ता में शिक्षको के अभाव की वजह से गिरावट आती गयी । इधर क्षेत्र में निजी स्कूलो के फैलते जाल से यहां दर्ज छात्र संख्या में भी कमी आने लगी और आज आलम यह है कि यहां बमुष्किल 90 छात्र छात्रांए ही अध्ययन कर रहे है।

अंग्रेजों के जमाने का यह स्कूल बदहाली के आलम से गुजर रहा है, यहां बुनियादी शिक्षा के बदतर हालात स्पष्ट रूप से देखे जा सकते है एक कमरे में दो तीन कक्षाओं के बच्चे एक साथ बैठकर कितनी और कैसी शिक्षा प्राप्त कर पाते होंगे इसका कयास इस विद्यालय से सैकड़ो किलोमीटर दूर बैठकर भी सहजता से लगाया जा सकता है। यहां पढ़ने वाले बच्चे  ‘क‘ से कबूतर पर यकीन करें ना करें मगर ‘त‘ से तकदीर पर अफसोस जरूर कर सकते हैं। रख रखाव के अभाव में हालत जर्जर हो चुके भवन पर हर कोई सिर्फ तरस जरूर खाता है । पर इसके संरक्षण की कसमें खाने से परहेज करता है। पिठले 26 जनवरी 2015 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर मरवाही विधायक अमित जोगी ने इस स्कूल की महत्ता को बतलाते हुये इसको एैतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित करने की जरूरत जरूर बतलायी  ।अपने निरीक्षण में उन्होने इस स्कूल के रिकार्डस इत्यादि तक को संरक्षित करने की जरूरत बतलायी । पर इसके बाद भी स्थानीय निकाय और स्थानीय अधिकारियों ने इस स्कूल के मरम्म्त तक के प्रयास नहीं किये। अब स्कूल की टीन छप्पर उड़ चुके है स्कूल का कोई भी कोना नहीं बचा होगा जहां पानी न रिसता हो। बच्चों को जहां पढ़ने के लिये कमरे नहीं है तो वहीं विद्यालय के अतिरिक्त भवन और कमरों पर नगर पंचायत पेंड्रा के कबाड़ रखे हुये हैं। नगर पंचायत पहले जहां संचालित थी ।नये भवन में षिफट होने के बाद भी स्कूल को उसके कमरे वापस नहीं किये गये जबकि विद्यालय भवन के एक हिस्से में संकुल प्रभारी ने कब्जा जमाया हुआ है।

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इसी साल शासन की समायोजन नीति के तहत जनपद स्कूल में इसी परिसर मे स्थित कन्या प्राथमिक पाठषाला को भी मर्ज कर दिया गया । जिसके बाद इस स्कूल में कुल 90 छात्र छात्रांए हो गये है। जिसमें कक्षा एक में 12, दो में 9, तीन में 16, चार मे 30 और कक्षा पांचवी में कुल 23 बच्चे हैं। पिछले साल 2014 में तो कुल 35 बच्चे ही जनपद स्कूल में थे । पर अब मर्ज होने के बाद छात्र संख्या दोगुनी हो गयी। स्कूल की छबि भी इतनी गिर चुकी है कि इस बरस केवल 9 नये बच्चों ने दाखिला लिया है जबकि आसपास की निजी स्कूलों में तीन सौ से अधिक नये बच्चों ने एडमिषन लिया है। स्कूल के पास करीब 20 हजार रूपये हैं जिससे वे स्कूल की टीन छत को सुधरवाना भी चाहते है ।पर सभी महिला शिक्षिकांए होने के कारण मजबूर हैं । वार्ड पार्शद के अलावा अध्यक्ष और कांग्रेस भाजपा के नेताओं तक का इस ओर ध्यान दिलाया गया पर कोई भी जनपद स्कूल के सुधार के लिये आगे नहीं आया।

स्कूल भवन पर लटका ताला स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ ही साथ सरकार और सरकारी नुमाइंदो के मुंह पर करारा तमाचा है क्योंकि यह ताला न सिर्फ उनकी कथनी और करनी में अंतर को स्पष्ट करता है । बल्कि ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति उनके रवैये को भी मुंह बायें चिढ़ाते नजर आता है। बीच शहर में स्थित बुलंद इमारत पहले कभी शहर के विकास की पहचान हुआ करती थी अब यह इमारत स्थानीय जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की उदासीनता को बयान करती नजर आ रही है। समय के साथ ही साथ नष्ट हो रही इस स्कूल की इमारत को अब भी संरक्षित नहीं किया गया तो इसके नेस्तनाबूत होने में भी वक्त नहीं लगेगा।

 

‘‘यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है, अब इसके एैतिहासिक पृष्ठभूमि की जानकारी का शासन की तरफ ध्यानाकर्षण करवाया जावेगा ताकि इसे संरक्षित किया जा सके, विद्यालय की व्यवस्था को सुधारे जाने के निर्देश एवं प्रयास किए जा रहे हैं। स्कूल भवन जर्जर है इसलिये कन्या प्राथमिक पाठषाला के कमरे में बच्चों को अध्यापन कराये जाने का निर्देश दिया गया है।                 आर एस परस्ते – बीईओ पेंड्रा

 

                स्टॉफ की कमी भी है मगर व्यवस्थानुसार बच्चो को अध्यापन कराने में कोई भी कमी नही रखी जाती, अभी जर्जर हालत के कारण यहां ताला लगा दिये है और बगल की स्कूल मे बैठाकर बच्चों को पढ़ाई करवा रहे हैं। उच्चाधिकारियों को स्टाफ की कमी के अलावा भवन की जर्जर स्थिति से भी अवगत कराया गया है, शीघ्र ही ठोस पहल की जरूरत हैं।              श्रीमति राफिया फिरदौसी- प्रधान पाठिका, जनपद प्राथमिक पाठशाला पेंड्रा

 

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