(गिरिजेय)“भारतीय जनता पार्टी के लिए चौथी पारी आसान नहीं है..पिछले चुनाव का रिजल्ट सबके सामने है…. कांग्रेस बराबरी पर खड़ी है..ऐसे में अभी से चुनाव की तैयारियों में भिड़ना पड़ेगा..।“ इस तरह की बात ( खबरों के मुताबिक ) भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री राम लाल ने हाल ही में राजधानी रायपुर में अपनी पार्टी की कोर ग्रुप की मीटिंग में कहीं थीं…..। बीजेपी के भीतरखाने से दूसरी खबर यह है कि सभी एमएलए को चेता दिया गया है कि अपनी स्थिति इस तरह बना लें कि चुनाव में जीत हासिल हो सके , उन्हे इसके लिए वक्त भी दिया गया है….। अगर यह सही है तब तो यह मानने में कहीं कोई अड़चन नहीं है कि पिछले चौदह बरसों से छत्तीसगढ़ में सरकार चला रही बीजेपी के लिए भी 2018 का चुनाव आसान नहीं है। ऐसे में पार्टी के मौजूदा विधायकों पर गाज गिरना तय सा है और अभी हाल तो यही कहा जा सकता है कि बीजेपी के सभी मौजूदा विधायकों की टिकट तय नहीं है …। और मुमकिन है कि कई सीटों पर नए चेहरे सामने आ सकते हैं। जिसके लिए पार्टी के भीतर कवायद शुरू होने के संकेत मिल रहे हैं।
पिछले 2003 से भारतीय जनता पार्टी छ्त्तीसगढ़ में सभी चुनाव जीतती रही है।और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अगुवाई में सरकार बनाती रही है। इस लिहाज से 2018 के चुनाव के लिए पार्टी के लोगों में जोश-खरोश- उत्साह की कमी नहीं है। पार्टी ने इस बार मिशन 65 को निशाने पर रखा है। यानी इस बार बीजेपी छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटों में से कम-से- कम 65 सीटों पर जीत हासिल करने के लिए मैदान में उतरने की तैयारी में है। चुनाव की तैयारी के लिहाज से बीजेपी के भीतर झांकने की कोशिश करने वालों को अच्छी तरह से मालूम है कि यह पार्टी केवल चुनाव के साल ही अपनी तैयारी नहीं करती। बल्कि पूरे पाँच साल तक यह सिलसिला चलता रहता है।प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद से धरम लाल कौशिक लगातार प्रदेश का दौरा कर इस अभियान में लगे हुए हैं। कभी किसी रैली-अभियान तो प्रशिक्षण वर्ग ( ट्रेनिंग प्रोग्राम ) के नाम पर जमीनी कार्यकर्ताओँ को रि-चार्ज करने की कवायद चलती रही है। हाल ही में पं. दीन दयाल उपाध्याय जन्म शती को लेकर प्रदेश भर में बीजेपी के आयोजन होते रहे।
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जिसके जरिए पार्टी ने निचले स्तर तक अपने कार्यकर्ताओं को यह समझाने-बताने की कोशिश की कि पार्टी का पुराना इतिहास क्या है और इसमें किन बड़े नेताओँ ने किस तरह की हिस्सेदारी निभाई है। इधर सरकार की ओर से भी समय-समय पर चलाए जा रहे अभियानों के जरिए आम लोगों तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिश चलती रही है कि प्रदेश और केन्द्र में सरकार बनाने के बाद बीजेपी ने गांव- गरीब – किसान और आम आदमी की बेहतरी के लिए क्या-क्या किया है और आगे भी मौका मिलता रहा तो किस तरह की योजनाएं लागू की जाएंगी। पिछले कई सालों से चल रहे लोक सुराज अभियान की भी शुरूआत कर दी गई है। यह अभियान इस बार जनवरी से लेकर मार्च महीने तक चलेगा और इसका मकसद सरकार-प्रशासन को आम लोगों के नजदीक लाना है।
इस लिहाज से चुनाव को लेकर बीजेपी की तैयारी में कहीं कोई कमी नजर नहीं आती।लेकिन पार्टी के अँदरूनी हलकों से छनकर आ रही खबरें बता रही हैं कि पार्टी के जिम्मेदार नेता चौथी पारी में पेश रही चुनौतियों को लेकर भी चिंतित हैं। और मानकर चल रहे हैं कि इन चुनौतियों को नजर अँदाज करना भारी पड़ सकता है। हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री रामलाल के दौरे के समय जो खबरे सामने आईँ उसमें भी इस बात की झलक मिलती है।जिसमें उन्होने प्रदेश के कोर ग्रुप के सभी दिग्गज नेताओँ की मौजूदगी में साफ कहा कि चौथी पारी आसान नहीं है और अभी से चुनाव की तैयारी में जुटना होगा। उन्होने पिछले चुनाव के आँकड़े सामने रखकर कहा कांग्रेस बराबरी पर खड़ी है ( 2013 में बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोट का अँतर एक फीसदी से भी कम रहा )। वैसे भी पिछली बार बीजेपी को सरगुजा और बस्तर के आदिवासी इलाकों में कम सीटें मिली थीं।. इस लिहाज से पार्टी का फोकस बस्तर-सरगुजा पर ही अधिक है। पार्टी मानकर चल रही है कि मैदानी इलाकों में उन्नीस-बीस की स्थिति रहेगी, बाकी बस्तर-सरगुजा में कुछ सीटों का इजाफा होने पर 2018 में भी जीत हासिल हो सकती है।
2018 के चुनाव के लिए बीजेपी की चुनावी रणनीति को समझने की कोशिश करें तो यही बात सामने आती है कि संगठन के स्तर पर तो तैयारी और अभियान लगातार जारी है। बूथ स्तर तक पहुंचने के लिए पार्टी लगातार कार्यक्रम कर रही है और इस स्तर पर जिम्मेदारियां तय हो चुकी हैं। लेकिन जहां तक उम्मीदवारों का सवाल है, बीजेपी के सभी मौजूदा एमएलए की टिकट अभी तय नहीं है। पार्टी हाईकमान की नजर एक-एक सीट पर है और इस सिलसिले में खबर यह भी मिल रही है कि पार्टी ने अपने सभी एमएलए से कह दिया है कि वे अपनी विनिंग पोजीशन बनाएँ।इसके लिए उन्हे समय भी दिया गया है। विनिंगग पोजीशन बनने पर ही उन्हे फिर से मौका मिल सकता है। सर्वे या रायशुमारी के जरिए बीजेपी एक-एक सीट पर जीत सकने वाले उम्मीदवारों के नाम तलाशने की तैयारी में है। ऐसे में मुमकिन है कि प्रदेश की कई सीटों पर नए चेहरों पर दाँव लगया जा सकता है। वैसे भी एंटी इंकंबेंसी के साथ बीजेपी इस मुद्दे को लेकर भी सचेत है कि लगातार तीन बार जीत के बाद लोग अब बदलाव को मुद्दा बना सकते हैं। इसी तरह विरोधी पार्टियां बीजेपी के 14 साल और 14 चेहरे के नारे को हवा दें, इससे पहले भाजपा खुद ही अपने चेहरे बदलने की रणनीति पर गंभीरता से विचार कर सकती है। ऐसे में इस बार का चुनावी नजारा बदला हुआ दिखाई दे तो हैरत की बात नहीं होगी।