देवता भी करते हैं कथा सागर में आचमन…विजय कौशल महाराज ने कहा….कभी नाराज नहीं होते भगवान

BHASKAR MISHRA
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  बिलासपुर— संभव नहीं है कि जीवन में भगवान के आचरण को उतार सकें। हम भगवान के आचरण से संदेश ले सकते हैं। श्रीराम के आदर्शों को आत्मसात कर सकते हैं…लेकिन उतार नहीं सकते। क्योंकि कथा हमारी नहीं मर्यादा भगवान पुरूषोत्तम राम की है। भगवान श्रीराम तो भक्तों के दास हैं। जिस रूप में याद किया गया उसी रूप में सामने आ गए। जहां भगवान की कथा होती है वह स्थान अपने आप तीर्थस्तल बन जाता है। देवता,गंधर्व भगवान की महिमा सुनने कथास्थल पर ही मौजूद होते हैं। संतो विद्वानों और मनीषियों ने कहा है कि जिसने भी भगवान की कथा को सुना उसका जीवन धन्य हो गया।  यह बातें विजय कौशल महाराज ने आज लालबहादुर शास्त्री मैदान में श्रीराम कथा के पहले दिन श्रद्दालुओं से कही।

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लालबहादुर शास्त्री मैदान में श्रीरामकथा कार्यक्रम के पहले दिन  संत विजय कौशल महाराज के मुखारबिन्द से निकले एक-एक शब्दों को श्रद्धालुओं ने दिल में बैठाया। श्रद्धालुओं को श्रीराम कथा सागर में उतारने से पहले विजय कौशल महाराज ने कथा के महत्व पर प्रकाश डाला। संत शिरोमणी ने कहा कि जहां कथा की गंगा बहती है वहां देवी देवता और गंधर्व आचमन करने आते हैं। अनंत कोटि ब्राम्हण्ड नायक की गाथा सुनते हैं।ऋषि मुनियों और विद्वानों ने कहा भी है कि यदि कहीं कथा सागर का प्रवाह मिले तो उसमें डुबकी जरूर लगाएं। क्योंकि सारे तीर्थ का फल एक साथ एक ही जगह मिल जाता है। श्रद्धालुओं को भगवान को पाने के लिए दर दर भटकने की जरूरत नहीं है। कथा श्रवण के बाद भगवान मन वचन और कर्म में बस जाते है।

   कथा प्रवाह के दौरान विजय कौशल ने बताया कि कथा सागर में डुबकी लगाने से मन वचन और कर्म शुद्ध होता है। आत्मा पुण्य हो जाती है। इसके बाद भगवान के पुत्रों को मंदिर देश दुनिया भटकने की जरूरत नहीं होती। पंडाल में मौजूद हजारों श्रद्धालुओं से विजय कौशल महाराज ने कहा कि दौर विज्ञान का है। लोग तर्क की भाषा समझते हैं। बताना चाहता हूं कि यदि किसी चीज को ग्रहण करने का रास्ता है तो निकलने का भी द्वार है। कान से सुनी बातें मुंह से बाहर आती है…आंख से देखी गयी चींजे दिल में बैठती है। इसान जैसा सुनेगा..वाणी भी वैसी होगी। जैसा देखेगा उसका चित्त भी वैसा रहेगा। जरूरी है कि अच्छा सुने और देखें।  हमारा आचरण भी कुछ वैसा ही बनेगा।

विज्ञान,अध्यात्म और जन जीवन को भाव के सूत्र में पिरोते हुए विजय महाराज ने कहा कुतर्कियों से बचें। कहने वाले कहेंगे…उनका काम ही लोगों को भटकाना है। यदि समझा ना सको तो …इतना जरूर कहें कि तुम्हे तुम्हारा तर्क मुबारक..हमें हमारा लक्ष्य। क्योंकि नासमझ बुद्धिमानों को समझाना मुश्किल है।

महाराज ने बताया कि जिसमें धैर्य होगा वही सुनेगा। जो सुनेगा वही गुनेगा..जो गुनेगा उसे ही दर्शन मिलेगा। भगवान का कोई रूप नहीं होता। भक्त  जिस रूप में चाहते हैं  उसी रूप में आ जाते हैं ।इस बात को हमसे ज्यादा अच्छा गांव के भाई बन्धु और माता बहनें जानती है। उन्होने उदाहरण पेश कर बताया कि भगवान माधव को संत के अनुसार ही बृन्दावन के अन्दर आकर दर्शन देने को मजबूर होना प़ड़ा है।

नरसी मेहता कथा जिक्र करते हुए विजय कौशल ने कहा कि भगवान ने जिसका हाथ थाम लिया…उनका साथ कभी नहीं छोडते । लोग भ्रम फैलाते हैं कि भगवान सजा देगा। अरे भाइयों माता पिता क्या कभी अपनी संतान को दुख देते हैं। हां रास्ते में लाने के लिए जतन जरूर करते हैं..जिसे हम परीक्षा या दुख कहते हैं। सच्चाई तो यह है कि भगवान अपने बच्चों को हमेशा सुख ही देते हैं। वह तो अपने बच्चों को सत्मार्ग पर देखना चाहते हैं।

विजय कौशल महाराज ने कथा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कथा श्रवण मनोविकार को दूर करने की सबसे बड़ी औषधि है। विज्ञान युग में सभी विकारों की औषधि का अविष्कार हुआ। लेकिन आज तक मन के विकार को दूर करने के लिए कोई दवाई नहीं बनी है। एकमात्र कथा श्रवण ही मनोविकार को  दूर होता है।

हजारों की संख्या में मौजूद श्रद्धालुओं के बीच यजमान नगरीय निकाय मंत्री अमर अग्रवाल,बेनी गुप्ता समेत शहर के सैकड़ों गणमान्य नागरिकों ने श्रीराम कथा का पूरे समय तक आनंद उठाया। अंत में आरती कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

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