शिक्षाकर्मी नेता मनोज सनाड्य ने उठाई मांग:पहले नेटवर्क-बिजली का पक्का इंतजाम हो फिर कासमास का इस्तेमाल हो

Chief Editor

रायपुर।छत्तीसगढ़ पंचायत /नगरीय निकाय शिक्षक संघ के प्रदेश सचिव मनोज सनाड्य ने कहा है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति को लेकर कासमास के प्रयोग पर विचार करने की जरूरत है। पहले नेटवर्क -बिजली जैसी सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित होना चाहिए। इसके बिना लगता है कि शिक्षक वर्ग को कमजोर करने के लिए इसका प्रयोग किया जा रहा है।मनोज शांडिल्य ने कहा कि हम सभी शिक्षकों का यह पुनीत कर्तव्य है कि हम समय पर विद्यालय जाए और अपने निर्धारित कालखंड में विषय का अध्यापन कराएं अभी कुछ दिनों से एक कॉसमॉस टेबलेट के माध्यम से उपस्थिति दर्ज कराने की बात कही जा रही है।मैं मूलतः व्यक्तिगत रूप से मैं उसका विरोध ही नहीं हूं।किंतु जिस ढंग से उसे प्रदेश में लागू किया जा रहा है।जिससे शिक्षक समुदाय को कमजोर प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है।यह उचित नहीं है।जबकि शिक्षक समुदाय ग्रामीण क्षेत्रों में बीहड़ क्षेत्रों में जहां कभी स्कूल थे लेकिन ताले नहीं खुलते थे।वहां भी हमारे शिक्षक पंचायत नगरीय निकाय संवर्ग के साथी विद्यालय में अध्यापन करा रहे हैं।बेहतर परिणाम भी देने का प्रयास कर रहे हैं।शासकीय शालाओं की स्थितियां सुधर भी रही है।किंतु सिर्फ शिक्षकों की उपस्थिति दो बार के थंब इंप्रेशन के द्वारा और बाकी अन्य कर्मचारियों का यथा लिपिक और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को मुक्त रखना कहां तक उचित होगा।

             
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कुछ विद्यालयों में जहां लिपिक नहीं है।चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं है।वहां शिक्षक साथियों को कार्यालयीन काम से जाना पड़ता है।उस परिस्थिति में यह थंब इंप्रेशन कहां तक बताएगा कि कोई कर्मचारी कहां था क्या कर रहा है।वही निश्चित तौर पर जहां पर नेटवर्क नहीं रहेगा यहां लाइट नहीं रहती।नेटवर्क भी नहीं रहता…ऐसी परिस्थिति में निश्चित तौर पर समस्याएं बढ़ेगी और शिक्षक समय पर उपस्थित हो ही जाते हैं।पर अपना थंब इंप्रेशन लगाएंगे कैसे और नेटवर्क की बाधा के कारण वह सही समय नहीं बता पाएगा।ऐसी स्थिति में पूरा शिक्षक वर्ग के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगेगा शिक्षक वर्ग को बदनाम करने की प्रयास तो कहीं नहीं चल रहा है।विद्यालयों के निजीकरण के लिए एक रास्ता तो नहीं है?हम टेक्नोलॉजी का स्वागत करते हैं।शिक्षा में तकनीकी का होना आवश्यक है।ज्ञान के विस्फोट का युग है।लेकिन शिक्षकों को बदनाम करते हुए ना किया जाए…अपितु वहॉ भौतिक संसाधन और वह सुविधाएं संबंधित विद्यालयों में पहले मिले और तब कहीं उसका लाभ हो सके।




सभी विद्यालयों में पहले विद्युतीकरण हो जब विद्युत हो तो टेक्नोलॉजी का प्रयोग करना है तो LCD प्रोजेक्टर का प्रयोग होना चाहिए जो कि हायर सेकंडरी विद्यालय में अभी भी LCD प्रोजेक्टर नहीं है कमरे में दरवाजे ऐसे हैं जहां रोज कंप्यूटर और अन्य सामग्री प्रदेश भर में चोरी हो रही है…चौकीदार नहीं है विद्यालय में अहाता नहीं है…बेजा कब्जा होने से अलग परेशानी शिक्षक ऐसी बाते किससे करे…विद्यालय में और तो और शिक्षकों को समय पर वेतन तो मिलता ही नहीं खासतौर से शिक्षक पंचायत नगरी निकाय संवर्ग के शिक्षकों को एरियर का भुगतान नहीं होता जो मूलभूत चीजें हैं।जो शिक्षक भूखा रहेगा तो कासमस आसमान की सैर कराएगा।हमें इसलिए पहले मूलभूत चीजों को मजबूत करें।और उसके बाद तकनीकी का उपयोग करें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन बिना वेतन दिए। खाली तकनीकी की बात करना शायद ईमानदारी पूर्वक प्रयास नहीं कह पाऊंगा।

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