निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने की मांग…आईबोक महासचिव ने कहा…विकास के लिए लेने होंगे कड़े निर्णय

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—-देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती में राष्ट्रीय बैंकों की भूमिका अहम् है। बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का भी उद्देश्य भी यही रहा है। विकास की धाराा अंंतिम आदमी तक पहुंचे। इसलिए जरूरी है कि सरकार निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण की दिशा में बढ़े। यहा बातें आल इंडिया बैंक आफिसर्स कन्फरडरेशन की बैठक के दौरान सामने आयी।

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                              आईबोक यानि आल इंडिया बैंक आफिसर्स कन्फरडरेशन के महासचिव डीटी फ्रेंको ने कहा कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने 1969 में 14 बैंकों के राष्ट्रीयकरण कर क्रांतिकारी कदम उठाया। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पीछे का उद्देश्य मात्र इतना था कि देश कि अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाया जाए।  देश के अंतिम आदमी तक विकास की धारा को बैंक पहुंचे। तत्कालीन प्राईवेट बैंकों से उपेक्षित कृषि, पशुपालन, दस्तकार, कुटीर और लघु उद्योग के समग्र विकास को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने 1980 में एक बार फिर 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों पर राष्ट्रीयकॄत बैंकों उपेक्षित क्षेत्रो के विकास में राष्ट्रीयकृत बैंकों ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया। जिसके चलते देश में नये नये रोजगार के अवसर पैदा हुए।

                  आईबोक महासचिव टीटो फ्रैंक ने कहा कि दुर्भाग्यवश 1991 में विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेने के लिए भारत सरकार ने पॉलिसियों में बदलाव किया। पालिसी के चलते निजी बैंकों को बढ़ावा मिला। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में शेयर होल्डिंग कम हुई। दुष्परिणाम यह निकला कि लघु ऋण कम हो गये है। छोटे और सीमांत कृषकों को यदा कदा ही पर्याय ऋण उपलब्ध हुए।

                        टीटो ने बताया कि पालिसी में परिवर्तन के कारण रसूखदारों को देश के कुल ऋण का काफी बड़ा हिस्सा आसानी से हासिल हो जाता है। जो सुरसा के मुँह की तरह बढ़ते एनपीए के रूप में बैंकों की कमरतोड़ देते हैं। प्रतिवर्ष बैंकों को करोड़ों रुपये विशेष कर लार्ज कार्पोरेट के ऋण राइट ऑफ करने पड़ते है। जैसा कि संसद में बताया गया कि पिछले तीन वषों में बैंकों ने कुल 2,41,000 करोड़ रुपये बट्टा खाते में डाले है।

                            सरकार के लाड़ले कई निजी बैंक अभी संकट के दौर से गुजर रहे है। आईसीआईसीआई और एक्सिस बैंक तो मात्र दो एक उदाहरण हैं। उचित समय हैं कि केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक निजी बैंकों में हस्तक्षेप करे। प्राईवेट बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर देश के विकास को गति दे। सरकार बैंकिग क्षेत्रों के सहयोग से देश की अर्थव्यवस्था के संपूर्ण विकास में रोजगार के नए अवसर पैदा कर सके।

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