मोहदा कोल डीपो में अफरा तफरी का खेल..नाक के नीचे शर्तो की खुलेआम उड़ रही धज्जियां…क्या पुलिस कार्रवाई होगी…?

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— लोगों को अभी तक नहीं समझ में नहीं आया है कि आखिर पुलिस प्रशासन ने कोल डिपो पर छापा क्यों मारा। क्योंकि सब कुछ तो पहले की ही तरह है। कोल डीपो को जब खोलना था…तो बंद क्यों किया। और जब बंद करना है तो खोला  क्यों गया। छापामार कार्रवाई जिन कारणों को लेकर की गयी। वह समस्या आज भी जीवित है। चोरी का कोयला आज भी लायसेंसधारी अवैध डीपो में धड़ल्ले बेचा जा रहा है। जनता समझना चाहती है कि छापामार कार्रवाई का राज क्या है।

                       सवन्नी राईस मिल और शाकम्भरी पेट्रोल पंप से लगे कोल डिपो भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। जनता बेशक परेशान हो..लेकिन छापामार करार्रवाई करने वाली पुलिस को इसकी चिंता भी नहीं है। कोयले के डस्ट ने लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। कोई सोचे की दिन का काम है रात्रि को सुकुन मिलेगा। तो यह केवल भ्रम है। कोयला चोरों ने मोहदावासियों का जीना मुश्किल कर दिया है। दिन में कोयले की मिलावट और रात में ट्रक से कोयले की चोरी धड़ल्ले से हो रही है। सब कुछ थाने से चंद कदम दूर…पुलिस के नाक के नीचे।

                                             पुलिस कार्रवाई के पहले कोयला माफिया मर्जी के मालिक थे..कार्रवाई के बाद भी मर्जी के मालिक हैं। छपामार कार्रवाई के बाद तो जैसे कोयला माफियों में पुलिस का डर ही खत्म हो गया है। खुलेआम और सीना ठोककर संचालकों ने अवैध कारोबार को अंजाम देना शुरू कर दिया है। मजाल है कि पुलिस को अब कुछ दिखाई दे।

शर्तो की ऐसी तैसी

                         मोहदा स्थित सवन्नी राइस मिल और शाकम्भरी पेट्रोल पम्प से लगे कोल डीपो में सारे नियमों और शर्तो की ऐसी तैसी हो रही है। मजाल है कि किसी जिम्मेदार अधिकारी और पुलिस को नियमों की ऐसी तैसी होते दिखाई दे जाए। लोग परेशान हों तो हो…।  पुलिस प्रशासन को जब लगेगा कार्रवाई होगी। क्योंकि पुलिस  को भी अपनी समस्या से फुरसत नहीं है।

                      मोहदा स्थित पेट्रोल पम्प से लगा कोयला डीपो फिल्मकार शांताराम की खुली जेल की परिकल्पना को याद दिलाता है। शर्तों के अनुसार कोल डीपो क्षेत्र में बाउन्ड्रीवाल भी नहीं है..ऐसे में गेट का होना कोई मायने नहीं रखता है।  लायसेंस देते समय इन बातों  का विशेष ख्याल रखा जाता है। बहरहाल प्रशान को इसकी चिंता भी नहीं है। क्योंकि कोल माफिया समय पर चिंता को दूर कर देते हैं।अब तो  प्रश्न उठने लगा है कि पुलिस ने कोल डीपो छापामार कार्रवई ही क्यों की। खासतौर पर मोहदा स्थित पेट्रोल पम्प में..जहां शर्तों का पालन किया ही नहीं जा रहा है।

पल्यूशन क्लीयर नहीं

                        शहर प्रचन्ड गर्मी और प्रदूषण से जूझ रहा है। कोल माफियों को मालूम है कि ऐसी सूरत में पर्यावरण क्लीयरेन्स नामुमकिन है। मोहदा स्थित पेट्रोल पम्प के पास संचालित कोल डिपो बिना पल्यूशन क्लीयरेन्स से चल रहा है। जानकारी अधिकारियों को भी है और पुलिस को भी। बावजूद इसके पुलिस प्रशासन को जानकारी होने के बाद भी शाकम्भरी पेट्रोल पम्प और सवन्नी राइस मिल के पीछे नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए रसूख के दम पर बिना पर्यावरण क्लीयरेन्स के चल रहा है। कार्रवाई नहीं होने की शायद मुख्य वजह नुकसान पर्यावरण को रहा है किसी अधिकारी या पुलिस को नहीं..।

वन विभाग की जमीन पर अवैध कब्जा

                 कोल डीपो का लायसेस लेते समय पर्यावरण क्लियरेंस और जमीन का होना जरूरी है। कोयला ट्रान्सपोर्ट के लिए रास्ता भी जरूरी होता है। लेकिन मोहदा स्थित कोल डीपो संचालकों ने ना केवल  बाउन्ड्रीवाल और पर्यावरण क्लीयरेन्स में  अनदेखी की है। कोयला ट्रान्सपोर्ट के लिए बिना पूछे वन विभाग की जमीन को भी हथिया लिया है।  छोटे मोटे झाड़ को काटकर पक्का सड़क बना लिया है। मजेदार बात है कि यहां भी शासन को अंधेरे में रखा गया। कल यदि जमीन पर डीपो संचालक अपना बताए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

तीन महीने से आक्शन नहीं…फिर कहां से आया कोयला

                         पिछले तीन महीने से कोयले की नीलामी नहीं हुई है। तीन महीने बाद 23 अप्रैल 2018 को कोयले का आक्सन हुआ। आक्शन का कोयला कम से कम 5 मई तक डीपो में पहुंचेगा। पुलिस को भी इसकी जानकारी  है। प्रश्न उठता है कि जब आक्शन हुआ नहीं..तो कोल डीपो में कोयला आया कहां से। मतलब साफ है कि कोयला चोरी का है। लेकिन दुरभि संधि के कारण पुलिस प्रशासन डीपो में हाथ नहीं डालता है। मतलब चोरी का कोयला धड़ल्ले से दिन रात खरीदा और बेचा जा रहा है।

भोग लगाए बाबा जी

                  सवन्नी राइस मिल और पेट्रोल पम्प के पास ओपेन जेल की तरह संचालति कोल डीपो की जमीन किसी और की है। बाउन्ड्रीवाल नहीं होने से गेट होने का सवाल ही नहीं उठता है। लायसेंस किसी दूसरे के नाम पर है। संचालक मतलब कोयला डीपो चलाने वालो की संख्या दो है। पर्यावरण से क्लीयरेंस नहीं है। वन विभाग की जमीन पर बिना अनुमति पक्की सड़क बनायी गयी। दिन रात कोयले की जमकर अपरा तफरी हो रही है। जनता को मुफ्त में प्रदूषण का उपहार और बाबा जी को भोग मिल रहा है।

                                   प्रश्न उठता है कि क्या पुलिस कप्तान मोहदा स्थित कोल डीपो के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। क्योंकि लोगों को कार्रवाई का बेसब्री से इंतजार है। इस बात की भी चिंता है कि कही रसूखदार कोयला व्यवसायी को पुलिस का वाक ओव्हर मिल जाएगा।

 

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