(राजेश अग्रवाल)यह सीधे-सीधे मानव तस्करी का मामला है। मीडिया के कुछ हिस्सों की शर्मनाक कवरेज और तमाम दलों के नेताओं, विशेषकर आदिवासी नेताओं की चुप्पी की वजह से यह पोस्ट लिखनी पड़ रही है।मानव तस्करी से बस्तर और सरगुजा के आदिवासी इलाके बरसों से पीड़ित हैं। जशपुर के मामलों में तो मैंने काफी काम किया। यह मुद्दा वहां यदि राज्य, प्रशासन और पुलिस ने बीते कुछ सालों से गंभीर माना है तो एृक वजह मेरी रिपोर्टिंग भी थी, जो पिछले दशक में मैंने की। अब यह देश की ज्वलंत समस्या बन चुकी है।केवल लड़कियों का शोषण नहीं, लड़कों का भी है। लड़के दक्षिण भारत में बोर करने वाली ट्रकों में दबकर मरते हैं। लड़कियां गोवा, महाराष्ट्र, दिल्ली, नोएडा और देशभर में भेजी जाती हैं। वहां से गर्भवती होने के बाद दलाल घर वापस पटक कर चले जाते हैं। मगर, छत्तीसगढ़ की लड़की-छत्तीसगढ़ में ही शोषित? शर्मनाक…!!
मामला बेहद गंभीर तब हो जाता है जब कानून के रखवाले ऐसे काम में लिप्त हों। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में एक पुलिस विभाग के सहायक निरीक्षक शैलेन्द्र सिंह और उसकी प्रोफेसर पत्नी से चाइल्ड लाइन, महिला बाल विकास विभाग और सखी सेंटर ने दो दिन पहले बस्तर, बीजापुर की बंधक बनाई गई युवती को छुड़ाया है। पुलिस दल-बल के साथ गई तो वहां एक कमरे में नवयुवती, उम्र 18 साल- को कैद करके रखा गया था। रिपोर्ट कहती है कि इस पुलिस वाले ने बीजापुर में नौकरी के बाद बिलासपुर तबादला होने के साथ इसे अपने साथ लेकर आ गया। गरीब माता-पिता को भरोसा दिलाया कि उसे पढ़ाएंगे, तनख्वाह देंगे, परिवार के सदस्य की तरह घर रखेंगे।
यातना से त्रस्त युवती बार-बार घर जाने की गुहार लगा रही थी। तब उसे मारा-पीटा गया और घर से मत निकले इसलिए एक कमरे में बंद करके रखा गया। दो साल से यह सिलसिला चल रहा था। भला हो हेमलता का। वह नई-नई काम पर लगी, कुछ अतिरिक्त काम के लिए, जैसा हमारे-आपके यहां कामवालियां आती हैं, बीते 28 अप्रैल को। शैलेन्द्र सिंह के अभिलाषा परिसर, रायपुर रोड स्थित बंगले में। उसने लड़की को देखा, जगह-जगह शरीर पर चोट के निशान। घबराई, गुमसुम, सिसकती हुई। बच्चे घर पर, शैलेन्द्र सिंह और उसकी पत्नी ड्यूटी पर बाहर। पूरा किस्सा पता चला। हेमलता ने बाहर आकर उन घरों में बताया जहां वह घरेलू काम करती है। चाइल्ड लाइन-महिला बाल विकास विभाग-सखी-सेंटर, सिरगिट्टी पुलिस।
कैद से छुड़ा दी गई लड़की। बेशक, नए पदस्थ डीएसपी प्रतीक द्विवेदी ने सराहनीय काम किया। दरवाजा तोड़ देने की धमकी देने के बाद उस कमरे की चाबी दी गई जहां युवती कैद थी। कल सुबह तक का अपडेट यह था कि युवती का बयान दर्ज होगा, तब इस आरोपी पुलिस वाले और उसकी पत्नी पर अपराध दर्ज होगा। शाम तक पता चला कि कुछ धाराओं में एफआईआर दर्ज कर ली गई।पहला सवाल प्रिंट मीडिया पर। यह सही है कि किस ख़बर को कितनी तरजीह दें यह सम्पादक के विवेक पर निर्भर करता है। पता चला कि ये आरोपी दिनभर मीडिया को अपने पक्ष में लेने के लिए कवायद करते रहे। एक अख़बार ने आरोपी का बयान इतने विस्तार से छापा है मानो रिपोर्टर को सच मालूम नहीं और आरोपी साधु-संत है। एक और बड़े, सर्वाधिक बड़े- कहे जाने वाले अख़बार ने भीतर के पन्ने पर कई तथ्यों को दबाकर इतनी छोटी जगह दी है कि पढ़ने पर लगता है कि ख़बर नहीं भी छापते तो क्या बुरा था?
क्या मजाक है, पुलिस जिस आरोपी को घर से गायब बता रही है, उसकी सफाई अख़बार में छप रही है। सखी सेंटर और हेमलता पर आरोप लगाया जा रहा है कि पूनम को बरगलाया जा रहा है।
दूसरा सवाल नेतागिरी और समाजसेवा का दंभ भरने वालों पर। लड़की धुर पिछड़े और नक्सल प्रभावित आदिवासी इलाके बीजापुर के किसी गांव से है। कांग्रेस-भाजपा के आदिवासी नेताओं को क्या हो गया? एक शब्द अब तक उनके मुंह से क्यों नहीं फूटे? जिस पुलिस का काम मानव-तस्करी को रोकना है, वही इस कृत्य में लिप्त पाया गया, क्या यह साधारण सी बात है? शहर में बात-बात पर धरना-प्रदर्शन कर नारी मुक्ति आंदोलन चलाने वाली माताओं-बहनों से भी यही सवाल है कि क्या इस घटना ने भीतर तक आपको हिलाया नहीं?