( गिरिजेय ) अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राहुल गाँधी छत्तीसगढ़ के दौरे पर आ रहे हैं। इस साल होने वाले विधानसाभा चुनाव की तैयारियों के लिहाज से उनका यह दौरा अहम् माना जा रहा है। उनके कार्यक्रम में यह बात खास नजर आती है कि राहुल गाँधी संगठन की मजबूती के लिए आ रहे हैं …..। और उसमें भी खास यह है कि वे केवल आमसभा को संबोधित करने नहीं आ रहे हैं…… वे केवल बड़े नेताओँ से मुलाकात करके वापस लौटने के लिए नहीं आ रहे हैं….। बल्कि बूथ लेबल के जमीनी कार्यकर्ताओँ से मिलकर उनसे सीधी बात….. सीधा संवाद करने आ रहे हैं। जिससे एक तो जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओँ को यह पता लगेगा कि उनकी पार्टी के सबसे बड़े नेता उनसे किस तरह के काम की उम्मीद रखते हैं । बल्कि राहुल गाँधी को भी पताा लग सकेगा कि उनके पार्टी की जमीनी हकीकत क्या है …… और एक सामान्य कार्यकर्ता क्या सोच रहा है। लम्बे समय के बाद कांग्रेस की यह कवायद पार्टी के लिए बेहतर साबित हो सकती है…..।
राहुल गाँधी के छत्तीसगढ़ दौरे के मद्देनजर जिन बातों पर फोकस किया जा रहा है , उनमें सबसे अहम यही है कि इस साल छत्तीसगढ़ में विधानसाभा के चुनाव होने जा रहे हैं। स्वाभाविक रूप से कांग्रेस भी इसे लेकर गंभीर है और अपनी रणनीति के हिसाब से तैयारी कर रही है। पिछले करीब एक साल से कांग्रेस की ओर से इस तरह की पहल शुरू की गई है कि उसका जमीनी कार्यकर्ता भी सक्रिय और सजग रहे। इसके लिए बूथ स्तर पर टीम बनाई गई है। जिसमें महिला, बुजुर्ग , युवा – छात्र के साथ ही सभी जाति-वर्ग के लोगों को शामिल किया गया है। इसके ऊपकर निगरानी के लिए जोन और सेक्टर कमेटियां बनाई गईं हैं। करीब-करीब सभी जगह सिलसिलेवार सभी स्तर पर कमेटियों को ट्रेनिंग भी दी गई है। हाल ही में कुछ दिनों से चल रहे संकल्प शिविरों के जरिए भी कार्यकर्ताओँ को रिचार्ज किया जा रहा है।
पिछ चुनावों से इस बार यह फर्क भी दिखाई दे रहा है कि कांग्रेस के प्रभारी पी.एल.पुनिया , चंदन यादव और अरुण उरांव यहां से लगातार संपर्क में हैं। उनका नियमित रूप से दौरा हो रहा है और वे लगातार कार्यक्रम कर रहे हैं। जिससे पूरी पार्टी सक्रिय नजर आने लगी है। इसी तरह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. चरण दास महंत से लेकर सत्यनारायण शर्मा, रविन्द्र चौबे,मोहम्मद अकबर ,रामदयाल उइके, धनेन्द्र साहू, कवासी लखमा तक हर स्तर के नेता लगातार पहुंच रहे हैं।
राजनीतिक समीक्षक भी मानते हैं कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस का पुराना गढ़ रहा है। इस इलाके ने 1977 जैसे वक्त में भी कांग्रेस का साथ दिया था। इस इलाके से कांग्रेस के कई बड़े नेता हुए । इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़े तबके के बीच से भी कई नेता उभरकर आए। जिन्होने अविभाजित मध्यप्रदेश और देश की राजनीति में अपनी अहम् भूमिका निभाई थी । यहां करीब हर एक तबके के लोग कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। लेकिन समय के साथ दूरियां बढ़ गईं थी। फिर भी पिछले चुनावों में कांग्रेस टक्कर देती रही है और कांग्रेस – बीजेपी के बीच वोट का अँतर काफी कम ही रहा है।
अब नए सिरे से बूथ स्तर से तैयारी शुरू की गई है अगर बूथ-जोन- सेक्टर की टीम पूरी ईमानदारी से काम कर ले तो कांग्रेस फिर से बेहतर पोजीशन में आ सकती है। इस बार एक फर्क और भी नजर आ रहा है कि पिछले चुनावों में कांग्रेस की गतिविधियां केवर राजधानी तक ही सीमित दिखाई देती थीं । और जिस तरह प्रदेश में सरकार चला रही बीजेपी एक शहर को ही पूरा छत्तीसगढ़ मानती रही है, उसी तरह कांग्रेस भी केवल राजधानी तक सीमित रही । लेकिन भूपेश बघेल के कमान संभालने के बाद से हालात कुछ हत तक बदले हैं और पार्टी ने अपने नक्शे में फिर से छत्तीसगढ़ के दूसरे इलाकों को भी शामिल कर लिया है।
कांग्रेस के काम-काज के तौर-तरीके में इसी फर्क को देखने के लिहाज से राहुल का दौरा अहम् माना जा रहा है। कार्यक्रम के मुताबिक राहुल गाँधी बिलासपुर और दुर्ग में बूथ स्तर के जिम्मेदार लोगों से सीधी बात करने वाले हैं। व्यवस्था इस तरह से बनाई गई है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी भी बूथ-जोन या सेक्टर के प्रभारी या कार्यकर्ता से कुछ भी जानकारी ले सकते हैं। इसके लिए उन्हे तैयार रहना होगा। इससे राहुल को फीडबैक मिल सकेगा कि छत्तीसगढ़ में वास्तविक में कितना काम हो रहा है।
उ जमीनी हकीकत का भी अहसास हो सकेगा। अभी चुनाव में थोड़ा वक्त है। लिहाजा इस संवाद कोे दौरान पेश आने वाली खामियों को दूर करने के लिए भी समय मिल सकेगा। इस मौके पर राहुल गाँधी अपनी बात तो कार्यकर्ताओँ के सामने रखेंगे ही । इस तरह दो-तरफा संवाद कांग्रेस के लिए एक अच्छा प्रयोग हो सकता है। पिछले कुछ चुनावों से यह बात देखी जा रही है कि खासकर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी बीजेपी सरकार के खिलाफ असंतोष को अपने पक्ष में कर पाने में कामयाब नहीं हो सकी । इसकी बड़ी वजह यह भी रही कि पार्टी में बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओँ की सक्रियता नजर नहीं आती थी। कांग्रेस के लोग अपने समर्थकों के वोट कराने में सक्रिय नहीं हो पाते थे। यह कमी कांग्रेस की इस कवायद से पूरी हो सकती है।
लेकिन पिछले चुनावों में हार की कुछ और भी वजह रही है। जिसमें एकजुटता की कमी और खेमेबाजी भी प्रमुख रही है। अब एक तरह से नई टीम कांग्रेस की कमान संभाल रही है। अजीत जोगी के बाहर होने के बाद से पार्टी के अँदर का माहौल भी बदला है। लेकिन बरसों से भीतर तक घुसी खेमेबाजी की बीमारी को दूर करने और मतदाताओँ में कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओँ के प्रति भरोसा मजबूत करने के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है।राजनैतिक पंडित भी मानते हैं कि कांग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता एकजुट है और बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेंकने की तैयारी में है।
लेकिन खेमेबाजी की वजह से छत्तीसगढ़ के मतदाताओँ में यह मैसेज लगातार जाता रहा है कि कांग्रेस बंटी हुई है और एकजुट नहीं है। लोगों के सामने कांग्रेस की इस छवि को दूर करने के लिए भी बदलाव का संदेश जरूरी है। यही संदेश कांग्रेस को छत्तीसगढ़ की सत्ता में बदलाव की ताकत दे सकता है। अगर जमीनी कार्यकर्ताओँ से संवाद के साथ राहुल गाँधी आम लोगों के बीच अपनी रैली में यह संदेश देने में कामयाब रहे तो चुनाव से पहले उनका यह दौरा कांग्रेस के लिए यकीनन फायदेमंद हो सकता है।