मध्यप्रदेश के अध्यापकों का संविलियन त्यौहार,आर्डर हाथ में आए बिना अभी अधूरी है खुशी..क्यों हैं शंकाएँ बरकरार ?

Chief Editor
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भोपाल । अविभाजित मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार ने  12 जुलाई 1994 को कैबिनेट की बैठक के निर्णय से मध्यप्रदेश के व्याख्याता, शिक्षक, सहायक शिक्षक के पद मृत घोषित हुए थे। सालों बाद मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह की सरकार की 29 मई 2018 की कैबिनेट का  निर्णय व्याख्याता, शिक्षक, सहायक शिक्षक के मृत पद पुनर्जीवित हुए। पंचायत विभाग के अस्थाई शिक्षक अब नियमित होंगे। मध्य प्रदेश का यह निर्णय जितना महत्वपूर्ण मध्य प्रदेश के संविदा शिक्षकों के लिए है उतना ही  महत्वपूर्ण छत्तीसगढ़ के  शिक्षाकर्मियों के लिए भी है। दोनों राज्यों में संविलियन के लिए आंदोलन सालो से जारी है। पर पहली सफलता मध्यप्रदेश के खाते में गई।जहां एक और मध्य प्रदेश में हुए संविलियन का स्वागत हो रहा है।आंदोलन से जुड़े सभी आज त्योहार मना रहे है।वही इस संविलियन पर शंका भी शुरू हो गई है ।
अध्यापक संघर्ष समिति के संचालक सदस्य हीरानंद नरवरिया ने बताया कि …. जब तक आर्डर हाथ मे नही आ जाते हैं। तब तक कुछ भी कह पाना बेमानी हो जाएगा पर  23 वर्ष बाद यदि कोई पद जीवित हो रहे हैं तो हम बहुत उतसाहित है। एक विभाग मृत होने की कगार पर था जिसको हमने बड़े ही कड़े संघर्ष से जीत में बदल पाएं हैं। हमने ब्लॉक स्तर से लेकर दिल्ली तक आंदोलन किये पर कुछ मलाल अभी बाकि है । कर्मचारियों को जनवरी 06 से 6th मिला दिया है और सातवाँ जनवरी 16 से , हमको समान कार्य समान वेतन सितम्बर 13 से किश्तों में मिला।
उन्हों बताया कि  मुख्यमंत्री ने मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल से 6 वे वेतन की घोषणा इसलिए कि थी कि जनवरी 16 से सातवाँ वेतनमान मिल सके । अब हमे जुलाई 18 से दिया जा रहा है।
हीरानन्द ने बताया कि मिल रही जानकारी के अनुसार सरकार अध्यापको का नाम बदल रही है। ऐसा सुनाई दे रहा है कि अब  प्राथमिक शिक्षक, माध्यमिक शिक्षक, उच्चतर माध्यमिक शिक्षक, हो सकते है। मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि  सहायक शिक्षक, शिक्षक और ब्याख्याता नाम अध्यापकों को दिए जाएँगे।इस लिए थोड़ा सरकार के निर्णय पर संशय लग रहा है।
मध्यप्रदेश अध्यापक संघर्ष समिति प्रान्तीय संचालन समिति सदस्य रमेश पाटिल ने बताया कि लम्बे संघर्ष के बाद अध्यापक अब कहलायेगा शासकीय कर्मचारी कहा जायेगा। आज के फैसले से शिक्षा विभाग मे संविलियन की मूल समस्या का अंत हुआ।मध्यप्रदेश कैबिनेट के फैसले का अध्यापक संघर्ष समिति मध्यप्रदेश आंशिक स्वागत करती है। सरकार की आर्थिक मामले मे कंजूसी से थोड़ी निराशा हुई है। सातवा वेतनमान जुलाई 2018 से दिया जायेगा।अध्यापको की मांग जनवरी 2016 से थी।
 उन्होंने बताया कि सातवा वेतनमान से 31 माह दूर कर दिया गया जो अध्यापको के लिए बहुत बडी आर्थिक क्षति है।पदनाम और वरिष्ठता पर सरकार की ओर से स्पष्ट वक्तव्य नही आया है।अध्यापको के लिए शिक्षाकर्मी, संविदा शाला शिक्षक,गुरूजी नियुक्ति दिनांक से वरिष्ठता का बहुत ज्यादा महत्व है।आदेश के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पायेगी।अध्यापको को केवल संविलियन से संतुष्ठ नही किया जा सकता है।नियुक्ति दिनांक से वरिष्ठता नही दी गई तो संविलियन का कोई औचित्य नही रह जायेगा ।अपनी वरिष्ठता और आर्थिक लाभ को प्राप्त करने के लिए अध्यापक संघ/समिति बहुत जल्दी लामबंद हो जायेगे।जिस लाभ के प्राप्ति की सरकार  अध्यापको से उम्मीद लगाये हुए है वह नियुक्ति दिनांक से वरिष्ठता दिये बिना संभव ही नही।
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