जंगल में लूटतंत्र (साहित्य)

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जामवंत ने बताया राजन्, संपूर्ण नंदन वन की बौद्धिकता पर इन्होंने कब्जा कर रखा है, कोई इनकी सहमति के बिना आगे नहीं बढ़ पाता है। सुनकर सिंह ने कहा चलिए इनका चमत्कार देखते हैं।

सिंह और जामवंत उद्यान में डेरा जमाए बहुत से दलों में से एक के निकट पहुंचे। यहां चील, बगुले व कौवे अपनी कविताएं, कहानियां व लेख प्रस्तुत कर रहे थे। राजा ने देखा रचनाओं की प्रस्तुति के दौरान दल के दूसरे सदस्य बिना सुने ही वाह वाह, बहुत खूब, बहुत खूब कहते जाते हैं।

राजा शोर से दूर हटकर साहित्य रस लेने का प्रयास करने लगा, सबसे पहले एक वरिष्ठ बुद्धिजीवी कौवा आया, उसने अपना लेख पढ़ना आरंभ किया। कौवे ने दानवीरता पर सुंदर भाषण दिया, फिर नंदन वन में बढ़ती कृपणता पर चिंता जाहिर करते हुए इसके दुष्परिणामों की चर्चा की। उसके बाद उसने एक बड़े उद्योगपति मि. dz भेड़िए की दानवीरता का उदाहरण दिया।

कौवे ने बताया करोड़पति होने के बावजूद वह अस्पतालों में मरीजों को केले, वृद्धाश्रमों में वृद्धों को बिस्किट बांटता है। वह गरीब वन्यप्राणियों के बच्चों को आए दिन पिपरमेंट भी खिलाता रहता है, कभी कभी उन्हें घर के पुराने कंबल भी दे देता है। भेड़िए की दानवीरता की तुलना राजा बली से करते हुए कौवे ने उसका प्रचार करने का आह्वान किया, ताकि दूसरे वन्यप्राणी उससे सीख ले सकें।

जामवंत ने राजा को कान में बताया कि प्रशंसा का पात्र वह भेड़िया अत्यंत लुच्चा है, नकली दवा बनाकर बेचते हुए पकड़ा गया था….

कौवे के बाद एक वरिष्ठ बगुले ने कहानी प्रस्तुत की, बहुत ध्यान से सुनने के बाद भी राजा उसका आशय नहीं समझ सका। अंत में दल के सरगना महाकवि वनानंद चील की बारी आई। उसने विचित्र मुखमुद्रा बनाते हुए एक नवयौवना के प्रेम और विरह की कविता प्रस्तुत की, इस बार भी अथक प्रयास के बावजूद राजा नहीं समझ सका कि कवि कहना क्या चाहता है।

झल्लाकर राजा सरगना के पास पहुंचा, अपना परिचय देकर उसने कविता का अर्थ जानना चाहा, चील ने राजा को मीठे शब्दों में उक्त कविता का अर्थ बताना आरंभ किया। राजा के चेहरे की झुंझलाहट देख उसने अनेक अनोखे दृष्टांत भी दिए, राजा को फिर भी कुछ समझ में नहीं आया।

आधे घंटे की बौद्धिक पहलवानी के बाद रहस्य से थोड़ा पर्दा उठा, राजा सिर्फ इतना समझ सका कि यह कविता किसी धनवान प्रेमी प्रेमिका से संबंधित है, इसमें उनकी उच्छश्रृंखलता का गुणगान किया गया है, इसे कर्णप्रिय शब्दों की चासनी में डुबाकर प्रस्तुत किया गया है, ताकि मर्यादा का उल्लंघन न हो।

थोड़ा सा आधुनिक साहित्य समझ में आते ही राजा ने चील को कुछ सलाह देने का विचार किया। उसने कहा- हे बुद्धिमानों में श्रेष्ठ महाकवि चील सुनो, निम्नस्तरीय रचनाओं से रचनाकार के अहंकार की तृप्ति भले हो जाए, उन रचनाओं से व्यथित प्राणियों को शांति नहीं मिलती है।

वही कवि व लेखक महान् होता है, जिसकी रचनाओं से मन को शांति और समाज को दिशा मिलती है। अतः आप सभी पागलपन और पाखंड छोड़ कुछ भले साहित्य की रचना कीजिए, भोलेभाले वन्यप्राणियों को भटकाना छोड़ उन्हें दिशा दीजिए।

इतना सुनते ही चील भड़क गया, उसने अन्य चीलों, बगुलों को बुला लिया। उसने उन्हें बताया कि ये राजा हम महान् साहित्यकारों को पागल करार दे रहा है, सुनते ही चीलों ने चीख चीखकर आसमान सिर पर उठा लिया, शोर सुनकर ढेरों जूनियर कौवे झपट पड़े।

करीब आ चुकी मुसीबत को बूढ़े जामवंत ने ताड़ लिया। उन्होंने सभी साहित्यकारों से क्षमा मांगी, फिर पुरस्कार व राजकीय सम्मान दिलाने का आश्वासन देकर उन्हें शांत कराया। विवाद तो टल गया, परन्तु चीख पुकार से सिंह का ब्लड प्रेशर व तनाव अत्यधिक बढ़ गया, उसे लगा कि वह पागल हो जाएगा। उसने जामवंत से कहा- हे जामवंत, मुझे किसी चिकित्सक के पास ले चलो…

( क्रमशः )

(आगे है डाक्टर लकड़बग्घा के जाल में राजा)

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