बिलासपुर- पहले के छात्र संघ चुनाव और अब के छात्र संघ चुनाव में बहुत अन्तर आ गया है। नीतियों में भी बहुत परिवर्तन हो गया है। पहले छात्र संघ चुनाव में राजनेताओं का दखल नहीं होता था। छात्र ही तय करते थे कि किसे विश्वविद्यालय का अध्यक्ष बनाना है। अब विश्वविद्यालय अध्यक्ष चुनाव के नियमों में भारी बदलाव हो गया है। तब कम्यूनिकेशन के साधन भी बहुत कम थे। विश्वविद्यालय अध्यक्ष प्रत्याशी को अपने वोटरों से मिलने के लिए बहुत मेहनत करना पड़ता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। ये बातें सीजी वाल से चर्चा करते हुए गुरूघासीदास विश्वविद्यालय के पहले अध्यक्ष आशीष सिंह ठाकुर ने कही।
वर्तमान में कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार आशीष सिंह ठाकुर कहते हैं कि 1983 में रविशंकर विश्वविद्यालय से अलग होने के बाद गुरू घासीदास विश्वविद्यलाय बनाया गया ।मुझे गर्व है कि 1983-84 में विश्वविद्यालय का पहला अध्यक्ष छात्रों ने मुझे चुना। आशीष सिंह ठाकुर बताते हैं कि पहले छात्र संघ चुनाव में राजनेताओं का सीधा दखल नहीं होता था। अब ठीक इसके उलट है। अब विश्वविद्यालय अध्यक्ष प्रत्याशी का चुनाव एनएसयूआई और एबीव्हीपी की मदर पार्टियां तय करती हैं। राजनेताओं की दखलदांजी से छात्र राजनीति में भटकाव आया है। छात्र नेता अब छात्रों को कम राजनेताओं को ज्यादा समय देने लगे हैं। जिसके कारण महाविद्यालयों में गुटीय संघर्ष ज्यादा दिखाई देने लगा है। काफी हद तक इससे शिक्षा प्रशानन भी प्रभावित हुआ है। पहले चुनाव के बाद मनमुटाव जैसी कोई बात नहीं होती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। सीजी वाल से आशीष सिंह ने बताया कि पहले चुनाव में छात्र, एक नेता बनकर चुनाव लड़ा करते थे। लेकिन अब, नेता छात्र बनकर चुनाव लड़ रहे हैं।
आशीष सिंह ठाकुर इस समय केन्द्रीय विश्वविद्यालय में काउंसिल एक्जक्यूटिव के सदस्य हैं। उन्होंने बताया कि मैने अपने अध्यक्षीय काल में विश्वविद्यालय को यीजीसी से मान्यता दिलवाने के लिए दिल्ली का कई बार चक्कर लगाया। तात्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सहयोग से गुरूघासीदास विश्वविद्यालय को यूजीसी की मान्यता दिलाने में कामयाब हुआ। यह मेरी और विश्वविद्यालय के छात्रों की बहुत बड़ी जीत थी। हमारे इस प्रयास का नतीजा था कि तात्कालीन समय गुरूघासीदास विश्वविद्यालय के गठन पर उंगली उठाने वालों का मुंह बंद हो गया।
आशीष सिंह बताते हैं कि चुनाव के तौर तरीकों में अब बहुत परिवर्तन हो गया है। पहले गुरूघासीदास विश्वविद्यालय में यूआर विश्वविद्यालय अध्यक्ष का चुनाव करता था। कालेज के छात्र यूआर चुनते थे। प्रत्येक यूआर एक हजार छात्रों का प्रतिनिधिनित्व करता था। मै जब चुनाव जीता उस समय गुरू घासी विश्वविद्यालय में कुल 25 यूनिवर्सिटी रिप्रजेंटेटिव थे। अब विश्वविद्यालय अध्यक्ष का चुनवा कालेजों के अध्यक्ष और सचिव मिलकर करते हैं।
वर्तमान छात्र राजनीति में गिरावट को लेकर चिंतित आशीष सिंह ठाकुर कहते हैं कि पहले विश्वविद्यालय का अध्यक्ष एमएलए का रूतवा रखता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। ऐसा क्यों है इसका कारण भी नहीं जानता हूं। लेकिन उनका मानना है कि विश्वविद्यालय अध्यक्ष पद की गरिमा पहले की तरह नहीं रह गयी है। आशीष सिंह ठाकुर को इस बात का मलाल कि 20 साल तक कालेजों में चुनाव नहीं होने से भारतीय राजनीति में नेतृत्व की रिक्तता आई है। इससे देश को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। चुनाव होने से सबसे अधिक फायदा गरीब छात्रों को ही होता है।