बिलासपुर–अब…छात्र राजनीति यस मैन और बंगले की होकर रह गयी है। मुझे याद नहीं आ रहा है कि पिछले 10 सालों में छात्र राजनेताओं ने छात्रहित और शहरहित के लिए कोई आंदोलन किया हो। मुझे छात्र संघ चुनाव प्रक्रिया से भी एतराज है । आटो, खोमचे और लोकसभा विधानसभा का चुनाव प्रत्यक्ष हो सकता हैं तो विश्वविद्यालय का चुनाव क्यों नहीं हो सकता । सत्ताधारी दल का..छात्र चुनाव में दखल बढ गया है। छात्र राजनीति में अब वह धार नहीं जो हुआ करती थी।
छात्र जीवन में किंग मेकर की भूमिका में माहिर विजय केशरवानी ने बताया कि मुझे दुख है कि चुनाव लड़ने का अवसर नहीं मिला। मलाल है लेकिन सरकार ने छात्र चुनाव पर ही प्रतिबंध लगा दिया था।छात्र चुनाव और संगठन में नेतृत्व का अवसर जरूर मिला। योग्य लोगों को चुनाव में उतारा। जिन्होंने छात्रहित और समाज विकास पर काम करते हुए अपना छाप भी छोड़ा।
विजय केशरवानी कहते हैं कि पहले छात्र संगठन चुनाव में नेताओं की दखलदांजी सीमित दायरे में थी। पहले लोकप्रिय छात्र का चुनाव विद्यार्थी किया करते थे। सरकार दबाव में रहती थीं। जनहित में आंदोलन हुआ करते थे। अब राजनेताओं की दखलंदाजी कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है। कौन छात्र चुनाव लड़ेगा पार्टी और नेता तय करने लगे हैं।
जनहित को लेकर पिछले एक दशक से कोई आंदोलन नहीं हुआ। मुद्दे बहुत हैं…लेकिन छात्र नेता पार्टी राजनीति जनचिंतन से दूर स्व और व्यक्ति चिंतन तक सिमटकर रह गयी है। छात्र नेता छात्र समस्यों के निराकरण के वजाय अब पार्टी में फिट होने के जुगाड़ में रहते हैं। कालेजों में सत्ताधारी दल का दबदबा होने से सत्ता के खिलाफ संघर्ष का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।
विजय केशरवानी कहते हैं कि बिलासपुर को जो कुछ भी हासिल हुआ छात्र आंदोलन से हुआ। रेल जोन हो या केन्द्रीय विश्वविद्यालय, न्यायधानी का दर्जा हो या फिर सिम्स ही क्यों ना हो। यदि छात्र राजनीति यश मैन और बंगले की नही होती तो अब तक बिलासपुर में एम्स, आईआईएम,आईआईटी, हिदायतुल्लाह विधि महाविद्यालय और तमाम औद्योगिक संस्थान होते। बिलासपुर की छात्र राजनीति को एक सोची समझी रणनीति के तहत कुंद किया गया है। ताकि किसी राजनेता को भविष्य में लोकप्रिय छात्र नेता का सामना ना करने पड़े।
अब छात्र नेता एक कालम का न्यूज और राजनेताओं के गुडबुक में रहने के लिए राजनीति करते हैं। अपना पीआर दुरुस्त कर रहे हैं। इस सोच ने बिलासपुर को नुकसान पहुंचाया है। शिक्षा पद्धति, विश्वविद्यालय व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए एक बृहद आंदोलन की जरूरत है। कालेज से कई गतिविधियां गायब हो चुकी हैं। तरूणाई को चार चांद लगाने वाले स्पोर्टस इवेन्ट, यूथ फेस्टिवल जैसे कार्यक्रम बंद हो गये हैं। सांस्कृतिक मंच पर राजनेताओं का महिमा मंडन शुरू हो गया है। नेता भी विशाल वोट बैंक पाकर खुश है।
पहले भी पार्टी का बैनर था लेकिन चुनाव लोकप्रिय छात्र ही लड़ता था। नेता मार्गदर्शक होते थे। अब छात्र नेता प्लांट किये जा रहे हैं। एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस जिला अध्यक्ष रहते हुए हमने कई आंदोलन किए। एसईसीएल और रेलवे को बेरोजगार छात्रों को नौकरी पर रखने को मजबूर किया। पहले छात्र नेताओं के सामने मंत्री नतमस्तक रहता था।
विजय केशरवानी ने कहते हैं कि मुझे अविभाज्य मध्यप्रदेश में अविभाज्य बिलासपुर जिले का छात्र संगठन और यूथ कांग्रेस का लम्बे समय तक नेतृत्व का अवसर मिला। हमने आंदोलन के दम पर हाईकोर्ट, केन्द्रीय विश्वविद्यालय रेल जोन पाया। गुरूघासी दास स्टेट यूनिवर्सिटी के समय दूर-दराज के क्षेत्रों में 52 सूचना केन्द्र खुलवाया । छात्र अपना विश्वविद्यालय संबधी काम सूचना केन्द्र से ही करने लगे।
केशरवानी मानते हैं कि 20-25 साल चुनाव नहीं होने से छात्र राजनीति का पराभाव हुआ है। शहर और छात्रों का हित प्रभावित हुआ है। समस्याएं बहुत हैं। छात्र संगठन कमजोर और राजनेता ताकतवर हुए हैं। आशीष सिंह छात्र नेता के अलावा राजनीतिक पृष्ठिभूमि के थे उन्हें छोड़कर मुझे कोई बताए कि बिलासपुर संभाग का कौन छात्र नेता विधानसभा या फिर ऊपर तक पहुंचा है। बिलासपुर जिले के बाहर ऐसा नहीं है बृजमोहन अग्रवाल, सत्यनारायण शर्मा, रविन्द्र चौबे ऐसे अनेक नाम हैं जिन्होंने अपनी पारी छात्र राजनीति से शुरू की और ऊंचाई पर खुद को स्थापित किया। बिलासपुर का दुर्भाग्य है कि यहां ऐसा कोई छात्र नेता पैदा नहीं हुआ जो यश मैन और बंगले से बाहर निकलकर अपनी पहचान बनाई हो। उन्होंने कहा कि मैं चुनाव से दूर हूं यदि कोई मेरे अनुभव का फायदा उठाना चाहेगा तो जरूर मार्गदर्शन करुंगा।