बिलासपुर में जब बापू के चरणों में हुई सोने चांदी की बारिश…बापू ने मुंगेली नहीं जाने पर जताया था दुख…आज भी सुरक्षित बाबू की विरासत

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—आजादी के सात दशक बाद आज जब हम स्वतंत्रता संग्राम के नायाब नगीनों की बात करते हैं तो राष्ट्रपिता का नाम सबसे पहले हमारे जुबां पर आता है । मोहनदास करमचंद गांधी…ऐसा नाम..जिन्हें दुनिया अंहिसा का सबसे बड़ा पुजारी और बापू के नाम जानती है। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी के सन्दर्भ में कहा था कि आनेवाले दुनिया की पीढ़ी शायद ही विश्वास के एक हाड़ मांस का आदमी इस कदर चला करता था। और दुनिया को अपने पीछे चलने को मजबूर कर दिया था।
                     15 अगस्त…ऐसा दिन जिसे विश्व में फैले भारतवंशी आन बान शान के साथ याद रखते हैं। आजादी की बात और महात्मा गांधी की चर्चा ना हो यह किसी भी सूरत में कभी संभव नहीं है। महात्मा गांधी का देश के एक-एक कोने से गहरा लगाव था। छत्तीसगढ़ से तो उन्हें विशेष अनुराग था। महात्मा गांधी ने आजादी का अलख छत्तीसगढ़ में भी जगाया। जब गांधी बाबा छत्तीसगढ़ आए तो दर्शन करने वालों की ऐसी भीड़ आज तक देखने को नहीं मिली।
                        बात 25 नवंबर 1933 की है…बापू सड़क मार्ग से रायपुर से बिलासपुर पहुंचे । बापू का कार्यक्रम भाटापारा,मुंगेली मार्ग से बिलासपुर पहुंचने का था । किन्ही कारणों से वो मुंगेली नहीं पहुंच पा। इस बात का दुख आज भी मुंगेली की जनता में है। यद्यपि बापू ने मुंगेली नहीं पहुंचने पर लिखित खेद भी व्यक्त किया।
           बापू के बिलासपुर आगमन की खबर सुनते ही पुरी जनता दर्शन को दीवानी हो गयी। लोग बापू की एक झलक पाने के लिए जिले के दूर दराज दुर्गम स्थानों से घोड़ा गाड़ी और पैदल पहुंचे। हजारों लोगों ने एक दिन पहले ही प्रस्तावित सभास्थल के पास डेरा जमा लिया। जानकारों की मानें तो गांधी के आगमन से एक दिन पहले पूरे क्षेत्र में दूर दूर से आये बैलगाड़ियां ही बैलगाड़ियां दिख रही थी ।
                           महात्मा गांधी के  नगर प्रवेश पर वर्तमान जरहाभाठा चौक के पास स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर छेदीलाल की अगुवाई में भव्य स्वागत किया गया। ,विश्राम के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कुंजबिहारी अग्निहोत्री के निवास पर गांधीजी को लाया गया। कुंजबिहारी के घर के बाहर इतनी भीड़ हो गई कि गांधीजी ने एक झरोखे से हाथ हिलाकर लोगों का अभिवादन किया। जानकर बताते हैं कि नगर आगमन के दौरान लोगों की भीड़ गांधी के ऊपर सिक्के उछालकर फेंक रहे थे। इस दौरान गांधी के इर्दगिर्द खड़े कई लोगों को लोगों को चोटें भी आई थी ।
पहली सभा कंपनी गार्डेन में……
                      बिलासपुर नगर में महात्मा गांधी की पहली सभा कंपनी गार्डन(वर्तमान में विवेकानंद उद्यान) में हुई । सभा महिलाओं की  थी । सभा से स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लोगों ने 1000 रुपया गांधी को भेंट किया। गाँधी ने इस भेंट को एक बड़े उद्देश्य के लिये बहुत कम माना। तब श्रीमती अग्निहोत्री और श्रीमती रामदुलारी मिश्रा ने महिलाओं के आगे अपने आंचल फैला दिये। इसके बाद ज्यादातर महिलाओं ने अपने गहने उतारकर बापू को भेंट कर दिया।
                    विवेकानन्द उद्यान के बाद बापू ने शनिचरी क्षेत्र में  आम सभा को संबोधित किया। जानकारों की मानें तो आम सभा में इस कदर लोगों का मजमा..फिर कभी नहीं देखने को मिला। सभा में जुटे लोग अरपा नदी के किनारे तक पहुंच गए थे । सभा के आयोजक  ठाकुर छेदीलाल,डॉक्टर शिवदुलारे मिश्र, अमर सिंह सहगल समेत कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भीड़ को नियंत्रित करने में असफल साबित हुए । लेकिन बापू ने जैसे ही लोगों के बीच हाथ हिलाकर “बैठो-बैठो” कहा तो लोग इस कदर शांत होकर बैठ गए कि जैसे सभा में कोई है ही नहीं। शांति इतनी कि सुई गिरने की आवाज सबको सुनाई दे दे।
                 गांधी जी के आदेश को लोगों ने ईश्वर का आदेश मनाकर स्वीकार किया। बापू के प्रति लोगों की आस्था इस कदर थी कि लोग सभा समाप्ति के बाद सभा स्थल से ईंट,पत्थर और मिट्टी तक उठा ले गए। शनिचरी पड़ाव स्थित सभा स्थल की यादों को जीवंत बनाने यहां एक जयस्तम्भ भी बनाया गया है। महात्मा गांधी जब रायपुर से बिलासपुर आ रहे थे तो उन्हें खुली गाड़ी की व्यवस्था की गई थी। ताकि लोग जगह जगह उनका दर्शन कर सकें..और बापू अभिनन्दन स्वीकार कर सकें।
                 जानकारों ने बताया कि उन दिनों नगर के पहले विधायक पेशे से चिकित्सक डॉक्टर शिव दुलारे मिश्र ने बापू की उस कुर्सी को और मशीन को जिससे उन्होंने बापू का रक्तचाप देखा था…सँभाल कर रखा गया। आज भी शिवदुलारे मिश्र का परिवार बतौर विरासत सुरक्षित सामानों को सुरक्षित रखा है।
                                        आज स्वतंत्रता दिवस के दिन बापू की बिलासपुर से जुड़ी तमाम स्मृतियों को हमने याद किया । याद इसलिए क्योंकि हम आजादी की सही कीमत को पहचान सके। याद इसलिए भी करें…क्योंकि आज की गिरती हुई राजनीति के जिम्मेदार नेता अपना आत्मअवलोकन भी कर सकें ।
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