छात्र राजनीति में विज़न का अभाव– राकेश

BHASKAR MISHRA

election2015_jpegrakeshh tiwariबिलासपुर—आज के छात्रों में विजन और लगन का अभाव है। छात्र राजनीति में राजनेताओं का दखल कभी नहीं रहा । अब भी नहीं है। यदि ऐसा हो जाए तो अच्छा होगा। क्योंकि राजनीति में विजन और लगन दोनों ही होता है। इससे छात्रों और कालेजों में अराजकता और गुंडागर्दी का माहौल नहीं होता। मेरी कमजोरी ने मुझे छात्र नेता बना दिया। अंग्रेजी भाषा में कमजोर था। मैं प्रशासनिक सेवक बनना चाहता था। इत्तफाक से राजनीति का अंग बन गया । यह बातें सीजी वाल से पूर्व छात्र नेता राकेश तिवारी ने कही।

Join Our WhatsApp Group Join Now

                                                                   सीएमडी में ड्रग के खिलाफ अभियान चलाया। छात्रों का प्यार मिला। सभी विचारधारा के लोगों ने आरक्षण अभियान के खिलाफ मुझे आगे कर मुहिम चलाया। न चाहते हुए भी मै छात्रनेता बन गया। पहले सीएमडी महाविद्यालय और बाद में विश्वविद्यालय का प्रेसीडेन्ट बना। किसी पार्टी के बैनर से चुनाव नहीं लड़ा। संघ से मेरा हमेशा से जुड़ाव था। इसलिए मुझे आप एबीव्हीपी का कह सकते हैं। लेकिन बताना चाहुंगा कि जब मै छात्र नेता बना एबीव्हीपी का बहुत कमजोर था। एनएसयूआई काफी संगठित छात्र दल था। लेकिन रेल जोन आंदोलन ने मुझे छात्र नेता बना दिया। मेरे खिलाफ 123 मामले दर्ज हुए थे।

            राकेश तिवारी ने बताया कि मै राष्ट्रवादी विचारधारा का हूं। छात्रहित और शहरहित को ध्यान में रखकर 1991 में संयुक्त छत्तीसगढ़ छात्र संगठन बनाया। इसमें सभी विचारधारा के लोग शामिल थे। संगठन के जरिए मैंने जरूरतमंद छात्रों को कालेज में प्रवेश से लेकर अन्य प्रकार की सहायाता भी करता था। शहर विकास को लेकर भी काम किया। लेकिन छात्रसंघ चुनाव को लेकर ऐसा कुछ भी नहीं किया। उस समय चुनाव भी नहीं होते थे।

                 1995-96 में एबीव्हीपी के सामने एनएसयूआई काफी मजबूत छात्र संगठन था। छत्तीसगढ़ छात्र संगठन में शहर और छात्रहित में काम करने वाले लोग शामिल थे। जो केवल जनहित को महत्व देते थे। संगठन में कांग्रेस विचारधारा के लोग भी शामिल थे। मेरी विचारधारा राष्ट्रवाद और पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी के ईर्द गिर्द थी। संघ से करीब का रिश्ता था। इसलिए मेरा झुकाव भाजपा की ओर हो गया।

               1996-97 में गुरूघासीदास विश्वविद्यालय का अध्यक्ष बना। यहां भी सभी लोगों का साथ मिला। संगठित एनएसयूआई की हार हुई। सबके सहयोग से विश्वविद्यालय में कैम्पस लाया गया। दो से 24 विषयों की पढ़ाई होने लगी। बाद में इसी आधार पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल हुआ। यद्यपि केन्द्रीय विश्वविद्यालय के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। अन्यथा यह विश्वविद्यालय रायपुर में होता। मैने विश्वविद्यालय की अराजकता दूर करने के लिए भी मुहिम चलाया।

                       छात्रसंघ चुनाव में राजनेताओं के दखल पर राकेश तिवारी कहते हैं कि अच्छा होता यदि ऐसा होता। कम से कम छात्र राजनीति को दृष्टिकोण और दिशा तो मिलती। क्योंकि राजनीति में दृष्टि और दृष्टिकोण काफी स्पष्ट है। राजनेताओं का दखल होता तो कालेजों में गुंडागर्दी और अराजकता का माहौल नहीं होता।

                   राकेश तिवारी ने सीजी वाल को बताया कि आज के छात्रों मे जज्बे का अभाव है। उनमें ना तो विजन है और ना ही लगन। राज्य बनने के बाद किसी मुद्दे को लेकर कोई छात्र आंदोलन नही हुआ। समाज और छात्रहित में कुछ नहीं किया गया । छात्रनेताओं में सेवा भावना जैसे मर चुकी है। चुनाव लड़ने वालों से लेकर सहयोग देने वाले टेन्डर पाने और लाभ की बात करते हैं। लोग खुद में सिमटकर रह गए हैं।

                   राकेश तिवारी ने बताया कि 1997 में रेल जोन आंदोलन के लिए छात्रों ने यदि मेहनत नहीं किया होता तो आज बिलासपुर की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर नहीं होती। छात्र ताकत से ही हमें रेलवे जोन हासिल हुआ है। यह आंदोलन मेरे जीवन का टर्निग प्वाइंट है। मेरा सौभाग्य है कि मेरे नेतृत्व में छात्रों ने रेल आंदोलन किया। यहीं से मै राजनीति का हिस्सा बन गया। बाद में दो बार सबसे कम आयु में जनपद सदस्य भी बना। तात्कालीन युवा नेता अमर अग्रवाल के यूथ विंग में उपाध्यक्ष बनने का अवसर भी मिला।

                     राकेश तिवारी ने बताया कि छात्र राजनीति में भटकाव आ गया है।  सीमएमडी कालेज अध्यक्ष रहते हुए निर्माणाधीन व्यावसायिक काम्पलेक्स को रोका। बुलडोजर चलवाया। यदि ऐसा नहीं होता तो आज सीएमडी मैदान में दुकान ही दुकान नजर आते। छात्र हित में मैने सात दिन तक आमरण अनशन किया। मुझे प्रलोभन भी मिला। लेकिन अपने लक्ष्य से नहीं डिगा। सीएमडी कालेज को ड्रग माफियों से छुटकारा मेरी सबसे बड़ी सफलता है।

             तिवारी ने बताया कि अपने साथियों के सहयोग से रेल आंदोलन न्यायधानी आंदोलन, राज्य गठन से लेकर एनटीपीसी और रेलवे में स्थानीय और खेल प्रतिभाओं को नौकरी दिलाने के लिए भी संघर्ष किया। अब तो जनहित में कोई संघर्ष ही नहीं करना चाहता। आप ही बताएं अब छात्र राजनीति किस दिशा में जा रही है।

                 युवा नेता राकेश तिवारी का दावा है कि इस बार भी विश्वविद्यालय का अध्यक्ष एबीव्हीपी का ही बनेगा। विश्वविद्यालय में एबीव्हीपी 100 से अधिक कालेजों पर झण्डा फहरायेगा।

close