अपोलो में भी होगा लीवर ट्रांसप्लांट…डॉक्टरों ने बताया ओवर कैलोरी भी लीवर सीरोसिस का कारण…अनियमित दिनचर्या ने बढ़ाया रोग

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—लीवर प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में सर्जरी से खराब हो चुके लीवर को हटा दिया जाता है। पुराने लीपर की जगह पूर्ण या आंशिक स्वस्थ्य लीवर को प्रत्यारोपित किया जाता है। समय पर लीवर से जुड़ी बीमारी का अहसास हो जाए तो लीवर की खराबी को दवाइयों से नियंत्रित किया जा सकता है। यह बातें अपोलों में पत्रवार्ता के दौरान लीवर ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ.शशिधर रेड्डी,अपोलो मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. सेन, उदर रोग विशेषज्ञ डॉ.देवेन्द्र सिंह ने कही।
                         डॉ. देवेन्द्र सिंह और शशिधर रेड्डी ने बताया कि लीवर खराब होने के बाद जिन्दगी बचाने का एक मात्र उपाय लीवर प्रत्यारोपण ही है। प्रत्यारोपण के लिये लीवर जीवित या ब्रेन डेड डोनर से लिया जाता है। कोई भी यंत्र या मशीन विश्वसनीय तरीके से लिवर का कार्य नहीं कर सकती है। ऐसी स्थिति में मरीज को बचाने के लिए लीवर बदलना ही एक एकमात्र उपाय है।
                                                   डॉक्टरों की टीम ने बताया कि अचानक लीवर का खराब होना बहुत बड़ी त्रासदी है। अपोलो हाॅस्पिटल में आयोजित प्रेस कान्फ्रेस के दौरान अपोलो हाॅस्पिटल हैदराबाद के वरिष्ठ लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन डाॅ एल. शशिधरन रेड्डी और अपोलो बिलासपुर के वरिष्ठ उदर रोग विशेषज्ञ डाॅ देवेंदर सिंग ने बताया कि लीवर मानव शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है।
                                अपोलो मुख्य कार्यपालन अधिकारी डाॅ. सजल सेन डॉ. रेड्डी और डॉ. देवेन्द्र ने बताया कि लीवर खराब होने में केवल शराब ही बल्कि अन्य कारक भी जिम्मेदार है। इसमें अत्यधिक कैलारी का होना भी लीवर सीरोसिस का कारण बन सकता है। लीवर सेरोसिस के प्रमुख कारणों में हेपेटाईटिस बी, सी, मदिरा सेवन, वसायुक्त खानपान और अनुवांसिक बिमारियां विशेष रूप से जिम्मेदार हैं। डाॅ सेन ने युवाओं में मदिरा सेवन के बढ़ते चलन को चिंताजनक बताया।
                 डाॅं. एल. शशिधरन रेड्डी ने लीवर प्रत्यारोपण से जुड़ी जानकारियों को पत्रकारों से साझा किया। उन्होने प्रत्यारोपण की विस्तार से जानकारी दी। आमतौर पर परिवार के सदस्य लीवर प्रत्यारोपित कर मरीज को बचाते हैं। लीवर प्रत्यारोपण में ब्लड ग्रुप से लेकर अन्य सावधानियों को विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके अलावा किसी मृत व्यक्ति के लीवर को प्रत्यारोपित कर मरीज को बचाया जा सकता है।
                                              डॉ. रेड्डी ने बताया कि सामान्य रूप से परिवार से ही लीवर डोनेट किया जाता है। यह एक जटिल किंतु परिणाम मूलक प्रक्रिया है। जब लिवर जीवित शरीर से लिया जाता है तो डोनर के लीवर का कुछ ही हिस्सा पर्याप्त है। इसके लिए डोनर का आॅपरेशन कर लीवर का कुछ हिस्सा निकाला जाता है। निकाले गए हिस्से को रोगी के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। चिकित्सकों की देखरेख में  डोनर और रीसीवर दोनों के शरीर में लीवर का पुर्नजनन होता है।  कुछ महीने बाद दोनों का लीवर स्वस्थ्य हो जाता है। सामान्य कार्य करने लगते हैं।
                        उदर रोग विशेषज्ञ डाॅ देवेंदर सिंह ने पत्रकारों को लीवर सिरोेसिस के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होने लीवर खराब होने के लक्षण और प्रकार बताए। काला मल, उल्टी में रक्त आना, पेट में पानी का भरना , मानसिक भ्रम, मामूली घावों से अत्यधिक रक्त स्त्राव, पीलिया, गुर्दे की शिथिलता, अत्यधिक थकान, हेमोग्लोबिन की में कमी लीवर खराब होने की तरफ संकेत करते हैं।उन्होने बताया कि लीवर ट्रांसप्लांट के बाद लीवर को बेहतर स्थित में आने के लिए 6 महीने या उससे ज्यादा समय लग सकता है। हांलाकि सर्जरी के कुछ महीने के बाद से सामान्य गतिविधियां सामान्य हो जाती हैं।
           डा.देेवेन्द्र ने बताया कि जल्द ही अपोलो बिलासपुर में देश के सर्वश्रेष्म लीवर ट्रांसप्लांट करने में विशेषज्ञ डा.रेड्डी की सेवाएं मिलेंगी। अभी तक प्रदेश में लीवर ट्रांसप्लांट को लेकर बहुत बड़ी उपलब्धि नहींं मिली है। लेकिन डॉ रेड्डी के योगदान से अपोलो में सफलता पूर्वक लीवर ट्रांसप्लांट किया जा सकेगा।
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