जंगल में लूटतंत्र (राजनीति 7)

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कौवों के तीन व बगुलों के दो दलों ने अपनी अपनी प्रतिबद्धता के अनुसार कार्य आरंभ किया। सत्यनिष्ठ कौवे तो आरंभ से ही कुछ वरिष्ठ सियारों को छोड़ शेष सभी को भ्रष्ट घोषित कर रहे थे। भ्रष्ट सियारों को दल से बाहर किए जाने की घटना को उन्होंने सीधे प्रसारित किया, समाचार बनाया, इसका शीर्षक था.. “ सियारों की नई चाल “….इस समाचार में बताया गया कि भ्रम फैलाने के लिए सियारों ने यह कदम उठाया है, वास्तव में ये सभी मिले हुए हैं।

             
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अन्य दलों के कौवों व बगुलों ने अपने अपने तरीके से समाचार प्रस्तुत किया। दूसरे दल के कौवों ने तीसरे दल के सियारों को भ्रष्ट बताया, साथ ही उन्हें दल से बाहर किए जाने की घटना को अपना मुख्य समाचार बना दिया, उनके समाचार का शीर्षक था “ भ्रष्ट सियार सर्वदलीय मंच से बाहर”…दो दिनों तक इस समाचार को लेकर हंगामा मचाया गया, फिर कौवों ने चतुर सियारों को निर्दोष बताते हुए गुणगानी समाचारों का संकीर्तन आरंभ कर दिया।

चतुर सियारों का साथ दे रहे बुद्धिजीवी बगुलों ने अनोखा विश्लेषण किया। इन्होंने वरिष्ठ सियारों को ईमानदार तो बताया, परन्तु उनकी ईमानदारी पर शंका भी जता दी। बगुलों ने चतुर सियारों को सीधे ईमानदारी का सर्टिफिकेट नहीं दिया, परन्तु तीसरे दल के सियारों के भ्रष्टाचार पर निशाना साधते हुए कहा, इनके कारण निष्कपट सियार लपेटे में आकर बदनाम हो रहे हैं… बगुलों के लेख से किसी को यह समझ में नहीं आया कि ये कहना क्या चाहते हैं…

तीसरे दल के कौवों और बगुलों ने भी कमाल किया। इस दल के कौवों की लीड न्यूज का शीर्षक था “ चक्रव्यूह में फंसे सियार “….इस समाचार में बताया गया कि बेहद शक्तिशाली ये सियार भावी केंद्रीय सत्ता के दावेदार थे, इसलिए चतुर सियारों ने इन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगवाया, फिर इन्हें बदनाम करने के लिए दल से बाहर कर दिया। दो दिन हंगामा मचाने के बाद इन्होंने भी अपने पक्ष के समर्थन में भजन कीर्तन आरंभ कर दिया।

तीसरे दल का साथ दे रहे बुद्धिजीवी बगुलों ने अलग राग अलापा। इन्होंने भ्रष्ट सियारों के निष्कासन को पूंजीवादी व विदेशी साजिश करार दे दिया। इन्होंने कहा पूंजीवादी नहीं चाहते थे कि ये शक्तिशाली सियार भावी केंद्रीय सरकार में आगे आएं, इसलिए साजिश कर उन्हें बाहर कर दिया गया। बगुलों ने इस मामले को धर्मनिरपेक्षता व वन्यप्राणिवाधिकार से जोड़ते हुए गहरी चिंता भी जताई…
कौवों के छिन्न भिन्न राग से वन्यप्राणियों तक तीन तरह की सूचनाएं पहुंचने लगीं, तीन तरह के विश्लेषण भी तैरने लगे, इससे वन्यप्राणी कन्फ्यूज हो गए। कुछ वन्यप्राणियों को एक दल के सियार चरित्रवान और दूसरे दल के कदाचारी नजर आने लगे। इसके उलट कुछ अन्य वन्यप्राणियों को पहले दल के सियार कदाचारी और दूसरे दल के सियार चरित्रवान दिखने लगे। अधिकांश वन्यप्राणी यह समझ ही नहीं सके कि आखिर चरित्रवान कौन है और कौन कदाचारी है।
जंगल में पुनः तर्क वितर्क का दौर आरंभ हो गया। घरों के अंदर से लेकर चौक चौराहों तक सिर्फ यही चर्चा चलती रही। अपनी अपनी समझ के अनुसार वन्यप्राणी कई दलों में बंट गए। एक सप्ताह तक हंगामा मचाने के बाद दूसरे और तीसरे दल के कौवों व बगुलों ने नया खेल आरंभ किया।
नंदन वन के झरने के निकट एक पेड़ की डगाल टूटने से दो खरगोशों की मौत हो गई। दोनों दलों के कौवों ने इस घटना को नंदन वन के अस्तित्व पर मंडराते खतरे के रूप में प्रस्तुत किया। कौवों ने इसे वन्यप्राणियों की सुरक्षा पर खतरा बताते हुए व्यवस्था को कटघरे में घड़े किया, एक्सपर्ट्स, वन्यप्राणिवाधिकार आयोग के सदस्यों की राय बताई। बगुलों ने भी इस घटना पर चिंता जताते हुए इसे पूंजीवादी साजिश करार दिया।

इस भयानक घटना को लेकर की गई कांव कांव में भ्रष्टाचार का शोर गायब हो गया, वन्यप्राणी सुरक्षा को लेकर तर्क वितर्क करने लगे, फिर तीसरी घटना पर शोर मचाया गया और सबकुछ पहले जैसा चलने लगा…. इस बीच सत्यनिष्ठ कौवों ने पुनः भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, नए सिरे से हलचल आरंभ हुई, घबराए चतुर सियारों ने इस बार सत्यनिष्ठों के उच्च अधिकारियों से भेंट की…. एकाएक सत्यनिष्ठों की आवाज का वाल्यूम कम हो गया….

( आगे है चेहरा बदलने की कवायद…)

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