( गिरिजेय ) चुनाव जब भी हो…. एक सवाल हमेशा अहम होता है कि ” चुनाव का मुद्दा क्या है….” ? जाहिर सी बात है कि छत्तीसगढ़ के मौजूदा विधानसभा चुनाव में भी यह सवाल सियासी हलकों में तैर रहा है । राजनीतिक प्रेक्षकों के साथ सियासी पार्टियों के कार्यकर्ता और अब तो आम लोग भी इस सवाल का जवाब जानना चाह रहे हैं। सही में चुनाव का मुद्दा क्या है… ? इस सवाल का जवाब आने वाले समय में सामने आ जाएगा। लेकिन फिलहाल जो जवाब सामने आ रहा है, उससे तो यही जाहिर होता है कि उम्मीदवारों के चयन में हो रही देरी ही आज की तारीख में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है। जिस प्रदेश में पहले चरण के चुनाव के लिए महज बारह -चौदह दिन का वक्त बाकी हो और दूसरे चरण के लिए पर्चे दाखिल करने की आखिरी तारीख धीरे-धीरे नजदीक आती जा रही हो , वहां अगर राजनैतिक दल अपने 90 उम्मीदवारों की फेहरिश्त भी उजागर न कर सकें तो यह मुद्दा ही आपसी बातचीत में सबसे ऊपर अपनी जगह बना लेता है। यही इस समय हो रहा है और लोगों के बीच यही सवाल घुमड़-घुमड़ कर वापस आ रहा है कि 90 सीटों पर कौन किसके मुकाबले चुनाव मैदान में होगा ….?
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इस सवाल के जवाब की तलाश में अलग-अलग सियासी पार्टियों के अँदर झांकने की कोशिश करें तो बड़ी दिलचस्प तस्वीर नजर आती है । और लगता है कि पार्टियों के लिए भी यह मुद्दा अहम् है औऱ वे भी इस दाँव में हैं कि सामने वाली पार्टी किस चेहरे को सामने ला रही है। उस हिसाब से अपने मोहरे फिट करने की तैयारी में ही वक्त लग रहा है। हालांकि इस मामले में बीजेपी ने बाजी मार ली है। पार्टी ने पहले चरण की अठारह सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम पहले ही तय कर दिए थे। दूसरे चरण में भी 12 को छोड़कर उनके उम्मीदवारों के नाम सामने आ गए हैं। बीजेपी के उम्मीदवारों ने अपने-अपने इलाकों में चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया है। सहज ढंग से माना जा सकता है कि इसका लाभ भी बीजेपी को मिलेगा। लेकिन बीजेपी ने भी एक साथ सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम तय नहीं किए हैं। एक दर्जन सीटें अभी भी अटकी हुई हैं। इसके पीछे हो रही देरी के पीछे यही वजह मानी जा रही है कि बीजेपी दरअसल कांग्रेस की सूची जारी होने का इंतजार कर रही है। अगर ऐसा है तो यही माने जाएगा कि कांग्रेस देर कर रही है, इसलिए बीजेपी भी अपने पत्ते नहीं खोल रही है।
उधर कांग्रेस की सूची को लेकर तो हालात बेचैनी से भी काफी आगे बढ़ गए हैं। कहां तो पार्टी के अध्यक्ष राहुल गाँधी ने मई में छत्तीसगढ़ दौरे के समय कहा था कि कांग्रेस उम्मीदवारों के नाम अगस्त में ही तय कर दिए जाएँगे। लेकिन कैलेंडर के कई पन्ने पलटने के बाद भी इंतजार की घड़ियां समाप्त नहीं हुईं हैं। सीधे तौर पर कोई कह सकता है कि कांग्रेस का क्रेज बढ़ गया है और पार्टी की सत्ता में वापसी की संभावनाओँ को देखते हुए ही दावेदारों की गिनती भी बढ़ गई है। सत्ता में काबिज होने की उम्मीद में मारामारी मची हुई है। लेकिन अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस पार्टी के लिए यह कहना शायद पूरी तरह से सही नहीं होगा। बल्कि अब तक की स्थिति में यही बात उभरकर आ रही है कि कांग्रेस अंदरूनी खींचतान औऱ वर्चस्व की लड़ाई से नहीं उबर पाई है। जिसके चलते इस तरह के हालात बन रहे हैं। दिल्ली में मीटिंग पर मीटिंग हो रही है। छनकर आ रही खबरों के मुताबिक प्रदेश के नेता अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने ही तू-तू-मैं-मैं पर उतर आए । बतातें हैं कि राहुल गाँधी को भी कहना पड़ गया कि एमपी की दो सौ सीटों पर जितना प्राब्लम नहीं है, उससे कहीं अधिक छत्तीसगढ़ की नब्बे सीटों पर प्राब्लम हो रहा है। इसका नतीजा सामने नजर आ रहा है कि जिस समय पार्टी को अपने चुनाव अभियान की शुरूआत कर देनी चाहिए , उस समय “कौन आगे-कौन पीछे ” का खेल चल रहा है। जमीनी कार्यकर्ता भी इससे हताश है । माना जा रहा है कि उम्मीदवार चयन मेें हो रही देरी उसी तरह से कांग्रेस के लिए घातक हो सकती है, जिस तरह वनडे क्रिकेट के आखिरी ओवरों में विपक्षी टीम के बल्लेबाज बेतहासा पिटाई कर रनों की बौछार कर दें और बाद में यहीं रन टीम के लिए भारी पड़ जाएं। कांग्रेस को इस हालात से मुकाबला करना पड़ सकता है।
वैसे छत्तीसगढ़ के मौजूदा चुनाव में तीसरी ताकत के रूप में उभरी अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ( जे.) की ओर से भी धीरे-धीरे कर सूची जारी की गई है। रणनीति यही हो सकती है कि बीजेपी – कांग्रेस की लिस्ट देखकर अपने उम्मीदवारों के नाम तय करें। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची जारी होने में हो रही देरी जोगी कांग्रेस को भी बेचैन कर रही होगी। जिन्हे टिकट से वंचित असंतुष्टों का भी इंतजार हैं।
कुल मिलाकर चुनाव के लिए चेहरे तय करने में हो रही देरी के लिए सबके पास अपने-अपने कारण हैं। सब एक-दूसरे के चेहरे सामने आने के इंतजार में अपने चेहरे की तलाश में वक्त गुजार रहे हैं। लेकिन इस तलाश के बीच चल रहे गुणा -भाग में इतना वक्त गुजर गया है कि चुनावी फैसले के इंतजार में बैठे छत्तीसगढ़ के आम लोग भी इस मुद्दे से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं कि….. 90 चेहरों की तलाश में क्यों हो रही हैं देरी….?