लक्ष्मण मस्तुरिया के निधन पर CM डॉ रमन ने जताया शोक,छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत के बेताज बादशाह थे

Shri Mi
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अटल स्मारक,स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी,मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह,अटल नगर (नया रायपुर),रायपुर-छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राज्य के लोकप्रिय कवि और प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है। उन्होंने आज यहां जारी शोक संदेश में कहा है कि स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया वास्तव में छत्तीसगढ़ के जन-जन के कवि और छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत के बेताज बादशाह थे, जो लगभग पांच दशकों तक अपने सुमधुर गीतों से और अपनी मधुर आवाज से छत्तीसगढ़ के गांव, गरीब और किसानों की भावनाओं को स्वर देते रहे और जनता के दिलों पर राज करते रहे। उनके गीतों में ग्रामीण जन-जीवन और छत्तीसगढ़ माटी की सौंधी महक थी। छत्तीसगढ़ का सहज-सरल लोक जीवन उनके गीतों में रचा-बसा था। डॉ. सिंह ने कहा – हालाकि श्री मस्तुरिया ने हिन्दी में भी कई रचनाए लिखी, लेकिन उन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि और लोकप्रियता अपनी छत्तीसगढ़ी रचनाओं से मिली।मुख्यमंत्री ने कहा श्री मस्तुरिया ने छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति को अपनी कालजयी रचनाओं के माध्यम से देश और दुनिया में नई पहचान दिलाई। डॉ. सिंह ने उनके शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना प्रकट की है और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की है।

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ज्ञातव्य है कि लक्ष्मण मस्तुरिया का जन्म सात जून 1949 को बिलासपुर जिले के ग्राम मस्तुरी में हुआ था। उन्हें वर्ष 1970 के दशक में बघेरा (जिला-दुर्ग) के दाऊ रामचन्द्र देशमुख द्वारा स्थापित लोकप्रिय सांस्कृृतिक संस्था ‘चंदैनी गोंदा’ के गीतकार के रूप में पहचान मिली। इस संस्था में उनके गीत ‘मोर संग चलव रे-मोर संग चलव जी’ काफी लोकप्रिय हुआ। आकाशवाणी के रायपुर केन्द्र के विभिन्न कार्यक्रमों में उनके गीतों का प्रसारण होता रहा है।

स्वर्गीय श्री मस्तुरिया ने कई छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे, जिनमें राज्य निर्माण के समय वर्ष 2000 के आस-पास बनी फिल्म ‘मोर छईंहा-भुईंया’ सहित हाल ही बनी फिल्म ‘मया मंजरी’ भी शामिल हैं। उनके अनेक गीतों के ग्रामाफोन एलपी रिकॉर्ड भी बन चुके हैं। श्री मस्तुरिया को वर्ष 1974 में नई दिल्ली के लाल किले में गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में काव्यपाठ के लिए छत्तीसगढ़ के ही लोकप्रिय शायर स्वर्गीय श्री मुकीम भारती के साथ आमंत्रित किया गया था, जहां 20 जनवरी 1974 को उन्होंने गोपाल दास नीरज, बाल कवि बैरागी, इन्द्रजीत सिंह तुलसी और रामअवतार त्यागी तथा रमानाथ अवस्थी जैसे दिग्गज गीतकारों के साथ दोनों की रचनाओं को खूब प्रशंसा मिली।

स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तुरिया की प्रकाशित पुस्तकों में छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह में ‘मोर संग चलव’ (वर्ष 2003), हिन्दी काव्य संग्रह ‘सिर्फ सत्य के लिए’ (वर्ष 2008) और छत्तीसगढ़ी निबंध संग्रह ‘माटी कहे कुम्हार से’ (वर्ष 2008) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। श्री मस्तुरिया ने कुछ समय तक ‘लोकसुर’ नामक मासिक पत्रिका का भी सम्पादन और प्रकाशन किया। भोपाल स्थित संस्था दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा मार्च 2008 में आयोजित अलंकरण समारोह में श्री लक्ष्मण मस्तुरिया को मध्यप्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री बलराम जाखड द्वारा ‘आंचलिक रचनाकार सम्मान’ से विभूषित किया गया था।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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