चतुर व भ्रष्ट सियार राजा के निकट पहुंच तो गए, परन्तु अधिकारियों द्वारा धमकाए जाने व वरिष्ठ सियारों के साथ छोड़ने से उन्हें दोहरा झटका लगा था। उनका आत्मविश्वास हिल गया था। उधर गुफा के बाहर खड़े वन्यप्राणियों में भी खलबली मची थी। सत्यनिष्ठ सियारों के घर जाने के बाद उनके सैकड़ों समर्थकों का उत्साह भंग हो गया था। गुफा तक पहुंचने के बाद भूल का अहसास होने पर वे लौटते जा रहे थे।
सियारों को सबसे अधिक चिंता अधिकारियों की थी, वे जानते थे अगर खतरनाक शेर व चीते जाग गए, तो उनका जीवन खतरे में पड़ जाएगा, इसलिए वे हड़बड़ी में थे। राजा के निकट जाकर उन्होंने हांफते हुए अभिवादन किया और कहा- राजन् देखिए, संपूर्ण लूटतंत्र की मांग को लेकर वन्यप्राणी उग्र हो गए हैं, परन्तु आप चिंतित न हों, हम इन्हें किसी भी तरह मना लेंगे।
हे राजन्, अब भी समय है, आप मध्य मार्ग अपनाइए, शीघ्रता से संपूर्ण लूटतंत्र लागू करने व चुनाव कराने की घोषणा कर दीजिए, नहीं तो अराजकता फैल जाएगी। राजन्, व्यर्थ की हिंसा से कुछ नहीं मिलेगा, नंदन वन नष्ट हो जाएगा, अतः शीघ्र निर्णय लीजिए।
सियारों की धमकी से एक पल के लिए सिंह भी चिंतित हो गया, शोर सुनकर अनेक सैनिक दौड़ते हुए राजा के निकट पहुंचे, परन्तु अधिकारी नहीं पहुंचे, मंत्री जामवंत भी आसपास नजर नहीं आए। सियारों व वन्यप्राणियों की धृष्टता देख सिंह के धैर्य का बांध टूट गया, एकाएक उसने ऋषि प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए पहले भय का संचार किया, फिर भीषण गर्जना की…..
सिंह के दहाड़ते ही उसके सहायक अधिकारी शेर व चीते जाग गए, शोर सुनकर वे समझ गए कि सियार अपने समर्थकों के साथ गुफा तक पहुंच गए हैं, अतः वे भी दहाड़ते हुए गुफा की ओर दौड़ने लगे। सैनिक भी उछलकूद करने लगे।
वातावरण भयावह होते ही सियार सेना के पैर उखड़ गए, पहले भालुओं के पीछे चल रहे वन्यप्राणी भागे, फिर भालू भी सिर पर पैर रखकर भागने लगे। भगदड़ मचने से अनेक छोटे वन्यप्राणी कुचलकर मारे गए। अपनी सेना को सिंहनाद से ही तितर बितर होते देख सियार भी वहां से भाग खड़े हुए। केवल दहाड़ से ही उन्हें भागते देख सिंह अपनी आंखें बंद कर और जोर जोर से दहाड़ने लगा।
अचानक उसे जामवंत की शांत वाणी सुनाई दी, जामवंत कह कह रहे थे- आंखें खोलिए राजन्, अपनी दुनिया में वापस आ जाइए… राजा ने आंखें खोलीं, सूर्यास्त के बाद घिरते अंधेरे में शांत भाव से बैठे जामवंत दिखे, चारों ओर चकित व अवाक शेर, चीते, तेंदुए नजर आए।
राजा कुछ समझ नहीं सका, एकाएक उसे याद आया कि जब सियारों की चतुराईपूर्ण बातें सुनकर उसके अंदर क्रोध का ज्वार उमड़ा, आंखें बंद कर दहाड़ लगाई तो सुबह थी, अब जब जामवंत की आवाज सुनकर उसने आंखें खोली हैं तो शाम हो गई है….
चकित राजा ने मंत्री से कहा- आप कहां चले गए थे ? क्या मैं सुबह से शाम तक दहाड़ता ही रह गया ? मंत्री ने कहा- राजन मैं कहीं नहीं गया था, मैं यहीं बैठा हुआ था। उन्होंने हंसते हुए कहा- हे राजन्, आप मुझे क्षमा करें, आपको कुछ परिस्थितियों से अवगत कराने के लिए मैंने धृष्टता की है। सिंह ने मंत्री से कहा- शीघ्रता से बताइए क्या हुआ है।
मंत्री ने कहा- राजन्, आप पर जंगल में मानवीय व्यवस्था लागू करने की धुन सवार थी, इसलिए आपने मुझे ज्ञान और अनुभव प्राप्त करने भारतवर्ष भेजा। मेरे लौटने के बाद आपने एकाएक व्यवस्था लागू करने का आदेश दे दिया, इससे मैं संकोच में पड़ गया।
वास्तव में मैंने वहां जो देखा, सुना और समझा उसे जंगल में लागू करना संभव नहीं था, परन्तु इसे आपको शब्दों में समझा पाना भी असंभव था, इसलिए मैंने एक गुप्त योजना बनाकर आपको व्यवस्था लागू होने की जानकारी दे दी।
निरीक्षण पर रवाना होने से पहले मेरी सलाह पर आप आंखें बंद कर प्रार्थना करने लगे, इसी दौरान मैंने आपको सम्मोहित कर दिया। फिर मैं आपको अलौकिक शक्तियों के सहारे निर्मित माया नगरी में ले गया, जहां आप निरंतर मेरे साथ रहे, विभिन्न गतिविधियों में भाग लेते रहे। इस दौरान सामने आई परिस्थितयों को देख देखकर आप विचलित भी होते रहे।
राजन्, नंदन वन जैसा पहले था, अब भी वैसा ही है, परन्तु मानवीय व्यवस्था लागू करने से यह वैसा ही हो जाता, जैसा आपने उस माया नगरी में देखा है, अतः हे राजन्, आप मुझे क्षमा कर दीजिए। जामवंत की बातें सुनकर राजा के हृदय की धड़कनें सामान्य हो गईं, वह मायावी दुनिया को याद कर देर तक हंसता रहा, फिर जिज्ञासावश उसने प्रश्नों की झड़ी लगा दी…
( आगे है…लोकतंत्र के संबंध में राजा के सवाल, जामवंत के जवाब…)