बैंकरों ने कहा…बहुत हुई मन की बात..बताएं..प्यारा कौन..10 लाख कर्मी या चंद लुटेरे..अधिकार मांगते ही, खोखला हो जाता है बैंक

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— 21 और कि26 दिसम्बर को देश के 3 लाख से अधिक कर्मचारी और अधिकारी अपनी मांग को लेकर अखिल भारतीय स्तर पर हड़ताल पर जाने का एलान किया है। जाहिर सी बात है कि हड़ताल का असर आम जन जीवन पर पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि इन दिनों बैंकिंग कार्य पूरी तरह से ठप रहेगा। फिर भी सवाल उठना लाजिम है कि आखिर बैंकरों को अखिल भारतीय स्तर पर हड़ताल में जाने की जरूरत क्यों हुई। सीजी वाल ने सवाल का जवाब बैंकरों से मिलकर तलाशने का प्रयास किया है।
                 जल्द ही देश के सभी बैंकर 21 और 26 को अखिल भारतीय स्तर पर हड़ताल पर जाने का एलान किया है। बैंकरों के हड़ताल पर जाने की वजह जानने का प्रयास किया है। जवाब में बैंकरों ने कुछ भी बताया उसका लब्बो लुआब कुछ इस तरह है। बैंकरों के अनुसार नवम्बर 2017 से 10 लाख बैंक कर्मियों की वेज रिविजन पेंडिंग है। हर बार की तरह इस बार भी सरकार ने बैंककर्मियों के वेतन को लेकर मौनव्रत की स्थिति मं है। हड़ताल कभी भी बैंकर की पहली चॉइस नहीं होती है। बैंककर्मी जायज मांगो को लेकर जब असहाय और मजबूर होते है तभी हड़ताल पर जाने का फैसला करते हैं। 10 लाख बैंककर्मियो और परिवार की आर्थिक सुरक्षा के लिए हड़ताल करते है। सड़कों पर उतरते हैं…बदले में सैलरी कटवाते है…।
संविधानिक अधिकार को बनाया मजाक
           बैंकरों के अनुसार समान कार्य के लिए समान वेतन संविधानिक अधिकार है। लेकिन हो उल्टा रहा है। काम अधिक और सैलरी कम दी जा रही है। जोखिम कार्य के लिए अंतरराष्ट्रीय औद्योगिक सिद्धांत कहता है कि हाई रिस्क हो तो हाई सैलरी देनी चाहिए। यह जानते हुए कि बैंकिंग कार्य जोखिमभरा है। किसी केशियर से पूछिए कि  पूरी जिन्दगी में वह कितने रूपये कैश काउंटर पर गवांता है। अधिकारी छोटी -छोटी गलतियों के लिए एकाउंटेबिलिटी रिपोर्ट का शिकार होता है।
                          नोटबंदी में ऐसे कितने ही केशियर ने लाखो का लोन लेकर सरकार की योजना को सफल बनाने के लिए बलिदान दिया। जब हम सैलरी की बात करते हैं तो बैंक में घाटा होने का राग शुरू हो जाता है। सच्चाई तो यह है कि 99 प्रतिसत बैंककर्मियों का इस पाप में कोई योगदान नहीं है। नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे कुछ चुनिंदा लोग सरकार  की गलत नीतियों के कारण बैंक को लूटकर खोखला कर दिया है। बदनामी आम बैंकर्मियीं के माथे पर लिख दी जाती है।
ईधर कुऑ..उधर खाई
         बैंकरो ने बताया कि क्या एक बैंक क्लर्क, ऑफिसर या मैंनेजर 1000 करोड़ और 10,000 करोड़ का ऋण  देता है। बिल्कुल नहीं देता…लेकिन  सत्ता में बैठे कुछ लोग आम जनता को अगुँठा छाप और अनपढ़ समझने लगते हैं। सरकार की लगभग हर योजना कहीं न कहीं बैंकर के गर्दन और पीठ पर लादी जाती है। काम इतने की मानो  24 घंटे भी कम पड़ जाए। समय पर काम न हुआ तो..अात्महत्या के लिए उकसाने वाले तालिबानी इंग्लिश मीडिया जानलेवा पत्र भेज देता है।  कुल मिलाकर इधर कुआँ उधर खाई की स्थिति है। एक पतली सी गली है…टॉप स्पीड में गाडी भी चलाना है..ख़बरदार किया जाता है…कि किसी को खरोंच ना आए। यदि खरोज आयी तो नौकरी खत्म…और जीवन मरण का प्रश्न शुरू हो जाता है।
 एडजस्ट करने में 1 लाख 20 हजार करोड़ खर्च
                हड़ताली पर जाने वाले बैंक अधिकारियों के अनुसार 2016 -17 में 1 लाख 58 हज़ार करोड़ का ऑपरेटिंग प्रॉफिट हुआ। एक लाख बीस हज़ार करोड़ अमीरों के लोन को एडजस्ट करने में चला गया। .क्या इसलिए की पार्टी चंदा का 90 प्रतिशत कॉर्पोरेट जगत देता है। सरकार को लगता है कि…..गरीब वोट बैंक है और आमिर पार्टी चंदा का खजाना। 10 लाख बैंकर न तो वोट में निर्णायक है न चंदा देने की औकात रखते है। शायद यही कारण है कि सरकार को हमारी फ़िक्र नहीं है।
•               मालूम होना चाहिए कि हमारे सर्विस कंडीशन में कहीं नहीं लिखा की प्रॉफिट होगा तो तभी सैलरी मिलेगी या बढ़ेगी। ठीक वैसे ही जैसे थाना पुलिस , रेलवे , सरकारी कॉलेज स्कूल , सरकारी हॉस्पिटल…सब सामाजिक और राजनितिक अपेक्षाओं के चक्क्कर में मुनाफा नहीं कर पाते। वैसे ही हमारे बैंक भी है।
अब हमारे मन की बात सुने
              बैंकरों की मानें तो अगर इरादे नेक और फौलादी होने के कारण आप मंगल और चाँद पर पहुँच जाते हैं। फौलादी इच्छा शक्ति उस समय कहां गायब हो जाती है कि अभी तक न तो माल्या को पकड़ पाए और नीरव को पकड़ने लन्दन गए। मन की बात खूब सुन लिए। रगड़ कर काम किया …वक़्त आ गया है कि  10 लाख बैंकरों की बात सुनी जाए। इस बार साफ़ हो जाएगा कि सरकार किसे अपना मानती है । 10 लाख बैंक कर्मी और उनके 1 करोड़ आश्रित मध्यम वर्गीय परिवार के लोगो को…या फिर 100 -500 लुटेरे पूंजीपतियों को।
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