जंगल मे लूटतंत्र (मंत्रणा 3)

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जामवंत ने कहा- राजन्, शिक्षा से नैतिकता का लोप होने से पूरा समाज प्रभावित होता गया। तथाकथित शिक्षित डिग्रियों के सहारे जनता की सेवा करने के लिए सरकारी अधिकारी बने, भ्रष्टाचार में डूबकर उन्होंने अपनी ही सेवा आरंभ कर दी। सेवा का मुखौटा लगाए डाक्टरों ने बड़ी बड़ी दुकानें खोल लीं, इलाज के बहाने पूरे देश को बीमार बना डाला। इंजीनियरों ने देश की बुनियाद ही खोखली कर दी।

राजन्, व्यापार के क्षेत्र में नैतिकता को तिलांजलि दी गई, प्रचार तंत्र के माध्यम से लालच को बढ़ावा देकर लोगों को झांसा दिया गया। लोभ के फंदे में फंसकर सामान्यजन विलासितापूर्ण जीवन की ओर आकर्षित हुए, उन्होंने पहले अपनी जमा पूंजी खर्च की, फिर कर्ज लिया, कर्ज के जाल में फंसने के बाद वे भ्रष्टाचार में डूब गए।

अनैतिक राहों से विकसित होने की प्रवृत्ति से अपराध और आपसी विवाद बढ़ते गए, व्यवस्था चरमराने लगी। न्यायालयों में प्रकरणों की संख्या तेजी से बढ़ी और न्याय में विलंब होने लगा। समय पर न्याय नहीं मिलने से अन्याय को बढ़ावा मिला, झगड़ों का विस्तार होता गया, सामाजिक और आर्थिक अपराधियों, ठगों व लुटेरों के हौसले बुलंद होते गए।

सत्य के लिए संघर्ष करने वाला मीडिया भी इन सबसे अप्रभावित नहीं रह सका, यह भी बाजार का हिस्सा बनकर मांग व पूर्ति के फंदे में फंस गया। इस मीडिया में सत्य का मुखौटा लगाकर असत्य बोलने वालों का प्रवेश हुआ, इससे इसकी विश्वसनीयता को धक्का लगा।

राजन्, इस राष्ट्र को सबसे अधिक हानि राजनीति से हुई है। जनसेवा का मुखौटा लगाकर राजनीति के रंगमंच पर नेता अवतरित हुए, इन्होंने लोकतंत्र को शीर्षासन की
मुद्रा में ला दिया। सत्ता के लिए नेताओं ने अपवित्र गठबंधन किए, लूट और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद को हवा दी, मीडिया से गठबंधन कर व अन्य माध्यमों से भ्रम का विस्तार किया।

किसी भी राह चलकर सत्ता प्राप्ति की प्रवृत्ति ने सामाजिक व आर्थिक अपराधियों को महत्व दिलाया, इनका समाज में सम्मान होने लगा। अपराधियों को अनैतिकता के सहारे फलते फूलते देख समाज में मुफ्तखोरी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला, लोग नैतिकता का त्याग कर अनैतिकता का दामन थामते गए ।

राजन्, इस राष्ट्र में मुखौटा संस्कृति ने अब गहरी जड़े जमा ली हैं, हर क्षेत्र में सिर्फ मुखौटाधारी ही दिखाई देते हैं। कौन, कब, किस जगह, किस रास्ते से अपना स्वार्थ साधने के लिए ठगी कर ले, यह समझ में नहीं आता। ध्यान से देखने पर चहुंओर मनुष्यता का मुखौटा लगाए पशु ही पशु दिखाई देते हैं।

राजा ने कहा- अगर यह लोकतंत्र उल्टा हो गया है, तो इसे सीधा करने का क्या उपाय है ?

जामवंत ने कहा- हे राजन्, मनुष्य होकर भी पशु प्रवृत्तियों में डूबे हुए लोग वास्तव में सत्य के मार्ग से भटके हुए हैं। तीव्र वेग से बहती अज्ञान रूपी नदी में ये तिनके की तरह बहते चले जा रहे हैं। जब तक ये सही मार्ग पर नहीं आएंगे, तब तक यह लोकतंत्र भी सीधा नहीं होगा… अतः इन्हें मार्ग पर लाने का एकमात्र उपाय विचार क्रांति है।

राजन्, विचार ही व्यवहार व चरित्र को बनाते या बिगाड़ते हैं। एक व्यक्ति या राष्ट्र जिन विचारों के प्रवाह में प्रवाहित होता है, उन्हीं विचारों के अनुसार वह व्यवहार करता है, जैसा वह व्यवहार करता है, वैसा ही उसके चरित्र का निर्माण होता है। इस राष्ट्र में गड़बड़ियों की शुरुआत नैतिकता को तिलांजलि देने से हुई।

पहले विचार बदले, फिर व्यवहार बदला और अंत में चरित्र बदल गया। राजन्, अब इस तंत्र को सीधा करने के लिए राष्ट्रीय मानस पर छाए अनैतिकता के बादलों को हटाना होगा, इसके प्रदूषित वैचारिक पर्यावरण को शुद्ध करना होगा, भ्रम को तार तार करना होगा।

यह कार्य विचारवान ही कर सकते हैं। विचारवानों को क्रांति की मशाल थामनी होगी, उन्हें गांव गांव और गली गली में नैतिकता की अलख जगानी होगी। यदि विचारवान सक्रिय हो जाएं, तो उन्हें अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अनैतिकता का होना ही नैतिकता की उपस्थिति का प्रमाण है, समस्या विचारशीलता की है।

समस्या यह है कि अनैतिकता की राह पर चलने वाले नैतिकता के संबंध में विचार नहीं करते, यदि एक बार उनके अंदर नैतिकता की चिंगारी को हवा दे दी जाए, तो उसे ज्वालामुखी बनने में अधिक समय नहीं लगेगा।

अतः विचारवानों को राष्ट्रीय मानस में नैतिकता का दीप जलाना होगा, उन्हें नैतिकता का सही अर्थ बताना होगा, यह भी बताना होगा कि नैतिकता का पालन आवश्यक क्यों है। जैसे जैसे लोगों के अंदर विचार जागृत होंगे, वैसे वैसे उनका व्यवहार बदलता जाएगा, अंत में चरित्र भी बदल जाएगा।

राजा ने कहा- हे जामवंत, नैतिकता का सही अर्थ क्या है ?

( आगे है…नैतिकता का सही अर्थ )

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