संविलियन से ना मध्य प्रदेश के अध्यापक खुश हैं और ना छत्तीसगढ़ के शिक्षाकर्मी..सत्ता बदलने के बाद बंधी उम्मीद

Shri Mi
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बिलासपुर।मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यो में हुए संविलियन न तो अध्यापक खुश है न ही शिक्षाकर्मी सत्ता बदलने के बाद ऊमीद थी कि विधानसभा चुनाव पूर्व जो वादे  दोनों राज्यो की वर्तमान कांग्रेस सरकार की ओर से किये गये है। वो पहली केबिनेट की बैठक में ही पूरे हो जायेगा पर ऐसा हुआ नही यह प्रेस नोट जारी करते हुए राष्ट्रीय पैरा शिक्षक मंच के नेता हीरानन्द नरवरिया बताया कि अध्यापकों ने अपने शिक्षाकर्मी जन्म काल से ही कई उतार-चढ़ाव देखे है। कई नेताओं का बडबोलापन देखा है। वतर्मान सत्ताधारी दल के वचन पत्र में स्पष्ट उल्लेख था कि अध्यापकों का 1994 के नियमों के अधीन शिक्षा विभाग में संविलियन किया जाएगा। ।सीजीवालडॉटकॉम के whatsapp ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक 
कुछ सत्ताधारी दल के नेताओं ने तो सार्वजनिक मंचों से यहां तक घोषणा कर दी थी कि सरकार बनते ही पहली कैबिनेट बैठक में ही “अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन” कर दिया जाएगा। धीरे धीरे समय का पहिया घूमते-घूमते डेढ़ माह से अधिक की समयावधि पार कर गया, लेकिन शिक्षा विभाग में संविलियन का मामला अच्छे जिन्न की तरह ना जाने किस बोतल में बंद है कि बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहा। इस शिक्षा विभाग में संविलियन के जिन्न को आजाद कराने की जवाबदेही जिन जनप्रतिनिधियों पर है, उनकी कार्यप्रणाली में बेहद सुस्ती दिखाई दे रही है। बल्कि उन जनप्रतिनिधियों को अब यह शिकायत होने लगी है कि अध्यापक रोज-रोज उनके घर चले आते हैं। दर्द तब और बढ़ जाता है जब परिणाम देने की जगह सत्ता में आए दिन को गिन-गिनकर बताया जाता है। अध्यापकों की 20-22 बरसो की बेबसी की छटपटाहट पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता? मध्यप्रदेश अध्यापक संघर्ष समिति के शिक्षक नेता रमेश पाटिल ने बताया कि
लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगते ही अध्यापकों के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा हो जाएगी। यह सर्वविदित है लेकिन उससे भी कही पहले 11 फरवरी से 9वीं, 10वीं, 11वीं, 12वीं की प्री-बोर्ड, वार्षिक परीक्षा का दौर प्रारंभ हो जाएगा। बीच-बीच में 10वीं, 12वीं बोर्ड की प्रायोगिक परीक्षाएं भी होते रहेगी। फिर बोर्ड परीक्षाओं के साथ अन्य कक्षाओं की भी वार्षिक परीक्षा, मूल्यांकन, परीक्षा परिणाम का अति व्यस्त समय होगा। चूंकी अध्यापक शैक्षणिक कर्मचारियों का संवर्ग है इसलिए उसकी नैतिक जिम्मेदारी होती है कि परीक्षा से सम्बन्धित सभी दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करे।
 इस अवधि में असंतोष और शोषण के बावजूद भी वह अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए समय नहीं निकाल पाता। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगते ही लोकसभा चुनाव संपन्न होने और परिणाम आने तक कर्मचारी (अध्यापक) और सरकार भी चुनाव आयोग के नियमों के अधीन हो जाने के कारण बेबस हो जाते है। कहने का आशय यदि सरकार को शिक्षा विभाग में संविलियन का निर्णय लेना है तो 10 फरवरी के पहले ही लेना होगा। दूसरे शब्दों में अध्यापकों ने सत्ताधारी दल पर विश्वास व्यक्त किया था उस विश्वास को बनाए रखना है तो 10 फरवरी के पहले अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन के आदेश हो जाना चाहिए।
उसके बाद निश्चित तौर पर अध्यापक अविश्वासी हो जायेगा। इसकी जिम्मेदार सत्ताधारी दल की होगी। यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि अध्यापक जब अविश्वासी हो जाता है तो सत्ताधारी दल के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां बना देता है। यदि सत्ताधारी दल के आंख-कान खुले हैं तो समय रहते उचित निर्णय लें अन्यथा बाजी हाथ से निकल जाएगी।
छत्तीसगढ़ के शिक्षक नेता प्रदीप पांडेय ने बताया कि  सौगातों की खुशी तभी है जब पाने वाले की पाने की इच्छा बरकरार हो ठीक उसी तरह जिस तरह जब भूख लगी हो और खाना मिल जाए तो खाने का स्वाद और खिलाने वाले के लिए खाने वाले के दिल में सम्मान बढ़ जाता है एक बार भूख मर जाने या खाने की इच्छा समाप्त हो जाने के बाद कोई छप्पन भोग ही क्यों ना परोस दे फिर खिलाने वाले के लिए वह सम्मान नहीं हो सकता।
वर्तमान समय में छत्तीसगढ़  सरकार शिक्षाकर्मियों के साथ भी कुछ इसी तरह का व्यवहार कर रही है।वर्तमान में शिक्षाकर्मियों की सबसे बड़ी मांग है कि समस्त शिक्षाकर्मियों का जिनका 2 वर्ष की सेवा अवधि पूरी हो गई है शिक्षा विभाग में संविलियन किया जाए। दूसरा जिन शिक्षाकर्मियों ने 10 वर्ष की सेवा अवधि एक ही पद में पूर्ण कर लिया है उन्हें क्रमोन्नति प्रदान किया जाए। चूंकि 8 वर्ष की सेवा पूर्ण कर चुके शिक्षाकर्मियों का संविलियन शिक्षा विभाग में हो गया है अतः शिक्षाकर्मी के रूप में प्रथम नियुक्ति तिथि से सेवा की गणना करते हुए क्रमोन्नति प्रदान किया जाना चाहिए। इसके आलावा भी अन्य मांग है जिसे समय – समय पर शिक्षाकर्मी करते आ रहे हैं जिसका भी समय पर निराकरण किया जाना चाहिए।
पूर्ववर्ती सरकार ने जो गलती की थी उसे अब नहीं दुहराए जाना चाहिए।पूर्ववर्ती सरकार ने भी शिक्षाकर्मियों को सौगातें दी थी किन्तु समय बीत जाने के बाद शिक्षाकर्मियों को तरसाने के बाद और परिणाम आप सभी जानते हैं।इसलिए सरकार से आग्रह है कि वक्त रहते शिक्षाकर्मियों की मांगों पर निर्णय लें।
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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