ओशो की वसीयत लेकर आए स्वामी अशोक भारती

Chief Editor
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बिलासपुर । ध्यान के बिना मनुष्य के जीवन में कुछ भी नहीं है। ध्यान ही सब कुछ है। ध्यान नहीं तो कुछ भी नहीं। मनुष्य को मनुष्यत्व का बोध ध्यान से ही होता है। जो इस बोध के साथ जीता है, वह ही मनुष्य होने का हकदार है।

ये बातें स्वामी अशोक भारती ने सीजीवॉल के साथ एक बातचीत के दौरान कहीं। स्वामी अशोक भारती ओशो ( आचार्य रजनीश ) के अंतरंग शिष्यों में से एक हैं और जब ओशो सशरीर थे तब उनके सामने गीत गाते रहे। स्वामी अशोक भारती उस समय ओशो के सानिध्य में आए , जब उनकी उमर महज 19 साल की थी। 1966 के साल उनका परिवार नागपुर के पास अमरावती में रहता था और एक अखबार में ओशो के प्रवचन का इश्तहार देखकर उन्हे सुनने के लिए पहुंच गए थे। वहीं से एक ध्यान शिविर में भी शामिल होने का मौका मिला। इसके बाद 1972 में ओशो से सन्यास दीक्षा लेने के बाद हमेशा के लिए उनके हो गए। 1986 से ओशो के साथ रहकर उनके शिविरों में भजन प्रस्तुत करते रहे। स्वामी अशोक भारती बताते हैं कि उन्होने संगीत की कोई शिक्षा नहीं ली थी। लेकिन यह सदगुरू का ही प्रभाव था कि उनके भीतर ऐसे शब्द और संगीत की धुन अपने -आप ही उभरती थी।जिसने भजन -कीर्तन का रूप ले लिया। वे पूरे समय मौन ही रहते और वाणी का उपयोग सिर्फ गीत के लिए ही करते रहे। 8 अगस्त 1986 का दिन उनके लिए यादगार है, जब उन्होने ओशो को उनके शयन कक्ष में गीत सुनाया । तब उन्होने ओशो से आशिर्वाद मांगा था कि   प्रेम की यह जोत जीवन भर जलती रहे।

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स्वामी अशोक भारती आनंद भाव से कहते हैं कि प्रेम की यह जोत उनके जीवन में जागृत है और लम्बे समय तक एकांत शाति में डूबे रहने के बाद ओशो की प्रेरणा से ध्यान शिविरों का संचालन करने की शुरूआत की है। इसी सिलसिले में बिलासपुर के तिफरा स्थित झूलेलाल मंगल भवन में आयोजित ओशो ध्यान शिविर का संचालन करने आए हैं। स्वामी अशोक भारती का मानना है कि  सभी सदगुरू ने प्रेम का ही संदेश दिया है। सदगुरू केवल प्रेम के प्रशंग पर ही जोर देते हैं। ओशो ने भी प्रेम का ही संदेश दिया है। शिष्य को और कुछ करना नहीं पड़ता। उसके भीतर भी अगर प्रेम की अगन है तो गुरू का यह प्रसाद उसका जीवन सार्थक कर सकता है।

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तिफरा में यह शिविर 25, 26 और 27 सितम्बर तक चलेगा। जिसकी शुरूआत सुबह 7 बजे सक्रिय ध्यान से होगी फिर अन्य ध्यान प्रयोग होंगे। स्वामी अशोक भारती कहते हैं कि यह ध्यान शिविर अनूठा होगा जिसमें तकनीक के प्रयोग तो होंगे ही , लेकिन इसके साथ ही वह क्षण भी लाएंगे जब हम परमात्मा के प्रेम में थोड़ा समर्पित भी होने लगें।स्वामी अशोक भारती के पास ओशो की वसीयत भी है। जिसे वे शिविर के आखिरी दिन सभी के सामने खोलेंगे। एक खास बात और उन्होने कही कि ओशो समय और स्थान से परे हैं। लेकिन शिविर में सभी मिलकर ओशो को स्थान और समय में प्रवेश करा सकेंगे।सभी उन्हे महसूस भी कर सकेंगे। ऊर्जा के रूपांतरण से यह संभव हो सकेगा।

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