वैज्ञानिक युग से पहले…वैदिक संस्कृति ने किया चमत्कार…पालन किया होता तो..नही होता पर्यावरण दिवस

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— विश्व पर्यावरण दिवस पर पंजाब नैशनल बैंक कर्मचारियों ने गोष्ठी का आयोजन किया। पंजाब नैशनल बैंक दिल्ली के सेंट्रल स्टॉफ कॉलेज प्राचार्य और राष्ट्रीय प्रशिक्षण प्रमुख सुनील अग्रवाल, उप महाप्रबंधक ने शाम 4 बजे होटल पैसेफिक, मंगला चौक, बिलासपुर में एक गोष्ठी में विचार व्यक्त किए।  वक्ताओं ने बताया कि भारत कभी विश्व गुरु हुआ करता था। भारत ने विश्व को सबसे सही कालगणना दी। भारत ने विश्व को आयर्वेद, धातु शास्त्र, संगीत दिया। सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा संस्कृत दी, वैमानिकी की कल्पना दी, युद्ध के लिए श्रेष्ठ अस्त्र-शस्त्रों की कल्पना दी, योग दिया, विज्ञान सम्मत जीवन जीने की विधि दी, शून्य और अंनत की अवधारणा दी, और भी बहुत कुछ  दिया। भारत ने ही विश्व को एक और अप्रतिम अवधारणा दी- गणतंत्र की, सह अस्तित्व की, सर्व धर्म समभाव की। हमे अपने देश पर मानवता को अपने योगदान पर गर्व हैं।
                      कार्यक्रम के दौरान सभी वक्ताओं ने भारत की वैदिक संस्कृति, सभी रीतिरिवाज वैज्ञानिक कसौटी पर खरे हैं। हजारों साल पहले जब विज्ञान विकसित नही हुआ था तब भी हमारे पूर्वजों ने अपने सटीक ज्ञान से काल गणना की थी…आज भी प्रासंगिक हैं। दूरबीन के आविष्कार के पहले पूर्वजों ने 9 ग्रहों को खोज कर ज्योतिष विद्या में पारंगत हुए थे। खाना पकाने के लिये मिट्टी, पीतल और लोहे के साथ कांसे, पीतल का उपयोग किया। सुबह पीने के लिए तांबे के बर्तन इस्तेमाल करने की सलाह दी। आज विज्ञान भी कहता है कि सुबह तांबे के वर्तन में पानी पीना स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है।
           वक्ताओं ने बताया कि गर्मी में मटके और अन्य समय पीतल की गुंडी पीने के पानी को हमारे शरीर के अनुकूल बनाने में सहायक होती थी। बच्चो के जन्म पर नानी दादी हमेशा चांदी की कटोरी और चम्मच भेटकर नन्हें के दूध के माध्यम से उनके कण उपलब्ध कराने में सहायक बनती थी। हमारे पूर्वज ढाका की मलमल, सोने चांदी की नक्कासी, कोहिनूर को तराशने के हुनरमंद थे। फिर भी उन्होंने टेबल कुर्सी क्यो बनाए। इसकी मुख्य वजह हमारे शरीर की बनावट ही ऐसी हैं कि जब हम सुखासन अथवा आलती-पालती में बैठ कर भोजन ग्रहण करते हैं तो हाजमा ठीक होता हैं। पेट में चर्बी जमा नही होती। मानव शौच के लिये कमोड के बजाय हिंदुस्तानी पद्धति सर्वोत्तम हैं।
                 बताया कि हमारे पूर्वजों को नीम के एंटी वेक्ट्रॉरियल, पीपल के ऑक्सिजन, आवंला, बरगद, आम,  गुणों का अच्छा ज्ञान था। पेड़ों को पूजनीय बताकर हमें उपयोग करने के लिए प्रेरित किया। यदि हमने पूर्वजों के ज्ञान को आगे बढ़ाया होता तो आज 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाने की जरूरत नही होती। अग्नि में भष्म हुई भभूत हमारे शरीर मे फासफोरस की कमी दूर करती हैं।  प्राचीन योग ध्यान, प्राणायाम, मेडिटेशन के महत्व को आज विज्ञान भी स्वीकार कर रहा हैं।
                   सुनील अग्रवाल ने कार्यक्रम में उपस्थित विशाल शिक्षित वर्ग को लगभग चार घँटों तक  विभिन्न तर्को से प्रतिपादित किया कि *वैदिक संस्कृति का आधार ही विज्ञान* हैं। उन्होंने उपस्थित महिलाओं को भोजन में मसालों के फायदों की जानकारी भी दिए। वस्तु विनिमय से मुद्रा के प्रचलन तक के इतिहास के बारे में बताया।
                 गोष्ठी को सफल बनाने में पुरुषोत्तम अग्रवाल, विष्णु सिंह, पिंटू कुमार, राहुल परिहार, सत्यनारायण चंद्राकर, पोषिता सरावगी का विशेष योगदान रहा। कार्यक्रम में के एल कुकरेजा, अभय सिंह,जे पी राव, राजेन्द्र अग्रवाल, अनुपमा दुबे, तृप्ति गौतम, निशा अग्रवाल, डी अनुराधा राव , सोहेल शर्मा, कैलाश अग्रवाल, विजय कुमार चावड़ा सहित अनेक लोग मौजूद थे।

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