पत्रकार राजेश बादल की बिलासपुर यात्रा ( एक ) – उन्नीस बरस में कहां पहुंचा छत्तीसगढ़….?

Chief Editor
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(रूद्र अवस्थी)उन्नीस बरस की उमर क्या होती है ? कम से कम एक राज्य के लिए तो कुछ भी नहीं। एक देश के रूप में हम अक्सर 70 साल की विकास यात्रा पर सवाल खड़े करते हैं। तो क्या नवजात प्रदेशों को भी अपने पैरों खड़े होने के लिए 70 साल देने चाहिए। छत्तीसगढ़ ने ऐसी बहुत सारी मान्यताओं को खंडित किया है। विकास की कोई आदर्श अनुनाद स्थिति कभी नहीं हो सकती। कम से कम मैं तो यही सोचता हूँ।
इस सप्ताह मैं इसी धान के कटोरे याने छत्तीसगढ़ गया था। दुनिया का सबसे पुराना अतीत समेटे यह राज्य डायनासौर-युग का साक्षी है और हमारे सामने दस्तावेज़ की शक़्ल में उपस्थित है। इसबार मैंने यहाँ के चाँपा-जांजगीर- बिलासपुर को चुना था।वही इलाक़ा जहाँ महात्मागांधी आज़ादी की मशाल जलाते हुए छियासी साल पहले गए थे और लाखों लोगों को अपना दीवाना बनाकर लौटे थे। गांधीजी के जन्म के डेढ़ सौंवें साल में उन जगहों की यात्रा किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं है।वही इलाक़ा,जहाँ हिन्दुस्तान के बेजोड़ अभिनेता और अनेक सुपरहिट फिल्मों के डायरेक्टर किशोर साहू ने बचपन के दिन गुजारे ।किशोर साहू की फ़िल्म वीर कुणाल के प्रीमियर में खुद सरदार पटेल मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित हुए थे।वही इलाक़ा,जो अपने युग के कवि श्रीकांत वर्मा के शब्दलोक में ले जाता है ,वही इलाक़ा ,जहाँ का काला पत्थर देश भर में उजाला भरता है ,वही इलाक़ा ,जहाँ का कोसा – सिल्क दुनिया भर में धूम  मचा रहा है और वही इलाक़ा जहाँ की शब्द परंपरा को कथाकार सतीश जायसवाल ,कवि सुधीर सक्सेना और विलक्षण संस्मरण लेखक द्वारका प्रसाद अग्रवाल जीवित रखे हुए हैं।
छत्तीसगढ़ के पत्रकारों ने मुझे चांपा – जांजगीर में अपने सम्मेलन में बतौर मुख्य वक्ता याद किया था। राज गोस्वामी इसका माध्यम बने । जाने से पहले बिलासपुर में अग्रज सतीश जायसवाल,मित्र सुधीर सक्सेना, स्थानीय समाचारपत्रों के संपादक साथियों के साथ दोपहरभोज , जिला कलेक्टर और इतिहास के बारे में गहन शोध करने वाले साहित्य साधक संजय अलंग ,पत्रिका बिलासपुर के संपादक और मेरे छोटे भाई वरुण तथा अपने जीवन की त्रासदियों को ताक़त बनाने वाले द्वारिका अग्रवाल जी से मिलना  सुखद अनुभव था। आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी महेंद्र साहू से मिलकर रेडियो के दिनों की यादें बांटीं । आकाशवाणी के सफ़रनामे को याद किया । उन्होंने मेरा एक लंबा साक्षात्कार भी लिया । बिलासपुर की सब्ज़ीमंडी में घूमते हुए बस्तर का बोंडा,बैंगनी बरवटी ,रंग बिरंगे गोभी,अरवी के पत्ते और छोटी छोटी प्यारी से झक सफ़ेद मूली देखकर कई बार लार टपकी। चांपा -जांजगीर के सम्मेलन की बात कल करेंगे। आज सिर्फ यहां तक।
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