बिलासपुर— समय के साथ शिक्षा में बदलाव जरूरी है। 1986 के बाद शिक्षा में बदलाव नहीं किया गया। समय बदल गया लेकिन हम आज भी साल 86 के पहले का ही पाठ्यक्रम पढ़ रहे हैं। उस समय पर्यावरण को लेकर बहुत ज्यादा गंभीरता नहीं थी। आज पर्यावरण सबसे अहम् विषय हो गया है। हमारे पाठ्यक्रम में भारतीय संस्कृति और महानायकों को बहुत नीचा कर दिखाया है। इसमें भी बदलाव की जरूरत है। ये बातें शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने पत्रकारों से चर्चा के दौरान कहीं।
प्रेस क्लब में पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए अतुल कोठारी ने कहा कि हमारी जटिलताओं का मुख्य कारण देश की अस्पष्ट शिक्षा नीति है। इसमें बदलाव की तत्काल जरूरत है। आज तक देश की कोई शिक्षा नीति स्पष्ट नहीं हैं। इस दोष में आम जनता और बुद्धिजीवियों की उदासीनता भी जिम्मेदार है। सरकार ने बना दिया और हमने उसे मान लिया। जब समस्याएं सामने आती हैं तो हम सरकार पर दोष मढ़ना शुरू कर देते हैं। यह आदत अच्छी नहीं है। हमें जगना होगा।
अतुल कोठारी ने कहा कि हमारी उदासीनता ने कम जानकार लोगों को शिक्षा का पुरोधा बना दिया है। इसके चलते पाठ्यक्रमों में विसंगतियों और विकृतियों की भरमार है। इससे हमारी संस्कृति भाषा,धर्म, परम्पाराओं, महापुरूषों और व्यवस्था का अपमान देश विदेश में हो रहा है। इसे हर हालत में अभियान चलाकर दुरुस्त करना होगा।
कोठारी ने बताया कि हमारी शिक्षा नीति हमारी संस्कृति,प्रकृति और प्रगति के अनुरूप बने। छात्रों के समग्र व्यक्तित्व के विकास के साथ देश का समुचित विकास हो सके। उन्होंने बताया कि पाठ्यक्रम में चरित्र निर्माण और व्यक्तित्व विकास,पर्यावरण शिक्षा,वैदिक गणित, मातृभाषा में शिक्षा जैसे विषयों को शामिल किया जाना बहुत जरूरी है। तभी देश के लोगों में स्व और देश के प्रति अभिमान का बोध होगा।
पत्रकारों से सवाल जवाब के दौरान उन्होंने बताया कि देश की तमाम समस्याओं की जड़ वर्तमान शिक्षा व्यवस्था ही है। इसलिए देश को बदलने के लिए शिक्षा को बदलना होगा।